गत शताब्दी के सत्तर वाले दशक में एक भारतीय युवा ने विश्वविद्यालय में चीनी-भाषा को अपना प्रमुख विषय चुना था, उस समय चीन और भारत के बीच संबंध ज्यादे अच्छे नहीं थे, लेकिन इस भारतीय युवा ने चीनी-भाषा सीखना जारी रखा और इसी भाषा के जरिए चीन के साथ घनिष्ठ संबंध भी बरकरार रखे ।
"तीस वर्ष पूर्व जब मैं ने चीनी-भाषा सीखना शुरू किया था, तब मुझे पता नहीं था कि भविष्य में मैं क्या करूंगा । लेकिन मैंने चीनी-भाषा सीखना जारी रखा ।"
यह हैं हमारे इस कार्यक्रम के प्रमुख पात्र, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के चीनी भाषा-विभाग के निदेशक प्रोफैसर हेमंत अदलखा । पिछले तीस से ज्यादा वर्षों में वे चीनी-भाषा सीखने वाले विद्यार्थी से चीनी भाषा पढ़ाने वाले अध्यापक बन गये । इसी दौरान उन के चीन के साथ घनिष्ठ संबंध कायम रहे । इस की चर्चा में श्री हेमंत ने कहा ,"तीस वर्ष पहले मैं चीनी भाषा-विभाग में आया । उस समय हमारा उद्देश्य चीन को समझना था, विशेष कर चीन के राजनीतिक क्षेत्र के बारे में । लेकिन आजकल स्थिति बदल गयी है । इधर के वर्षों में भारत और चीन के बीच आर्थिक व व्यापारिक विकास सुचारू रूप से बढ़ रहा है । अब भारत के विश्वविद्यालयों में चीनी-भाषा सीखने वाले विद्यार्थियों के अलावा, भारतीय उद्योगों में चीनी-भाषा सीखने वालों की संख्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही है । पहले भारत में जापानी-भाषा सीखना बहुत लोकप्रिय था, इस के बाद फ्रांसीसी-भाषा और जर्मनी-भाषा, लेकिन आज चीनी-भाषा, कोरियाई-भाषा और जापानी-भाषा सब से लोकप्रिय हैं ।"
प्रोफैसर हेमंत ने कहा कि जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में उन्हें चीनी-भाषा सीखते और पढ़ाते हुए तीस वर्ष बीत चुके हैं । इन तीस वर्षों में उन्हें भारत में चीनी-भाषा सीखने का खूब अनुभव हुआ है । उन्होंने कहा कि शुरू में जब उन्होंने चीनी-भाषा सीखना चुना, उस समय चीन और भारत का संबंध अच्छा नहीं था । हेमंत के दोस्त व रिश्तेदार उन के विकल्प को नहीं समझते थे । अपने आसपास के सब लोगों के विचार में चीनी-भाषा सीखने के बाद कोई अच्छा रोज़गार मिलने की संभावना नहीं थी । युवा हेमंत ने माना कि यह रास्ता उस ने खुद चुना, इसलिए इस रास्ते पर आगे बढ़ते रहने का विकल्प भी उस ने ही चुना।
तीस वर्ष बीत चुके हैं युवा-वद्यार्थी अब एक बूढ़ा-प्रफैसर बन गया है। श्री हेमंत ने कहा कि वर्तमान में विद्यार्थियों को चीनी सीखने या न सीखने के बारे में कोई चिंता नहीं है ।। श्री हेमंत का कहना है ,"दस-बीस सालों में स्थिति बिलकुल बदल गयी है। वर्तमान में चीनी भाषा सीखने वाले भारतीय लोग अच्छा काम प्राप्त करते हैं, उन के रोज़गार का भविष्य बहुत उज्ज्वल है । "
प्रोफैसर हेमंत ने जानकारी देते हुए कहा कि जब वे छात्र थे, तो नेहरू विश्वविद्यालय के चीनी-भषा विभाग में सिर्फ़ तीस या चालीस विद्यार्थी थे। लेकिन आज एक कक्षा में ही इतने विद्यार्थी होते हैं । इस तरह चीनी-भाषा सीखने वाले विद्यार्थियों की संख्या साल ब साल बढ़ती जा रही है । अन्य भाषा सीखने वाले विद्यार्थियों की तुलना में चीनी-भषा विभाग के विद्यार्थियों को रोज़गार मिलने के ज्यादा मौके हैं । उन्होंने कहा कि चीनी-भाषा सीखने के बाद विद्यार्थियों को अपने भविष्य के विकास के लिए उपलब्ध पूंजी हासिल हो जाती है। बीस से ज्यादा वर्षों में श्री हेमंत ने अनेक विद्यार्थियों को पढ़ाया। उन के विद्यार्थियों ने विश्विद्यालय से स्नातक होने के बाद अच्छा रोज़गार प्राप्त किया और वे वर्तमान में सुखमय जीवन बिता रहे हैं।
प्रोफैसर हेमंत के विद्यार्थियों में से एक भाई सरफरोश नेहरू विश्वविद्यालय के चौथे वर्ष के छात्र हैं । उन्होंने कहा कि चीन उन के लिए एक सपना है, इस लिए चीनी-भाषा सीखना उन के सपने को साकार करने का एक रास्ता है । भाई सरफरोश के विचार में चीनी-भाषा सीखना एक विवेकपूर्ण विकल्प है । सरफरोश ने कहा ,"किसी एक किस्म की भाषा का व्यापक चलन उस के मातृ देश की राष्ट्रीय शक्ति पर निर्भर करता है । इधर के सालों में चीन की तरक्की दिन दुनी रात चौगुनी हो रही है , जिस से चीनी-भाषा की लोकप्रियता को बड़ी सहायता मिली है । कई वर्ष पूर्व अनेक बहुदेशीय चीनी कंपनियां अपनी शाखाओं की स्थापना के लिए भारत आईं । इस से भारत में ज्यादा से ज्यादा रोज़गार पाने के मौके बढ़े । इधर के सालों में सूचना व तकनीक के विकास के चलते भारतीय लो ग चीन के आर्थिक विकास की ज्यादा से ज्यादा जानकारी हासिल कर रहे हैं । अधिकांश भारतीय लोगों के लिए चीन अभी भी थोड़ा रहस्यमय है । हमारे लिए चीन एक सपना है और एक ख्वाहिश भी ।"
प्रोफैसर हेमंत ने संवाददाता को बताया कि चीनी-भाषा सीखने के बाद उन का चीन के साथ संबंध ज्यादा घनिष्ठ होता गया । वर्ष 1984 में वे पढ़ने के लिए प्रथम बार चीन आए , इस के बाद के 20 से ज्यादा वर्षों में उन्होंने चीन की अनगिनत यात्राएं कीं । चीन में रहने के वक्त श्री हेमंत ने मशहूर चीनी पर्यटन स्थलों का दौरा किया, विभिन्न स्थलों के रीति-रिवाज़ों को महसूस किया और चीन के सामाजिक-विकास का निरीक्षण किया। उन्होंने कहा कि हर बार चीन आने के बाद विभिन्न अनुभव पैदा हुए । वर्ष 2005 में प्रोफैसर हेमंत ने एक विद्वान के रूप में दक्षिण चीन के शांगहाई शहर स्थित शांगहाई सामाजिक अकादमी में आधे साल तक अनुसंधान कार्य किया । अपनी ताज़ा चीन-यात्रा की चर्चा करते हुए श्री हेमंत ने कहा ,"हर बार चीन जाकर वापस लौटने के बाद मुझे नया अनुभव होता है। मुझे लगता है कि अपनी ताज़ा चीन-यात्रा के दौरान मैं ने बीस से ज्यादा वर्षों में चीन में हुए बड़े से बड़े परिवर्तन को महसूस किया । मुझे ऐसा लगा कि वर्तमान चीन और पहले का चीन एक नहीं है । आधुनिकीकरण के नज़रिए से देखा जाए तो वर्तमान चीन विश्व में सब से जवान देश है , लेकिन इस की सभ्यता सब से प्राचीन है ।"
लगातार विकसित हो रहे चीन और दिन ब दिन मज़बूत हो रहे चीन-भारत संबंध को देख कर प्रोफैसर हेमंत बहुत खुश हैं । उन्होंने कहा कि सौभाग्य की बात है कि उन्होंने चीनी-भाषा सीखना नहीं छोड़ा । अगर चीनी-भाषा नहीं सीखी होती, तो अपनी जिंदगी में वे प्राचीन सभ्यता वाले चीन के साथ कोई संबंध नहीं रख पाते । भारत और चीन के आपसी आदान-प्रदान के लिए योगदान करना उन्हें सदा के लिए गर्व लगता है क्योंकि चीन और भारत दोनों प्राचीन सभ्यता वाले देश हैं।
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