
दोस्तो , चीन की लम्बी दीवार विश्व भर में मशहूर है , वह प्राचीन चीनी श्रमिकों द्वारा किया गया एक महान निर्माण है , लम्बी दीवार चीन के प्रथम सम्राट --छिन श हुआंग की हुक्म पर बनायी गई और चीन के मिन राजवंश काल में इस का पुनःनिर्माण हुआ , आज जो उत्तर चीन की विशाल भूमि पर फैली लम्बी दीवार मुख्यतः मिंग राजवंश की है । लेकिन आप को मालूम नहीं है कि आज से नौ सौ वर्ष पहले उत्तर चीन में स्थापित चिन राजवंश ने मंगोल जाति की सेना को रोकने के लिए भी घास मैदान पर एक लम्बी दीवार बनाई थी ।
एतिहासित उल्लेख के अनुसार ईस्वी 12 शताब्दी के आरंभ में मंगोल जाति की सैन्य शक्ति अत्यन्य बड़ी विकसित हुई थी , उस ने हुलुन्बेल घास मैदान से एशिया के अनेकों स्थानों पर कब्जा कर दिया , यहां तक उस ने यूरोप में भी प्रवेश किया । मंगोल जाति के शक्तिशाली सेना रोकने के लिए चिन राजवंश ने देश के उत्तर पूर्व के मोलिदावा से दक्षिण पश्चिम में पीली नदी की ह थो घाटी तक दो हजार किलोमीटर लम्बी दीवार बनायी । इसी दिवार का एक सौ अस्सी किलोमीटर लम्बा भाग कशिकथङ में स्थित है । दिवार का यह भाग कुंगल घास मैदान व ताली झील के क्षेत्र को जोड़ देती थी । दीवार वहां की मिट्टी खोद कर बनायी गई , जो दो मीटर से पचास मीटर तक चौड़ी और पांच मीटर ऊंची थी , जगह जगह किले भी निर्मित किए गए थे । आठ नौ सौ वर्ष गुजरने के बाद अब भी दिवार के खंडहल स्पष्ट आकार में सुरक्षित है । इस से जाहिर है कि तत्कालीन दीवार एक महान मानवी निर्माण थी ।
लेकिन इतिहास एक कटु सत्य है , इस लम्बी दीवार ने मंगोल जाति के आक्रमण को नहीं रोका , चिन राजवंश का पतन भी हो गया ।
कुंगल घास मैदान पर फैले चिन राजवंशी लम्बी दीवार के खंडहल के सामने खड़े हो कर कशिकथङ के प्राचीन इतिहास का सिन्हावलोकन करते हुए हम के मुंह से ये शब्द अनायास फुट निकला कि काल के चक्र के साथ जो गया , वह गया ही था , पर जो हमेशा के लिए रह कर सुरक्षित रहा , वह यहां का मनमोहक प्राकृतिक सौंदर्य है । कुदरत से दुआ है कि वह सदियों सदी सुरक्षित रहेगा ।
श्रोता दोस्तो , आप हमारे साथ तालीनूर झील का सौंदर्य देखने जाए । कुंगल घास मैदान में फैली चिन राजवंशी लम्बी दिवार से बिदा ले कर हम विशाल घास मैदान में गाड़ी चलाते हुए तालीनूर झील पहुंचे । यह पक्षियों का गृह स्थान भी माना जाता है । तालीनूर झील भीतरी मंगोलिया स्वायत्त प्रदेश की दूसरी बड़ा अन्तरस्थलीय झील है , मंगोल भाषा में तालीनूर का अर्थ समुद्र है , जो दो सौ 48 वर्गकिलोमीटर की भूमि को घेर लेती है और दस मीटर गहरी है । यह झील राज हंस झील के नाम से भी मशहूर है . इस के संरक्षण के लिए 1997 में चीनी सरकार ने राष्ट्रीय तालीनूर प्राकृतिक संरक्षित क्षेत्र की स्थापना की पुष्टि की , झील क्षेत्र में घास मैदान , झील , रेतीली भूमि तथा जंगल का मिश्रित संरक्षण किया जाएगा , अब तक वहां ज्ञात हुए पक्षियों की जातियां 16 पहुंची , जिन की कुल एक सौ 52 नस्लें हैं । वहां राष्ट्रीय स्तर पर अभय प्राप्त पक्षियों की किस्में आठ है और दूसरे दर्ज की पक्षियां 18 किस्मों की हैं । झील पर राजहंस और जंगली बत्तकों की उड़ान का सुन्दर दृश्य देखने को मिलता है । पठारी मैदान में अन्तर स्थली झील होने के कारण उस में जो मछलियां पलती है , उन का स्वाद बहुत स्वादिष्ट और ताजा लगता है , इन किस्मों की मछलियां दूसरे स्थान में नहीं मिल सकती है , तालीनूर झील में हर साल 600 टन मछलियां पकड़ी जा सकती है ।
तालीनूर झील में पानी मानवी प्रदूषण से दूर रहने के कारण बहुत स्वच्छ है और झील के किनारे सुन्दर जंगली फुल खिलते हैं तथा झील का घाटी क्षेत्र निर्जन भी होता है , इसलिए हर साल बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षियां दूर साइबेरी से आ रूकती है और फिर चीन के दक्षिण समुद्रतटीय क्षेत्र , कोरिया व जापान को सर्दी से बचने के लिए जाती है ।
इस सुन्दर स्थान को अब प्राकृतिक पर्यटन का बेहतर स्थल बनाने की कोशिश की जा रही है ।
दोस्तो , मंगोल जाति के लोग बहादुर , मेहनत और उत्साही है , वे सभी नाच गान के शौकिन हैं । मंगोल जाति के रिति रिवाज भी अनोखे और आकर्षक है , कशिकथङ की यात्रा के दौरान हमें उन की परम्परागत प्रथाओं का गहरा अनुभव हुआ , यात्रा की एक रात को हम ने मंगोल चरवाहों के तंबू में रह कर बितायी , रात्रि भोज में हमें मंगोल के परम्परागत भोजन दुध का चाय , घुड़ दुध का मदिरा और कबड़ा जैसे बकरी के गोश्त खिलाए गए , मेहमाननवाबी के लिए मंगोल जाति की यह परम्परा रही है कि हरेक मेहमान को तीन तीन प्याला मदिरा पिलाया जाता है , मदिरा पेश करने के समय मंगोल युवक और युवती मंगोल गीत गाते है , एक गीत समाप्त होने पर मेहमान को एक प्याला मदिरा पीना अनिवार्य है । सफेद कंबल से बनाए गए मंगोल जाति की शैली वाले तंबू में हमें अच्छा भोज दिया गया और चरवाही की लड़की थाना ने कई गीत पेश की । बड़ा आनंदमय रात बिताया था हम ने मंगोल के तंबू में । मंगोल जाति के स्वादिष्ट परम्परागत खाना चखने के साथ साथ मंगोल जाति के उमंग भरे गीतों का भी आनंद उठाया ।
दोस्तो , सुबह की सुनहरी धूप में हम कशिकथङ में खड़े राष्ट्रीय स्तर के संरक्षित प्राकृतिक सौंदर्य आसहाथु पाषाण जंगल देखने गए , आसहाथु का अर्थ मंगोल भाषा में सीधी खड़ी चट्टान है । पाषाण जंगल दरअसल वहां दर्जनों वर्गकिलोमीटर के उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र में खड़ी विविध रूपाकारों की चट्टानों की जंगल है , फुलों और पेड़ों से घिरी पर्वत चोटियों पर काले रंग की सौकड़ों चट्टानें देखने को मिलती हैं । कोई चट्टान हाथी के रूप में है , कोई सुन्दर परी के रूप में , तो कोई घोड़े के रूप में । एक भीमकाय बाज के रूप में खड़ी चट्टान बड़ी सजीव और ध्यानाकर्षक होती है । जीवचंतु और मानुष की आकृति वाली चट्टानें आम तौर पर पांच से बीस मीटर ऊंची है । वे दर्शकों को विविध कल्पनाएं दिला सकती है । भूतत्वीय खोज के अनुसार यह पाषाण जंगल चौथे हिम काल में हिम नदियों के बहाव से उत्पन्न हुई थी , जो देश विदेश में बहुत दुर्लभ प्राप्त होती है । उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र में सुरक्षित ये प्रचूर हिम काल के ये अवशेष वैज्ञानिक अनुसंधान की मूल्यवान सामग्री है . इस लिए यह जगह राष्ट्रीय भूतत्व उद्यान का दर्जा दिया गया और अच्छी तरह संरक्षित किया जाने लगा ।
पाषाण जंगल वाले पहाड़ों की तलहटी में पायंक्वोले सुमू यानी पाइंक्वोले टाउनशिप का पर्यटन केन्द्र खोला गया है , जिस में मुख्यतः पाषाण जंगल देखने आए पर्यटकों का स्वागत सत्कार किया जाता है । पर्यटन केन्द्र के एक विशाल सफेद रंग के मंगोल तंबू में हमारा फिर एक बार मंगोल जाति की रिति रिवाज से स्वागत किया गया । मंगोल युवक युवती के बुलंद सुलीरी गीतों में मेहमानों का स्वागत करने की जोशीली भावना व्यक्त हुई और मेहमानों को मंगोल जाति के बीच आ ठरहने और उन के साथ घास मैदान का सुन्दर दृश्य देखने की अभिलाषा अभिव्यक्त हो गई है । गीत मधुर और भावोद्वेलित है । इस के लयदार बहाव में बह कर कोई इस मोहक स्थान को छोड़ने का जी नहीं चाहता ।
पाइंक्वोले सुमू ने अपने क्षेत्र में उपलब्ध प्राकृतिक सौंदर्य के आधार पर पर्यटन सेवा का जोरदार विकास करने का आरंभ किया , पाषाण जंगल के निकट खोले गए पर्यटन केन्द्र में दसियों विशाल मंगोल तंबू स्थापित हुए , जिन में मंगोल जाति के जीवन की हर सुविधा मिलती है । हरिभरी पहाड़ी तलहटी में दूर तक गोलाकार सफेद मंगोल तंबू देखने में यों लगता है कि हम किसी दूसरे स्वर्ग प्रदेश में आ पहुंचे हो ।
कशिकथङ के पर्यटन अधिकारी के अनुसार कशिकथङ ने इधर के सालों में पर्यटन सेवा के विकास पर प्राथमिकता दी और अपने पर्यटन संसाधनों का दोहन कर छह पर्यटन क्षेत्र खोले , जिन में चालीस से अधिक पर्यटन बस्तियां बनायी गई और सौ से अधिक होटल कायम किए गए , पिछले साल देश विदेश के छह लाख पर्यटकों ने इस मंगोल घास मौदान का दौरा किया और कशिकथङ जिले को भी काफी आमदनी प्राप्त हो गई थी ।
दोस्तो , समय के अभाव के कारण इस बार हम ने इस क्षेत्र के केवल एक तिहाई भाग का दौरा किया , हमारे कार्यक्रम में आप को दिखाए गए स्थानों के अलावा कशिकथङ में वुलांबुथ घास मैदान , महा काला पर्वतीय मोलिन पार्क , गर्म जल चश्मा केन्द्र , ड्रेगन स्परूस संरक्षित पहाड़ , हुंगकांल्यान राष्ट्रीय वन्य क्षेत्र और अन्तरराष्ट्रीय आखेट इलाका जैसे अनेक अन्य पर्यटन स्थल हैं । अगर आप को दिलचस्पी हो , तो आइये खुद वहां देखने जाए । हमें विश्वास है कि आप को निराशा नहीं होगी ।
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