वह यह सोचकर चितित हो उठी कि कहीं राजा मीनीया पर मोहित न हो जाए और उसे अपनी रानी न बना ले।
इसलिए उस ने मीनीया को बुलवा भेजा और अपनी घृणा व ईष्या को दबाकर स्नेहपूर्ण स्वर में उस से कहा ।
"मेरी प्यारी मीनीया, तुम तो सचमुच बहुत खूबसूरत हो गई हो।
आखिर मुझे भी तो बताओ कि तुम ने क्या खाकर अपने को इतना सुन्दर व आकर्षक बना लिया है।
अगर तुम मुझे इस का रहस्य बता दोगी, तो मैं तुम्हें मुंहमांगा इनाम दूंगी। बताओ मीनीया, बताओ।
मैं यह रहस्य जाने बिना जिन्दा नहीं रह सकूंगी।
तुम कितनी अच्छी लड़की हो।
मैं जानती हूं कि तुम्हारे दिल में दया की भावना कूट कूटकर भरी है और तुम मुझे दुख में छटपटाते नहीं देख सकती।"
रानी ने सोचा था कि इस तरह खुशामद करके वह मीनीया से उसकी सुन्दरता का रहस्य मालूम कर लेगी और फिर वह खुद भी उतनी ही खूबसूरत बन जाएगी।
लेकिन मीनीया रानी की रग रग से वाकिफ थी।
उस के मुंह से एक भी शब्द न निकला और वह हिकारत की नजर से रानी की ओर देखती रही।
रानी की कोशिश नाकाम रही। वह मीनीया की सुन्दरता का रहस्य मालूम न कर सकी और इतनी बेचैन हो उठी कि उस की आंखों की नींद उड़ गई।
वह पलंग पर लेटी-लेटी आंखों में ही रात काटने लगी।
दूसरी तरफ, अन्य दास दासियों के साथ मीनीया के संबंध दिन पर दिन मधुर होते गए और मीनीया उन सबको बहुत चाहने लगी। यह देखकर रानी ने एक षड्यंत्र रचा।
अगली सुबह रानी द्वेषपूर्ण स्वर में मीनीया से बोली
"अगर तुम अपना रहस्य मुझे नहीं बताओगी, तो मैं राजा से कहकर राजमहल के सब दास दासियों को मरवा डालूंगी।"
रानी की इस धमकी से मीनीया को इतना दुख पहुंचा कि वह रोती हुई अपने कमरे में लौट आई। रोते रोते उस की आंखें लाल हो उठीं और सूज गईं।
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