कठपुतलियाँ निर्जीव होती हैं। लेकिन इन कठपुतलियों के मनोरंजन का स्रोत और श्रेय उन कलाकारों को जाता है जो अपनी उंगलियों की क्षमता पर दर्शकों के दिल जीत लेते हैं। उनके हुनर से इन निर्जीव प्राणियों पर मानो एक खास किस्म का मानवत्व डाल दिया जाता है जिस से दर्शक इन कठपुतलियों के जरिये मानवी अनुभवों को महसूस कर सकते हैं।
चीन में परंपरागत कठपुतलियों की प्रदर्शन में छुएनचोउ की कठपुतलियाँ काफी मशहूर हैं और इस की इतिहास लगभग 2,000 वर्ष पुराना है। यहाँ पर कठपुतलियाँ मानव और भगवान के एक दूसरे से मिलते-जुलते रूप जैसी रही है। इस वजह से वे शुरु से ही स्थानीय लोगों के धार्मिक जीवन का एक अभिन्न अंग रही है। यहां कई वर्षों से भूत- प्रेतों और हानिकारक तत्वों को भगाने में कठपुतलियों के प्रदर्शन और दूसरे प्रकार की गतिविधियाँ आयोजित की जाती हैं। इसके अलावा शादियों और जन्म-दिवसों जैसे शुभावसर पर भी कठपुतलियों के कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।
छुएनचोउ की कठपुतली की कद लगभग 70 सें.मि लंबी है और सिर के साथ साथ इस के पेच, पैर, शरीर से धागा जुड़ा हुआ है जिस के जरिये कठपुतलियों पर काबू रखा जाए और कलाकार भिविन्न किस्म के मनोरंजन सिर्फ धागे के आधार पर लोगों को दे सके। कठपुतलियों के सिर आम तौर पर कपूर या लकड़ी के हैं और इन के भीतर कुछ उकपरण रखे गए हैं जिन के जरिये कठपुतलियों के चेहरों पर विभिन्न प्रकार के भाव पैदा किये जाए।इन के पेट बांस का बने हैं और उन के हाथ-पैर उन के द्वारा निभायी गयी भूमिकाओं पर आधारित हैं।मिसाल के तौर पर जब भी कठपुतली एक आम आदमी की भूमिका निभाती है तो उस के हाथ में कलम रखा हुआ है पर जब भी वह सैनिक की भूमिका अदा करती है तो उस के हाथ में तलवार लगी है। कुछ तो जूते पहनाए हुए हैं और कुछ खाली पैर रखे हुए हैं। पैरों के मामले में एक खास बात है कि स्त्रियों और पुरुषों के पैरों में काफी फर्क होती है। कठपुतलियों की कार्यवाहियों पर नियंत्रण के लिए एक मिटर लंबी सुता है जिसके जरिये 16-32 धागों को, जो कठपुतलियों के जोड़ों से जुड़े हुए हैं नियंत्रित किया जाता है।
छुएनचोउ कठपुतलियों के बारे में यह कहा जाता है कि इस के 700 से भी अधिक रुप हैं और इस की इतिहास कई वर्षों की हैं। पारम्परिक कार्यक्रमों में से एक कार्यक्रम मुलियन के अपनी माता का बचाव जो सात दिनों और रातों तक चलता है और यहां की कठपुतलियों की क्वेइलेइ धुन आज भी काफी अनोखी और मधुर मानी जाती है। इस ध्वनि को रुप देने वाले कई ऐसे संगीत यन्त्र हैं जो अद्भुत है। कठपुतलियों को नचाने वाले कलाकारों की कुशलता भी पूरे चीन में विख्यात है।
पारम्परिक कठपुतलियों की मंडलियाँ आज भी शादी, जन्म और मौत तथा धार्मिक अवसरों पर प्रदर्शन करती हैं और स्थानीय बोली मिन्नान बोली का प्रयोग करती हैं। इन प्रदर्शनों की तकनीक सुंग और युएन राजवंशकाल की तकनीकों से प्रभावित हुई हैं।
आम तौर पर कठपुतलियों के कलाकार स्थानीय लोगों की धार्मिक जिंदगी से जुड़े होते हैं पर साथ ही वे जादू-टोना में भी माहिर हैं। फुच्यांग प्रान्त में कठपुतलियों का कार्यक्रम थांग राजवंशकाल में आरम्भ हुआ था और मिंग व छिंग राजवंशों के काल में मशहूर होने लगा। तब से लेकर आज तक वह स्थानीस लोककला में सर्वोपरि स्थान पर रहा है। कलाकारों को कलाकार नहीं बल्कि गुरु की इज्जत दी जाती है।
छुएनचोउ के कठपुतलियों में धार्मिक रंगों की विशेषता है जो ताओपंथ से प्रभावित है। इस के अलावा यह कला ताओपंथ के संगीत, साहित्य और इतिहास से भी काफी प्रभावित है।
यहां की कठपुतलियों की कलात्मक सुंदरता भी लाजवाब है। वो चाहे लकड़ी की शिल्पकारी हों या गुलालों से इनकी सजावट, थांग और सुंग राजवंशों के काल के चित्रकला और लकड़ी की शिल्पकारी से प्रभावित हुई हैं। इसके इलावा कठपुतलियों की कानों, दाँतों और आँखों के जरिये इन के चेहरों को अलग-अलग रुप दिया जाता है। कलाकार दस धागों से कठपुतलियों का प्रदर्शन ऐसे करते हैं मानो वे इन से जो चाहे वो करा ले और इन के जरिये लगभग सभी भावों का प्रदर्शन संभव हो सके। इस कला में निपूर्ण होने में कई सालों की मेहनत और लगन की जरुरत है। जरा सी भूल होने पर प्रदर्शन विफल होता है।
कठपुतलियों के निर्माण में सिर और कपड़े बनाना दो मुख्य चीजें हैं। आम तौर पर एक कठपुतलि बनाने में पांच दिन लगते हैं।
हुआंग यीछुए एक ऐसे शक्स हैं जो छुएनचोउ के कठपुतलि प्रदर्शन का बादशाह माने जाते हैं। अभी तक वे अपने कला का प्रदर्शन तीस से भी ज्यादा देशों में कर चुके हैं। उन का कला-कौशल इतना लाजवाब हैं कि वे कठपुतलियों से लिखने, छोटी चीजों को उठाने और यहां तक कि एक गिलास से दूसरे में चाय डालने जैसे क्रियाएँ भी करा सकते हैं।
हुआंग का जन्म एक गरीब परिवार में सन् 1928 में हुआ था। तेरह वर्ष की उम्र में ही वे कला-मंडली में शामिल हो गए। इस के बाद इस कला में निपूर्ण होने में उन्हें पांच साल लगे।
आज हुआंग 78 वर्ष के हैं और उन्हें इस बात की चिन्ता है कि उन के बाद छुएनचोउ की इस परंपरागत कला को कौन किस तरह से जारी रखेगा।
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