
प्रिय दोस्तो , आप जानते ही है कि तू लुंग जाति चीन की सब से कम जनसंख्या वाली अल्पसंख्यक जातियों में से एक है । सन 1949 में नये चीन की स्थापना के समय तु लुंग जाति आदिम समाज के अंतिम काल में थी और मुख्य तौर पर शिकार पर जीविका चलाती थी । उस समय से लेकर आज तक तु लुंग जाति के जीवन में आये परिवर्तनों को जानने के लिये हम एक दिन सुबह ऊंचे पर्वत पारकर युन्नान प्रांत के नू च्यांग प्रिफेक्चर के अधीनस्थ कोंग शान तु लुंग व नू जातीय स्वायत्त कांऊटी में स्थित तु लुंग गांव पहुंच गये ।
पर मजे की बात यह है कि सब से पहले गांव के छोर पर रहने वाले मू क्वांग मिंग के घर के कुत्ते ने भौंक-भौंककर हमारा स्वागत किया । कुत्ते की भौंकने की आवाज सुनते ही मू क्वांग मिंग के परिवारजनों ने बाहर निकलकर बड़े उत्साह के साथ हमें कमान में बिठा दिया । मू क्वांग मिंग के परिवार में पति-पत्नी को छोड़कर और दो संतानों समेत कुल चार सदस्य हैं। उस के दोनों बच्चे अब एक स्थानीय मिडिल स्कूल में पढ़ते हैं । वे हमें देखकर बड़े प्रसन्न दिख रहे थे और जल्द ही हमारे भीगे कपड़ों को सुखाने में लग गये । तु लुंग जातीय लोग इतने मेहमाननवाज़ हैं कि वे अपने घर में अधिक मेहमान आने पर स्वंय को बहुत भाग्यशाली मानते हैं ।
कपड़े सुखाते समय मैंने उन के मकान पर नज़र दौड़ाई और देखा कि लकड़ी से बने इस मकान की सजावट बहुत सीधी-सादी है । कमरे के एक कोने में सिर्फ एक नया रंगीन टी-वी सेट रखा हुआ है । मू क्वांग मिंग ने बड़े गर्व के साथ टी-वी सेट की ओर इशारा करते हुए हमें बताया कि इस टी-वी सेट में कोई बीस चैनलों के कार्यक्रम देखे जा सकते हैं । हमारे घर में पहले कोई टी-वी सेट नहीं था , यह टी-वी सेट अभी-अभी खरीदा है। इस से पहले हम ने टी-वी कभी नहीं देखा ।
मू क्वांग मिंग ने कहा कि उन्हों ने टी-वी देखने के लिये विशेष तौर पर चार सौ से अधिक य्वान खर्च कर एक छोटे आकार वाला पन-बिजली जनरेटर भी खरीद लिया है । हालांकि यह जनरेटर केवल एक हजार युनिट बिजली पैदा कर सकता है , पर टी-वी सेट चलाने के लिये इतनी बिजली पर्याप्त है । इधर के सालों में सरकार द्वारा कृषि कर माफ किये जाने से इस गांव के अधिकतर लोगों का जीवन स्तर सुधर गया है । मू क्वांग मिंग के अलावा अन्य कुछ गांव वासियों ने भी रंगीन टी-वी सेट खरीद लिये हैं ।
इस टी-वी सेट से मू क्वांग मिंग के पारिवारिक जीवन में बड़ा परिवर्तन आया है । विशेषकर उन की बेटी चिन ह्वा टी-वी देखना बहुत पसंद करती है । उस ने हमें बताया कि मुझे टी-वी देखना बहुत पसंद है , क्योंकि टी-वी से मैं पाठय पुस्तकों के अतिरिक्त बहुत सी जानकारी प्राप्त कर सकती हूं और बाहरी दुनिया भी देख पाती हूं । चिन ह्वा और छोटा भाई मू छोंग रूंग बड़े पर्वत की तलहटी में स्थित एक मिडिल स्कूल में पढते हैं । आम दिनों में वे दोनों स्कूल में रहते हैं , छुट्टियों के दिन घर लौटकर गृहस्थी में मां-बाप का हाथ बटाते हैं ।
मू क्वांग मिंग के घर में पाचं सुअर और कुछ मुर्गे पाले हुए हैं । पर घर की आय मुख्य तौर पर पर्वत पर खोदी गयी जड़ी बूटियां बेचने से आती हैं । पूरे परिवार की सालाना आमदनी केवल एक हजार य्वान से कुछ अधिक है । हालांकि यह आमदनी बहुत ज्यादा नहीं है , पर केंद्र सरकार की उदार नीति के कारण कम जनसंख्या वाली अल्पसंख्यक जातियों के बच्चे मुफ्त में स्कूल में पढ़ सकते हैं , साथ ही उन्हें सरकार की ओर से भत्ता भी मिलता है । इसलिये अब उन का जीवन-स्तर पहले से काफी अधिक उन्नत हो गया है।
जलते हुए चूल्हे के पास मू क्वांग मिंग के परिवारजनों के साथ बैठ कर टी- वी देखते हुए बातचीत करने में बड़ा मज़ा आया ।
मू क्वांग मिंग के परिवारजनों से बिदाई लेने के बाद फिर हम एक दूसरे ग्रामीण के घर गये । इस घर की मालकिन मू वन शिन एक बुजुर्ग महिला है , उस के चेहरे पर चित्र गोदे गये हैं ।
पुराने जमाने में तु लुंग जाति की महिलाओं में चेहरों पर चित्र गोदने की अनोखी परम्परा थी । कहा जाता है कि बारह-तेरह वर्ष की हर लड़की को अपने चेहरे पर चित्र गोदना ज़रूरी था । पर अब यह परम्परा लुप्त हो गयी है और ऐसी महिलाओं की संख्या केवल पचास के आसपास रह गयी है ।
सत्तर वर्ष की बूढ़ी मां मू वन शिन ने उक्त पुरानी परम्परा की चर्चा में कहा कि कहा जाता है कि पुराने जमाने में तिब्बत के कुछ बदमाश हमारे यहां आकर सुंदर लड़कियों का अपहरण कर लेते थे । यहां की लड़कियां अपहरण से बचने के लिये बड़ी होकर अपने चेहरे पर बांस की सुई से चित्र गोद लेती थीं ।
बूढ़ी मां मू वन शिन पचास साल से भी पहले तू लुंग गांव में रहने आयी थी। यहां का यातायात असुविधाजनक होने की वजह से वह केवल एक बार अपनी जन्मभूमि लौट पाई । जब उस ने यहां पर राजमार्ग सेवा शुरू होने की खबर सुनी , तो भावावेश में आकर कहा कि अब उस के अपने रिश्तेदारों से मिलने का दिन आ ही गया है ।
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