
प्रिय दोस्तो , आप जानते ही है कि चीन में बहुसंख्या वाली हान जाति के अतिरिक्त और अन्य 55 अल्पसंख्यक जातियां बसी हुई हैं और वे मुख्यतः दक्षिण-पश्चिम चीन के सीमावर्ती इलाकों में रहती हैं । दक्षिण-पश्चिम चीन के युन्नान प्रांत की तु लुंग च्यांग नदी की घाटी में तु लुंग जाति का निवास क्षेत्र है । इस जाति के लोगों की जनसंख्या केवल पांच हजार आठ सौ से कुछ अधिक है । इस तरह यह कहा जा सकता है कि यह जाति चीन की सब से कम जनसंख्या वाली अल्पसंख्यक जातियों में से एक है । तु लुंग जाति की अपनी भाषा है पर लिपि नहीं है । चीनी ऐतिहासिक ग्रंथों में इस जाति से जुड़ी सामग्री बहुत है । सन 1949 में नये चीन की स्थापना के समय तु लुंग जाति आदिम समाज के अंतिम काल में थी और मुख्य तौर पर शिकार पर जीविका चलाती थी । उस समय से लेकर आज तक तु लुंग जाति के जीवन में क्या-क्या परिवर्तन आए हैं , आज के चीन का भ्रमण कार्यक्रम में हम आप के साथ तु लुंग जाति के गांव चलें और देखें ।
एक दिन सुबह जब रिमझिम वर्षा की झड़ी लगी हुई थी , हम युन्नान प्रांत के नू च्यांग प्रिफेक्चर के अधीनस्थ कोंग शान तु लुंग व नू जातीय स्वायत्त कांऊटी शहर पहुंचे । कुछ देर विश्राम करके एक अमुक बड़े पर्वत के लिये रवाना हुए , क्योंकि तु लुंग जातीय गांव एक बहुत ऊंचे पर्वत की छत पर स्थित हैं । पर्वत पर चढ़ते हुए हमारी मुलाकात एक तु लुंग जाति की युवती पाई य्येन च्वान से हुई । 18 वर्षीय युवती पाई य्येन च्वान अपने मां-बाप से मिलने कांऊटी शहर से घर लौट रही थी ।
समुद्र की सतह से 1800 मीटर से अधिक ऊंचाई पर स्थित इस बड़े पर्वत को पार करना हमारे लिये खासा कठिन काम था । साहस बटोर कर हम ने कदम तो बढाए पर थोड़ी सी चढाई के बाद ही हमारे पैर एकदम शिथिल पड़ गये और सांस लेना भी दूभर हो गया । लेकिन युवती पाई य्येन च्वान तेज़ गति से एक हिरनी की तरह ऊपर चढ़ती रही और उस के चेहरे पर थकावट का कोई निशान नजर नहीं आया । यह देखकर हम बहुत प्रभावित हुए ।
युवती पाई य्येन च्वान ने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि वह छुट्टियों के दिन अक्सर पर्वत पार करके घर लौटती है , इसलिये अब वह पर्वत पर चढ़ने की आदी हो गयी है , थकान का कोई मतलब नहीं है ।
युवती पाई य्येन च्वान इस साल एक स्थानीय नृत्य कला स्कूल से स्नातक हुई है । और कांऊटी शहर के एक जातीय नृत्य नाट्य कला मंडली में उसे नौकरी भी मिल गयी है और उसे यह काम बहुत पसंद है ।
हमारी तु लुंग जाति की जनसंख्या बहुत कम है और बाहर दुनिया से कटी हुई है । इसलिये हमारी नृत्य नाट्य कला मंडली अभिनय पेश करने के लिये अक्सर दूसरे स्थान भी जाती है , ताकि बाहरी लोग हमारी जाति के सौंदर्य , सुंदर पोषाकों व रीति-रिवाजों से वाकिफ हो सकें ।
हालांकि यह युवती बड़ी तो नहीं है , पर बातों से वह काफी परिपक्व लगती है । उस के साथ बातचीत करते-करते दो घंटे बीत गये और हमारी थकावट भी दूर गयी । फिर हम ने गौर से देखा , तो घने बादलों के बीच धुंधला सा एक पहाड़ी गांव दिखाई देने लगा । हम अपने गन्तव्य स्थान तु लुंग जातीय गांव पहुंच गये हैं ।
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