चीन और भारत के बीच के मैत्री का इतिहास कोई दो हज़ार वर्ष पुराना है । इस दौरान अनगिनत व्यक्तियों ने दोनों देशों की मैत्री को आगे बढ़ाने के लिए अथक कोशिश की । भारतीय मित्र डॉक्टर द्वारकानाथ कोटनिस उन में से एक थे, जिन की अब भी चीनी जनता के दिल में गहरी याद है । गत शताब्दी के तीस वाले दशक में डॉक्टर कोटनिस चीन के जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध में चीन की सहायता के लिए भारतीय मेडिकल मिशन के साथ चीन आए और उन्होंने चीन के युद्ध मैदान में अनगिनत घायल व बीमार चीनी सैनिकों व जनता का इलाज किया । वे चीन में पांच साल रहे और उन्होंने अंत में भारी बीमारी और थकान के कारण अपनी जान चीन की भूमि को अर्पित कर दी । चीनी लोग भारतीय दोस्त डॉक्टर कोटनिस का असीम सम्मान करते हैं और हमेशा उन्हें याद करते हैं । डॉक्टर कोटनिस की अमर कहानी जानने के बाद मैं बराबर सोचती रहती हूँ कि अखिरकार डॉक्टर कोटनिस किस प्रकार के परिवार से आए थे ? और उन के परिवारजनों की हालिया स्थिति कैसी है?डॉक्टर कोटनिस के परिजनों से मिलने की मेरी जिज्ञासा कभी कम नहीं हुई।
चीन भारत मैत्री वर्ष को मनाने के लिए मैं चाइना रेडियो इन्टरनेशनल के संवाददाता दल के एक सदस्य के रूप में भारत आयी, जिस से वर्षों से दिल में संजोए डॉक्टर कोटनिस के परिवारजों से मिलने का मेरा सपना पूरा हो गया । यानी मुंबई के दौरे के दौरान मेरी मुलाकात डॉक्टर कोटनिस की बहनों से हुई ।
डॉक्टर कोटनिस की तीसरी छोटी बहन मनोरमा कोटनिस और पांचवीं छोटी बहन वत्सला कोटनिस मुंबई के एक फ्लेट में रहती हैं । डॉक्टर मनोरमा कोटनिस इस साल 85 वर्ष की हो चुकी हैं, जबकि डॉक्टर वत्सला 78 वर्ष की हैं । डॉक्टर मनोरमा का स्वास्थ्य फिलहाल अच्छा नहीं है, बड़ी उम्र के कारण वे अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती की गई हैं । जब हमारे आने की खबर सुनी , तो वे विशेषतः अस्पताल से निकल आयी और हमारी मुलाकात उन के घर में हुई । दोनों बहनों के घर के लिविंग रूम में डॉक्टर कोटनीस की मूर्ति रखी हुई है और दीवार पर उन की तस्वीरें टंगी हैं । लीविंग रूम की एक दीवार पर स्वर्गीय चीनी राष्ट्राध्यक्ष माओ त्से तुंग का एक हस्तलिखित आलेख टंगा हुआ नजर आया , जिस में यह अंकित है कि"भारतीय दोस्त डॉक्टर कोटनिस दूर से जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध में चीन की सहायता के लिए चीन आए । उन्होंने चीन के यान आन और उत्तरी चीन के अनेक स्थानों में पांच साल काम किया और अनेकों घायल सैनिकों का इलाज किया था । लेकिन बहुत थकान और भारी बीमारी से उन्होंने अपनी जान चीनी जनता को अर्पित की । हम चीनी राष्ट्र का एक दोस्त खो गया और हमारी सेना का एक शक्तिशाली सहायक खो गया । डॉक्टर कोटनिस की अंतरराष्ट्रीकरण भावना को हमें कभी नहीं भूलना चाहिए ।"
डॉक्टर कोटनिस की पांचवीं बहन डॉक्टर वत्सला ने कहा कि भाई द्वारकानाथ की आयु घर से चीन जाने के वक्त सिर्फ़ 28 वर्ष की थी । उसी समय डॉक्टर वत्सला की उम्र दस के आसपास थी । लेकिन साठ वर्षों के बाद भी उन्हें भाई द्वारकानाथ के साथ गुजरे जीवन की गहरी याद बनी रही है । उन्होंने बताया कि भाई द्वारकानाथ अपने छोटे भाई और छोटी बहनों को बेहद प्यार करते थे । जब मेडिकल स्कूल से घर वापस लौटते , तो अकसर वे अपने छोटे भाइयों व बहनों के साथ खेलते थे और उन्हें मज़ाक से खिलखिलाते थे । उसी समय हंसने की आवाज़ घर के हर कोने में गूंज उठती थी ।
डॉक्टर वत्सला ने बताया कि वर्ष 1 938 में भाई द्वारकानाथ कोटनिस ने भारतीय मेडिकल मिशन में भाग लिया और वे स्वेच्छा से चीन के जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध में चीनी जनता की सहायता के लिए गए । चीन में रहने के दौरान भाई द्वारकानाथ समय-समय पर चिट्ठी लिखकर भेजते थे, और परिवाजनों को चीन की युद्ध स्थिति बताते थे । परिवार के सदस्यों को डॉक्टर कोटनिस की चिट्ठियों से पता चला था कि चीन की स्थिति कैसी है, वहां के रीति रिवाज़ किस तरह के हैं और चीनी लोग कैसे हैं । अपनी चिट्ठियों में डॉक्टर कोटनिस ने कहा कि उन्हें चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता माओ त्से तुंग और चो एन लाई के साथ बातचीत करने के बहुत से मौके मिलते हैं, ये चीनी नेता बहुत स्नेही हैं और ऐसा लगता है मानो वे सभी साधारण दोस्त हैं, न कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के बड़े-बड़े नेता । चीन में रहने की स्थिति बहुत कठिन होने के बावजूद उन्हें बड़ी खुशी का अहसास होता है ।
डॉक्टर कोटनिस की तीसरी छोटी बहन मनोरमा ने आगे बताया कि जब भारतीय मेडिकल मिशन का कर्तव्य पूरा होने के बाद दल के अन्य सदस्य भारत वापस लौटे , तो डॉक्टर कोटनिस ने चिट्ठी लिखकर अपने परिजनों से कहा कि उन्होंने खुद आंखों से युद्ध मैदान में घायल सैनिकों की हालत देखी है और उन्हें लगता है कि उन्हें उन की बहुत आवश्यक्ता है । इसलिए उन्होंने चीन में आगे और कुछ समय ठहरने का निश्चय लिया । लेकिन जाने क्या हुए कि भाई द्वारकानाथ सदा के लिए ही चीन में ठहर गए । वर्ष 1942 में भाई की चिट्ठी फिर नहीं आयी, परिवार के सभी सदस्य अमंगल आशंका के साथ द्वारकानाथ की खबर का इन्तजार कर रहे थे । लेकिन अंत में उन की चिट्ठी जो नहीं आयी, तो नहीं आयी, तभी परिवारजनों को महसूस हुआ कि शायद द्वारकानाथ फिर कभी घर नहीं लौट सकते…… इस की याद करते हुए दोनों बहनों की आंखों में आंसू भर आए, हमें भी बहुत दुख हुआ ।
थोड़ी देर बाद डॉक्टर कोटनिस की पांचवीं बहन वत्सला ने कहा कि भाई द्वारकानाथ के कारण कोटनिस परिवार और चीन के बीच घनिष्ठ संबंध कायम हुआ जो आज तक बना हुआ है । वर्ष 1976 के बाद उन्होंने अनेक बार चीन की यात्रा की थी और चीनी नेताओं ने उन से भेंट की । चीनी नेता जब भारत की यात्रा के दौरान मुंबई आते हैं, तो वे अवश्य उन के घर आकर उपहार भेंट देते हैं । वर्ष 1996 में तत्कालीन चीनी राष्ट्राध्यक्ष च्यांग जे मिन ने भारत की यात्रा की, वे मुंबई तो नहीं आए, पर उन्होंने नयी दिल्ली से विशेष तौर पर उन्हें उपहार भेंट करने के लिए अपने कर्मचारी को भेजा । वर्ष 2005 के अप्रैल में चीनी प्रधान मंत्री वन चा पाओ ने भी भारत की यात्रा की, उन के घर नहीं आ सकने पर उन्हों ने विशेष तौर पर भारत स्थित चीनी राजदूत से कहा कि वे उन की ओर से डॉक्टर कोटनिस के परिजनों को शुभकामनाएं कहेंगे । डॉक्टर कोटनिस की तीसरी बहन मनोरमा और पांचवीं बहन वत्सला ने घर में रखे हुए उपहार दिखाते हुए कहाः"हमारे भाई द्वारकानाथ ने हम से विदा लिया था, यह हमारे परिवार के लिए भारी दुख की बात है, लेकिन भाई ने मानवता के महान न्याय कार्य के लिए अपनी जान न्यौछावर की है, यह एक महान बलिदान है, हमें इस पर गर्व है ।"
हम ने जब डॉक्टर कोटनिस की बहनों से विदा ली, तो दोनों बहनें घर की खिड़की के सामने खड़े होकर हमें जाते हुए निहार रही थीं । मुझे पता नहीं कि भविष्य में उन से फिर मिलने का मौका कब मिलेगा । लेकिन मेरी तहेदिल से कामना है कि वे स्वस्थ रहें और दीर्घायु रहें । चीन और भारत की मैत्री को बढ़ाने के लिए हम डॉक्टर कोटनिस और उन के परिजनों का सदासदैव अपार एहसान मानते हैं और हार्दिक सम्मान करते हैं । डॉक्टर कोटनिस का नाम चीनी जनता के दिल में हमेशा बना रहेगा और उन का परिवार हमेशा चीनी जनता का रिश्तेदार रहेगा ।
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