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(GMT+08:00) 2006-09-12 09:04:29    
तिब्बती परम्परागत त्योहार---श्वेतुन त्योहार

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तिब्बती पंचांग के अनुसार, हर वर्ष के सातवें महीने की पहली तारीख को श्वेतुन त्योहार मनाया जाता है, यह तिब्बती लोगों का परम्परागत त्योहार है, जिस का लम्बा पुराना इतिहास है । चालू वर्ष का श्वेतुन त्योहार अगस्त की 23 तारीख को तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा में धूमधाम से मनाया गया ।

तिब्बती भाषा में"श्वे"का मतलब है"दही"और"तुन"का मतलब"खाना"। इस तरह"श्वेतुन"का अर्थ होता है"दही खाना"। जाहिर है कि श्वेतुन त्योहार तो दही खाने के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। किन्तु कालांतर में श्वेतुन त्योहार के विषयों में काफी परिवर्तन आया और दही खाने की जगह मुख्य तौर पर तिब्बती ऑपेरा ने ले लिया, इस के कारण इस त्योहार को तिब्बती ऑपेरा त्योहार भी कहलाया जाने लगा।

कहा जाता है कि तिब्बती बौद्ध धर्म के गरूबा संप्रदाय यानी पीला संप्रदाय के संस्थापक गुरु त्सोंग खा पा ने तिब्बती बौद्ध धर्म का सुधार करने के वक्त कड़े शील निर्धारित किए । तिब्बती पंचांग के अनुसार, वर्ष के हर चौथे से छठे महीने तक तिब्बत में गर्मियों का मौसम होता है । इस दौरान विभिन्न नस्लों के छोटे बड़े जीव जंतु क्रियाशील होने लगे । इन जीव जंतुओं की रक्षा करने के लिए चौथे से ले कर छठे माह तक तिब्बती बौद्ध धर्म के भिक्षुओं को मठों के बाहर जाने की अनुमति नहीं दी जाती है और उन्हें मठों में लगन से बौद्ध सूत्रों का अध्ययन करना पड़ता है । वे छठे माह के अंत और सातवें माह के शुरू में मठों के बाहर जा सकते है । तिब्बत में यह फ़सल काटने का मौसम है, सुरा गाय और भेड़ बकरी हृष्ट पुष्ट हो जाते हैं और उन के दुध अच्छी गुणवत्ता में मिलते हैं । इस लिए जन साधारण भिक्षुओं को भिक्षा के रूप में दही प्रदान करते हैं और मठों में भी दही से अपने मेहमानों का सत्कार किया जाता है, इसी तरह दही खाने का त्योहार यानी श्वेतुन त्योहार पैदा हुआ ।

पांचवें दलाई लामा के समय में श्वेतुन त्योहार में दही खाने के साथ-साथ रंगबिरंगे तिब्बती ऑपेरा प्रदर्शित किये जाने लगे ।

परम्परागत श्वेतुन त्योहार का संचालन मुख्यतया तिब्बत के तीन प्रमुख मठों में से एक ज़ाइबुंग मठ करता है । इस लिए श्वेतुन त्योहार के प्रथम दिन को ज़ाइबुंग थ्वेतुन भी कहा जाता है ।

श्वेतुन त्योहार के प्रथम दिन के सुबह तिब्बती लोग विभिन्न स्थानों से राजधानी ल्हासा के पश्चिम भाग में स्थित जाइबुंग मठ एकत्र हो जाते हैं, इसी दिन मठ में एक विशाल लोह ढांचे पर बुद्ध का शानदार चित्र फैला कर दिखाया जाता है, यह श्वेतुन त्योहार की शुरूआति रस्म है । ज़ाइबुंग मठ के भिक्षु धार्मिक वाद्य यंत्रों की धुन में तिब्बती थांगखा चित्रकला शैली में खिंची हुई एक शानदार बुद्ध तस्वीर को एक लोह के ढ़ांचे पर फैला कर रखते हैं, जिस पर बौद्ध धर्म के त्रिकाल के भगवान के रंगीन चित्र दिखाई देते हैं, त्रिकाल के भगवान में बीते काल, वर्तमान काल और भावी काल के तीन रूपों के बुद्ध भगवान हैं । शानदार बुद्ध चित्र की प्रदर्शन रस्म संपन्न होने के बाद तिब्बती लोग बड़ी आस्था के साथ आगे बढ़ कर चित्र के सामने पूजा प्रार्थना करते हैं और बुद्ध तस्वीर पर शुभ सूचक तिब्बती सफेद हादा और धन दौलत की भेंट करते हैं । ऊंचे विशाल पहाड़ पर रखे जाने के कारण यह विशाल बुद्ध तस्वीर दस से ज्यादा किलोमीटर दूर दूर साफ साफ दिखाई देती है ।

बुद्ध तस्वीर दिखाने के दौरान जाइबुंग मठ में विभिन्न धार्मिक गतिविधियां भी चलायी जाती हैं , इस के साथ ही मठ के भीतर तिब्बती ऑपेरा का कार्यक्रम भी शुरू होता है । तिब्बती बौद्ध अनुयायी असीम आस्था के भाव में पूज्य बुद्ध को तिब्बती ऑपेरा पेश करते हैं । तिब्बती ऑपेरा प्रदर्शन श्वेतुन त्यौहार का मुख्य अंग माना जाता है।

 श्वेतुन त्योहार के प्रथम दिन का ज़ाइबुंग शुवेतुन विशेष धार्मिक गतिविधि के रूप में माना जाता है । श्वेतुन त्योहार के दूसरे दिन की गतिविधि लोबुलिंका उद्या यानी दलाई लामा के ग्रीष्मकालीन महल में आयोजित होती है । यहां कई दिन तक तिब्बती ऑपेरा प्रस्तुत किया जाता है और अब इस में अन्य कुछ किस्मों के सांस्कृतिक प्रोग्राम भी शामिल किए गए है । इस तरह इन दिनों की गतिविधा लोबुलिंका श्वेतुन कहा जाता है । यहां तक पहुंच कर श्वेतुन त्योहार विशेष धार्मिक गतिविधि के स्वरूप से विकसित हो कर आम तिब्बती लोगों व तिब्बती बौद्ध धर्म के भिक्षुओं का साझा ऑपेरा त्योहार बन जाता है ।

तिब्बती पंचांग के अनुसार, हर वर्ष के सातवें महीने की दो से सात तारीख तक लोबुलिंका महल के पार्क में बड़े पैमाने वाला तिब्बती ऑपेरा प्रस्तुत किया जाता है । इस तरह श्वेतुन त्योहार शुद्ध धार्मिक त्योहार के रूप से नियमित तिब्बती ऑपेरा समारोह के रूप में बदल गया । पुरानी जमाने में दलाई लामा के ग्रीषमकालीन महल में आम दिनों में आम लोगों का प्रवेश सख्ती से मना था, लेकिन श्वेतुन त्योहार के दौरान विभिन्न जगतों के लोगों को वहां जा कर तिब्बती ऑपेरा का प्रदर्शन देखने की इजाजत दी जाती थी । तिब्बती ऑपेरा की रचनाओं में《चोवा सांगम》、《राजकुमारी वन छङ》、《सूची निमा》आदि बहुत मशहूर हैं । वर्तमान में तिब्बती ऑपेरा का प्रदर्शन श्वेतुन त्योहार की प्रमुख गतिविधि बन गया है । तिब्बत की राजधानी ल्हासा में श्वेतुन त्योहार की खुशियां मनाने के साथ-साथ लोका, शिकाज़े और छांगतु प्रिफ़ैक्चरों में भी गैर सरकारी तिब्बती ऑपेरा दलों का कला प्रदर्शन आयोजित होता है ।

वर्तमान काल में श्वेतुन त्योहार तिब्बत की एक जातीय विशेषता वाला त्योहार बन गया । तिब्बती ऑपेरा की मनमोहक कहानियों ने दर्शकों को बरबस आकृष्ट करने के बावजूद नयी पीढी के युवाओं को त्योहार के समय प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद उठाना ज्यादा दिल्चस्प है । हर वर्ष तिब्बती पंचांग के सातवें व आठवें माहों में तिब्बती लोग अपने परिजनों और दोस्तों के साथ शहरों से दूर दूर प्राकृतिक सौंदर्य वाले स्थलों में जाते हैं, वे तंबुओं में रहते हुए पिकनिक करते हैं,नीले आसमान के नीचे नाच गान करते हैं, और खुले जीवन का लुत्फा लेते हैं । तिब्बती लोगों ने इस प्रकार के जीवन को"लिन खा"कहते हैं । श्वेतुन त्योहार के दिनों में तिब्बती बंधु अपने निवास स्थान के आसपास के पार्कों के घास मैदान में"लिन खा"बिताते हैं तथा त्यौहार की खुशियां मनाते हैं ।