• हिन्दी सेवा• चाइना रेडियो इंटरनेशनल
China Radio International
चीन की खबरें
विश्व समाचार
  आर्थिक समाचार
  संस्कृति
  विज्ञान व तकनीक
  खेल
  समाज

कारोबार-व्यापार

खेल और खिलाडी

चीन की अल्पसंख्यक जाति

विज्ञान, शिक्षा व स्वास्थ्य

सांस्कृतिक जीवन
(GMT+08:00) 2006-10-09 13:51:03    
चीन में प्रथम सांस्कृतिक विरासत दिवस मना

cri

कुछ समय पूर्व चीन ने अपना प्रथम सांस्कृतिक विरासत दिवस मनाया।राजधानी पेइचिंग में इस से जुड़ी अनेक प्रदर्शनियां लगाई गईं।इन्हें देखकर लोगों ने सांस्कृतिक विरासतों की रक्षा में चीन की उपलब्धियां जानने के साथ-साथ इन विरासतों के संरक्षण के प्रति अपने विचारों को भी अधिक मजबूत बनाया है।

सांस्कृतिक विरासत दिवस के उपलक्ष्य में चीनी राजकीय संग्रहालय में अभौतिक सांस्कृतिक अवशेष के रूप में एक परंपरागत चीनी ऑपेरा प्रस्तुत किया गया।यह ऑपेरा वास्तव में कठपुतली नाटक जैसा ही विशिष्ट है,जिसे हपे प्रांत की एक लोककला मंडली द्वारा प्रस्तुत किया गया था।उसे इसलिए विशिष्ट कहा गया है,क्योंकि उस में सभी कठपुतलियां पशुओं के चमड़े से बनायी जाती हैं।सो, आम लोकजन उसे चमड़ा कठपुतली ऑपेरा कहकर पुकारते हैं।चीन में प्राचीनतम शैली के इस ऑपेरा का इतिहास लगभग 2000 वर्ष पुराना है।ऑपेरा में पृष्ठभूमि का सभी साजो-सामान भी पशुओं के चमड़े से ही निर्मित होता है। कारीगरी और गुणवत्ता में यह साजो-सामान और कठपुतलियां अव्वल दर्जे की हैं।अदाकार पर्दे के पीछे से इन कठपुतलियों से अभिनय करवाते है और खुद सवाल-जवाब करने एवं ऑपेरा गायन के जरिए उन के अभियन में जान डालते हैं।

इस शैली का प्राचीन ऑपेरा चीन के विभिन्न क्षेत्रों में लोकप्रिय था,पर आधुनिकीकरण

के चलते वह अन्य परंपरागत लोककलाओं की ही तरह लुप्तप्राय होने लगा है।हपे प्रांत के चमड़ा कठपुतली ऑपेरा मंडली के निदेशक श्री चांग श्यांग-तुंग ने कहाः

"अब चमड़ा कठपुतली ऑपेरा सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों में अपने दर्शक पा सकता है। इस दौर में लोगों को बहुत जल्दी है, इसलिए लोग, खासकर युवा लोग फॉस्ट म्यूजिक की तरफ भाग रहे हैं।अब ग्रामीण क्षेत्र में जो लोग चमड़ा कठपुतली ऑपेरा देखते हैं,वे सब के सब बुजुर्ग लोग हैं।युवा लोगों की इस में कोई दिलचस्पी नहीं रही,इसे सीखना तो दूर।सो चिंताजनक बात यह है कि इस कला का अस्तित्व ही दूभर न हो जाए।"

फिलहाल चीन सरकार द्वारा घोषित चीन की प्रथम खेप की अभौतिक सांस्कृतिक विरासतों की नामसूची में चमडा कठपुतली ऑपेरा शामिल है।चीनी राजकीय संग्रहालय में लगी चीनी अभौतिक सांस्कृतिक विरासत प्रदर्शनी में चमड़े से बनी 200 से ज्यादा नाज़ुक कठपुतलियां और साजो-सामान दर्शकों के आकर्षण का केन्द बने हुए हैं । प्रदर्शनी में चीन सरकार द्वारा इधर के कुछ वर्षों में विदेशों से वापल लाए गए कुछ दुर्लभ व कीमती चीनी सांस्कृतिक अवशेष भी प्रदर्शित किए गए हैं,जिन्हें कोई एक सदी पहले या इस से अधिक समय पहले साम्राज्यवादी ताकतें चीन से उठा कर स्वदेश ले गई थीं।इन वस्तुओं में 3000 साल पहले तांबे से निर्मित किया गया एक भीमकाय "ज़ी लुंग तींग"नाम का एक गोलाकार पात्र भी शामिल है ।उस पर आकृतियों वाली प्राचीन चीनी लिपि में "ज़ी लुंग" यानी ड्रैगन शब्द उकेरे गए हैं और बारीक बेलबूटे भी उत्कीर्ण हुए हैं।ध्यान रहे कि चीन में प्राचीन काल में तांबे से बने ऐसे भीमकाय पात्रों की संख्या केवल दो है।उन में से एक अन्य का आकार चौकोना है।वह शुरू से ही चीन में सुरक्षित रहा है।चीनी ऐतिहासिक ग्रंथों में कब से इन दोनों पात्रों को प्रथम दर्जे की राजकीय मूल्यवान धरोहर के रूप में देखा जाता रहा है।इस समय चीनी राजकीय संग्रहालय में ये दोनों पात्र एक दूसरे की शोभा बढाते दीख रहे हैं।

सांस्कृतिक विरासत दिवस मनाने के लिए पेइचिंग के अन्य एक संग्रहालय में भी चीनी सांस्कृतिक अवशेषों के ढेरों फोटो व संबंधित दस्तावेजों की प्रदर्शनी लगी हुई है,जिस ने लोगों को चीन में सांस्कृतिक अवशेषों की रक्षा में हासिल उपलब्धियों और संबंद्ध कानून-कायदों की जानकारी पाने का एक अच्छा मौका प्रदान किया है।प्रदर्शनी के उद्घाटन-समारोह में चीनी संस्कृति मंत्री सुन च्या-चंग ने हमारे संवाददाता से कहाः

"देश में सांस्कृतिक अवशेषों को बचाने और संरक्षित करने का कार्य एक अत्यंत कुंजीभूत दौर से गुजर रहा है,जिसे समाज के विभिन्न क्षेत्रों से समझ व समर्थन पाने की फौरी ज़रूरत है।सांस्कृतिक विरासत दिवस मनाने का लक्ष्य सांस्कृतिक अवशेषों की रक्षा से जुड़ी जानकारियों व कामयाबियों का प्रचार-प्रसार करना,पूरे समाज में सांस्कृतिक अवशेषों के संरक्षण के प्रति समझ को बढ़ाना,सांस्कृतिक अवशेषों की रक्षा के प्रति जन समुदाय में जागृति लाना और सांस्कृतिक अवशेषों के संरक्षण में विभिन्न क्षेत्रों की समान हिस्सेदारी का अच्छा वातावरण तैयार करना है।"

श्री सुन च्या-चंग ने उम्मीद जताई कि इस प्रदर्शनी से प्रेरित होकर और ज्यादा लोग मातृभूमि के सांस्कृतिक अवशेषों के मूल्य और मोह शक्ति से वाकिफ हो जाएंगे और सांस्कृतिक अवेशषों की रक्षा के जरिए अपने आध्यात्मिक घर को अच्छी तरह सुरक्षित कर सकेंगे।