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(GMT+08:00) 2006-09-22 15:10:59    
मौलाना अब्दुरेकिप की देशभक्ति की भावना

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सिन्चांग में नामी गिरामी इसलाम धर्म के मौलाना श्री अब्दुरेकिप की देशभक्ति की कहानी । सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश में इसलाम धर्म में आस्था रखने वाली दस अल्पसंख्यक जातियां रहती हैं । जिन में से वेवूर जाति के मौलाना श्री अबुदुरेकिप एक देशभक्त धार्मिक नेता हैं ,जो वहां अत्यन्त सम्मानीय रहे हैं ।

इस साल 44 वर्षीय मौलाना अब्दुरेकिप सिन्चांग इस्लाम प्रतिष्ठान के उप प्रभारी हैं । जब हमारे संवाददात उन से मुलाकात हेतु इस्लाम प्रतिष्ठान पहुंचे , तो प्रतिष्ठान के इस्लामी शैली के भवन में से कुरान पढ़ने की आवाज सुनाई दे रही है ।

ऊंची मोटी दीवारों से घिरे साफ सुथरे आंगन में गर्मियों के दिन भी बहुत शीतल लगती है। आंगन में ही मौलाना अबुदुरेकिप से मुलाकात हुई , वे कद में लम्बे है और मुंह पर गाढी दाढी है , वे चुस्त तंदुरूस्त नजर आते हैं और देखने में विवेक और प्रतिभाशाली लगते हैं ।

श्री अब्दुरेकिप का जन्म सिन्चांग के तुरूफान बेसिन की शैनसेन काऊंटी के एक जातियां बहुल गांव में हुआ । ऐसे माहौल में पले बढ़े अबुदुरेकिप आसानी से विभिन्न जातियों के लोगों से घुल मिल हो गए हैं।

उन्हों ने बताया कि मेरा घर वेवूर भाषा में पढ़ाने वाले स्कूल से दूर है , इसलिए बचपन में मैं हान भाषा के स्कूल में पढ़ता था और वहां हाई स्कूल से स्नातक हुआ । विश्वविद्यालय में मुझे दाखिला नहीं मिला , इसलिए माता पिता जी ने मुझे इसलाम धर्म का ज्ञान लेने की सलाह दी।

मां बाप की सलाह पर श्री अब्दुरेकिप ने कुरान की शिक्षा लेना शुरू किया । पढ़ने में मेघावी होने के फलस्वरूप उन्हों ने अल्प समय में ही कुरान के गूढ़ ज्ञान पर अधिकार कर लिया । उन्हों ने क्रमशः तुरूफान और कुरले आदि स्थानों के मस्जिद में कुरान का गहन अध्ययन किया और अरबी व हान भाषों पर भी महारत हासिल की । उन की उम्मीद थी कि वे इमाम के रूप में मस्जिद में कुरान पढ़ा सकेंगे ।

27 साल की उम्र में उन की यह ख्वाहिश साकार हो गया । शैनसेन जिले के इसलाम धर्म संघ ने इसलाम धर्म के विद्वान बने अब्दुरेकिप को जिले के सब से बड़े मस्जिद में इमाम के पद पर नियुक्त किया ।

अब्दुरेकिप के कार्यकाल के पहले साल में देश ने शैनसेन जिले में बड़े पैमाने पर तेल का दोहन शुरू किया , विश्वविख्यात थुहा तेल क्षेत्र का यहां विकास हुआ । लेकिन तेल उत्पादन के विकास के साथ साथ तेल क्षेत्र और स्थानीय निवासियों के बीच थोड़े बहुत झगड़े भी छिड़े । तेत्र क्षेत्र में कुछ तेल कुओं के छोटे मोटे साजो सामानों की अकसर चोरी की गई , जिस से तेल उत्पादन संस्था और स्थानीय लोगों में आपसी अविश्वास बढ़ा और दोनों पक्षों में आवाजाही भी बन्द हो गयी । इस नाखुश हालत पर श्री अब्दुरेकिप बहुत चिंतित हुए । इसे हल करने के लिए उन्हों ने कई उपाये सूझे। वे कहते हैः

मैं ने दो बकरी खरीद कर विशेष मुस्लिम व्यंजन बनाया और व्यंजन को लेकर तेल क्षेत्र के कार्यालय गया , हम दोनों पक्षों में बहुत स्नेहपूर्ण बातचीत हुई , इस के 13 दिन बाद ही तेत्र क्षेत्र ने पांच लाख 60 हजार य्वान की पूंजी लगा कर शैनसेन जिले में एक डामर सड़क बनायी , जिस का नाम जातीय एकता रखा गया । तेल संस्था और स्थानीय लोगों के बीच हुए अन्तरविरोधों को हल करने के लिए मैं ने कुरान के उपदेशों से जिले के मुसलमानों को समझाते हुए कहा कि हमारी अल्पसंख्यक जातियां हान जाति से अलग नहीं हो सकती , हान जाति भी अल्पसंख्यक जातियों से नहीं ,इस तरह हमारा स्थानीय विकास भी तेल क्षेत्र के विकास से अलग नहीं हो सकता । शेनसेन में तेल का दोहन हुआ , यहां की वित्तीय आय बढ़ गयी और जिले का निर्माण भी बहुत अच्छा हुआ । मैं ने कुछ मोटर गाड़ियां किराये पर ले ली और स्थानीय निवासियों को 100 किलोमीटर दूर थुहा तेल क्षेत्र में ले गया । तेल क्षेत्र का दौरा करने के बाद सभी निवासियों को बड़ी खुशी हुई , उन्हों ने कहा कि हमें क्या पता था कि तेल क्षेत्र के विकास से हमारा जिला भी समृद्ध और विकसित हो रहा है ।

श्री अब्दुरेकिप की निरंतर कोशिशों से थुहा तेल क्षेत्र और स्थानीय निवासियों के बीच का अन्तरविरोध हल हो गया , उन के इस योगदान पर तेल क्षेत्र के नेतृत्व दल ने उन्हें धार्मिक नेता की उपाधि से सम्मानित किया ।

एक साल की बात थी कि श्री अब्दुरेकिप ने थुहा तेल क्षेत्र के नेताओं से कहा कि जिले के खेतों में एक सिंचाई का कुआ खराब हो गया , जिस से खेतों में कपास के पौधे मुर्झ होने लगे । थुहा तेल क्षेत्र ने तुरंत अस्सी हजार य्वान की राशि निकाल कर कुए की मरम्मत की और वचन भी दिया कि नहर से पानी को खेतों में लाने के लिए पाइप लाइन भी बिछायी जाएगी । लेकिन दुर्भाग्य की बात थी कि कुछ दिनों बाद वहां मुसलाधार वर्षा हुई , जिस से तेल क्षेत्र के दस लाख य्वान के साजो सामान बह कर बर्बाद हो गए । श्री अब्दुरेकिप ने तेल क्षेत्र पर बोझ कम करने के लिए अपनी ओर से दस हजार य्वान की राशि निकाल कर सिंचाई की पाइप लाइन बिछवायी ।

स्थानील जन समुदाय श्री अब्दुरेकिप के परोपकारी कार्य से बहुत प्रभावित हुए ,उन्हों ने आभार प्रकट करने के लिए लम्बे पत्र लिखे और कहा कि आप की सहायता हमेशा हमारे दिल में याद रहेगी।

श्री अब्दुरेकिप ने शेनसेन जिले में जातीय एकता के लिए बहुत सारी कोशिशें की हैं । अंततः 37 साल की उम्र में वे चीनी इस्लाम संघ की ओर से मिस्र में कुरान के आगे अध्ययन के लिए भेजे गए । वर्ष 2001 में सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश की सरकार ने उन्हें सिन्चांग इस्लाम प्रतिष्ठान के उप प्रभारी के पद पर नियुक्त किया ।

प्रतिष्ठान में बेहतर प्रबंधन कार्य के कारण श्री अब्दुरेकिप को अध्यापकों और छात्रों से असीम प्यार मिला और सभी लोग उन का सम्मान करते हैं । शिक्षक अब्दुकदिर ने कहाः

वे छात्रों को बहुत तरजीह देते हैं । वर्ष 2002 में एक छात्र अचानक गंभीर बीमारी से पीड़ित हुआ , तो उन्हों ने तुरंत उस छात्र को अस्पताल पहुंचाया , समय पर बचाव उपचार से छात्र की जान बच गयी ,वरना वह बच नहीं होता । इस के अलावा उन्हों ने छात्र को पांच सौ य्वान भी दिया , अस्पताल से निकलने के बाद छात्र ने विशेष कर आभार व्यक्त किया। प्रतिष्ठान के रिटायर कर्मचारी सु चिमिन ने कहाः

मौलाना अब्दुरेकिप सचमुच एक श्रेष्ठ व्यक्ति हैं , विद्या व चरित्र किसी भी क्षेत्र में वे सम्मानीय हैं । वे हमेशा अपने वचन के पक्के रहते हैं । उन्हों ने इस्लाम धर्म के लिए बहुत से काम किये हैं और सिन्चांग की सामाजिक स्थिरता व जातीय एकता के लिए असाधारण योगदान किया है।