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(GMT+08:00) 2006-09-06 14:15:49    
प्रथम से पांचवें पंचन लामाओं का संक्षिप्त इतिहास

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तिब्बती बौद्ध धर्म यानी लामा धर्म की व्यवस्था में पंचन लामा का दलाई लामा की भांति विशेष स्थान होता है । अब तक लामा धर्म में कुल 11 पंचन हुए है । आज के इस  लेख में वर्तमान पंचन लामा को छोड़ कर दिवंगत प्रथम पंचन लामा से पांचवें पंचन लामा के बारे में संक्षिप्त परिचय पेश किया जाएगा ।
सन् 1645 में मंगोल जातीय शासक गुशरी खान ने , जो यु-त्सांग पर राज्य करता था, लोब्सांग छोईग्यी ग्सानत्साएन को पंचन बोकेदो  के रुप में मान कर सम्मानित किया । बोकेदो शब्द का अर्थ मंगोलिया की भाषा में सात्विक और महान् आदमी है । उसी काल से तिब्बत के शिकाजे क्षेत्र को जाषिलुंगपो मठ के अधीनस्थ रखा गया । इस तरह तिब्बत में पंचन लामा की उपाधि शुरू हो गयी ।
पंचन अरदनी आधुनिक काल में तिब्बती बौद्ध धर्म के गलुग संप्रदाय की अवतार सिस्टम के दो जीवित बुद्धों में से एक है। पंचन शब्द का अर्थ है महान् विद्वान। पंचन शब्द का पं अक्षर संस्कृत से लिया गया है , जिस का अर्थ पंडित है और चन अक्षर तिब्बती भाषा से लिया गया है ,जिस का अर्थ है महान्, इसलिए पंचन शब्द का पूरा अर्थ महान पंडित है ।
सन्1713 में पंचन लोब्सांग येषी को पंचन अरदनी के रुप में सम्मानित किया गया। अरदनी शब्द का अर्थ है अनमोल धन। पंचन लोब्सांग येषी, पांचवें दलाई लामा के अलावा,गलुग धार्मिक संप्रदाय के दूसरे जीवित बुद्ध थे, जिन्हें चीन की तत्कालीन केन्द्रिय सरकार ने सम्मानित किया था। तब से पंचन अरदनी व्यवस्था की शुरुआत हुई और गलुग शाखा में इस व्यवस्था को एक विशेष महत्व दिया जाता है। और तिब्बत के इतिहास में पहले तीन पंचनों को उन के स्वर्गवास के उपरांत सम्मानित किया गया था , जब कि लोब्सांग छोईग्यी को औपचारिक रूप से चौथे तथा लोब्सांग येषी को पांचवें पंचन लामा के रूप में सम्मानित किया गया ।
दोस्तो ,आइए अब आप सुनिए विभिन्न पीढ़ियों के पंचनों के संक्षिप्त परिचय ।
तिब्बती लामा धर्म का पहला पंचन कजुग्यी था , उन का जन्म सन् 1385 में शिकाजे के छो वो गांव में हुआ था। सन् 1432 में जब गांदान मठ के दूसरे मठाधीश ग्याछाग्यी का देहांत हो गया तो पंचन कजुग्यी को मठ का तीसरे मठाधीश के रुप में चुना गया। आठ वर्षों तक उन्होंने इस मठ का संचालन किया। इस के दौरान उन्होंने जोंगखापा की चरित्र जीवनी को संकलित किया और स्मृति भवन के ऊपरी हिस्से को सोने के पानी से बनाया , इस भवन में जोंगखापा का पवित्र स्तूप भी स्थित है, इस संरक्षण के लिए उन्हों ने सराहनीय कदम उठाये। कजुग्यी तिरपन वर्ष की उम्र में चल बसे। गांदान मठ के भिक्षुओं ने उन के सम्मान में एक स्तूप का निर्माण किया। तिब्बती विशेषज्ञों ने इन्हें पहले पंचन लामा के रूप में सम्मानित किया।
दूसरे पंचन का नाम सोइनाम छोईनाम था । सोइनाम छोईनाम का जन्म सन् 1439 में तिब्बती कलैंडर के पहले माह में शिकाजे क्षेत्र के एनशा में हुआ। उन्होंने कई वर्षों तक गांदान मठ में बौद्ध धर्म का अध्ययन किया। उन्होंने बौद्ध सूत्रों के संदर्भ में हुई वाद विवाद प्रतियोगिता में 3,000 भिक्षुओं को हार कर अपने पांडित्य को साबित किया। उनके पांडित्य को देखकर उन्हें पहले पंचन कजुग्यी का अवतार माना गया।
जब वे अपने जीवन के मध्य काल में पहुँचे, वे अपने जन्म स्थान वापस हो गये और उन्हों ने आंगोंग मठ में शिष्यों को बौद्ध धर्म की शिक्षा दीक्षा दी । यहाँ पर उन्होंने गलुग संप्रदाय के बारे में ब्याख्यान किया और उन्हें जीवित बौद्ध अन्गांग की उपाधि से सम्मानित किया गया। पैसठ वर्ष की उम्र में उनका देहांत हो गया।
तीसरे पंचन का नाम लोबसांग डाएनजुब है , उन का जन्म शिकाजे के एन्शा में सन्1507 में हुआ था। जब वे केवल आठ वर्ष के थे, उन्होंने अन्गांग मठ के पीछे खड़े पहाड़ की चोटी पर चढ़कर बौद्ध ग्रन्थों के अध्ययन में भाग लिया। सफेद कपड़ों में एक घंटी हाथ में लिये हुए इनको देखकर मठ के बाकी भिक्षु दंग रह गये। उसी वक्त से उन्हें जीवित बुद्ध के रुप में चुन लिया गया। 11 साल की उम्र में वे जाशिलुंगपो मठ में अध्ययन के लिए गए। उन का निधन सन् 1566 के दूसरे माह में हुआ , जीवन के अंतिम काल में वे दूसरे पंचन लामा का अवतार चुने गए और तिब्बत विद्यों ने उन्हें तीसरे पंचन के रूप में सम्मानित किया।
चौथे पंचन लामा लोबसांग छोग्यी है। उनका जन्म सन् 1570 में हुआ था। उनकी शिक्षा तेरह साल की उम्र में जाशिलुंगपो मठ में आरम्भ हुई और वे जीवित बुद्ध अंगांग का अवतार बच्चे चुने गए। वे जाशिलुंगपो मठ के सोलहवें मठाधीश बन गये और इस दौरान उन्होंने मठ की नियमावली बनायी और एक खुला स्कूल खोला तथा अन्य कई रचनात्मक कदम उठाये थे , जिससे वे गलुग संप्रदाय के सम्मानीय धार्मिक नेता के रुप में काफी प्रसिद्ध हो गये । सन् 1603 में जब तीसरे दलाई लामा के अवतार बालक मंगोलिया से तिब्बत आए, तो उन के स्वागत में जाषीलुंगपो मठ के लोबसांग छोग्यी ने बौद्ध धर्म के रीति रीवाजों के अनुसार एक भव्य सामारोह आयोगित किया। सन् 1662 में 93 वर्ष की उम्र में उनका देहांत हो गया, उन के अंतिम संस्कार में छिंग राजवंश के सम्राट और भूतान व नेपाल के राजाओं ने अपने अपने दूत भेजे थे ।
पांचवें पंचन लामा लोबसांग येषी थे । पांचवें पंचन लामा लोबसांग येषी का जन्म सन् 1663 में चुत्सांग नामक गांव में हुआ। सन् 1668 में पांचवें दलाई लामा के आदेशानुसार उन्हें पांचवें पंचन लामा चुने  गये। उनके पंचन लामा के रुप में चुने जाने के अवसर पर जो समारोह आयोजित किया गया, उसमें छिंग राजवंश के सम्राट ने अपने उच्च पदाधिकारी भेजे। लोबसांग येषी ने छठे और सातवें पंचन लामा को बौद्ध सूत्रों की शिक्षा दी। अपने जीवन काल के दौरान उन्होंने तीस हजार से भी अधिक शिष्यों को शिक्षा दी थी । सन् 1737 में 75 वर्ष की उम्र में उनका देहान्त हो गया।