एक दिन आकाश में काली मेघ का एक टुकड़ा और सफेद बादल हवा के रूख के साथ तैर रहे थे ।
धरती पर की छटा देख कर सफेद बादल ने बगल में तैर रहे काली मेघ के टुकड़े से कहा , बताइए , तुम्हारे विचार में सुख क्या है । काली मेघ ने अपने लम्बे बालों को फेरते हुए थोड़ी देर सोचा , फिर कहा , मेरे विचार में प्यासी मुर्झी हुई फसलों को आवश्यक वर्षा बरसाना सब से बड़ी सुख है ।
सफेद बादल ने सुन कर होंठ भींच कर कहा, यह कहां की सुख है , सुख आरामदेह होना चाहिए , आजाद होना चाहिए ।
मुझे अनुभव है कि इस समय की तरह हम यों इधर उधर तैरते हुए घूम रहे हैं , यह सब से बड़ी सुख है ।
काली मेघ कुछ कहने को था कि एकाएक उस ने देखा , नीचे धरती पर लहलहाती फसलें और पेड़ -पौधे सूखा पड़ने के कारण अब कुम्हाने जा रही थी , तो उस ने तुरंत सफेद बादल से कहा, शीघ्र ही बारिश करो , वरना फसल सूख कर मर जाएगी ।
सफेद बादल ने खेतों में मुर्झी हो रही फसलों की ओर जरा नजर फेरी , फिर उदासीनता से कहा , मैं अपने को बलि पर नहीं देना चाहता हूं ।
उसे सूख हो कर मरने दो ।
इस का मुझ से क्या संबंध है . मैं खेलने जा रहा हूं ।
कहते ही सफेद बादल हवा के झोंके पर दूर उड़ चला ।
काली मेघ तुरंत वर्षा के पानी में बदल गए और भूमि पर बरसाये , धरती की भूमि पानी से सिंचने पर फिर से नम हो गई , फसल भी दोबारा लहलहाने लगी ।
पेड़ -पौधों में हरियाली आई तथा धरती पुनः निखर हो गई ।
यह वर्षा ठीक समय पर बरसी है , इस की कृपा से ही फसल बच गयी है ।
पानी का रूप धारण करने वाली काली मेघ को किसानों का यह सराहना सुनने के बाद बड़ी मिठास और सुख का अनुभव हुआ ।
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