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(GMT+08:00) 2006-08-29 12:53:59    
तिब्बत का प्रथम राज महल युंगपुलाखांग भवन

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चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के बारे में आप कुछ न कुछ जानते होंगे , पर शायद आप ने तिब्बत में प्रचलित यह कहावत कभी नहीं सुनी होगी कि तिब्बत विश्व की छत पर स्थित है और तिब्बत का उद्गम स्रोत शान्नान प्रिफैक्चर में है । शान्नान प्रिफैक्चर तिब्बती जाति का हिंडोला और तिब्बती संस्कृति का उद्गम स्थल माना जाता है । इस प्रिफैक्चर में युंगपुलाखांग राजमहल बहुत मशहूर है ।

युंगपुलाखांग राजमहल शान्नान प्रिफैक्चर की राजधानी चह तांग कस्बे से दस किलोमीटर की दूरी पर स्थित चाशित्सेर पर्वत पर स्थित है । तिब्बती भाषा में युंगपु का मतलब हिरनी है और ला का मतलब पिछली टांग है , जबकि खांग का अर्थ है राजमहल । क्योंकि चाशित्सेर पर्वत का आकार एक सुप्त हिरणी जैसा जान पड़ता है , इसलिये युंगपुलाखांग भवन हिरणी की पिछली टांगों पर स्थापित राजमहल के नाम से विख्यात हो गया है। तिब्बती जाति के बीच युंगपुलाखांग भवन के निर्माण से जुडीं बहुत-सी मर्मस्पर्शी कहानियां आज तक लोगों की जुबान पर हैं । कहा जाता है कि थूफान यानी तिब्बत का प्रथम राजा चानफू स्वर्ग देवता का बेटा था । एक दिन जब वह स्वर्ग की सीढ़ियों से उतर कर यालूंग नदी की घाटी के चानथांग मैदान पर आया , तो स्थानीय चरवाहे उसे देखकर बेहद आश्चर्यचकित हुए और उसे अपना राजा बना लिया । फिर इन चरवाहों ने उसे अपने कंधों पर बिठाकर उसे न्येचिचानपू नाम दिया । तिब्बती भाषा में न्ये का मतलब है गला , चि का अर्थ है सिंहासन और चानपू का अर्थ है बहादुर राजा । अतः न्येचिचागपू का पूरा अर्थ है गले के सिंहासन पर बैठा वीर । इस के बाद तिब्बत के इतिहास में हरेक तिब्बती राजा को चानपू कहा जाने लगा । स्थानीय चरवाहों ने राजा न्येचिचानपू के सम्मान में युंगपुलाखांग राजमहल का निर्माण किया । आज युंगपुलाखान-भवन तिब्बती बौद्ध-धर्म की उप शाखा ह्वाग-धर्म के मठ के रुप में जाना जाता है । इस मठ के भिक्षु लोसांगयुनतान ने इस मठ का परिचय देते हुए बताया :

"युंगपुलाखांग-भवन तिब्बत में स्थापित सब से पुराना राजमहल है , करीब ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में तिब्बत के प्रथम राजा न्येचिचानपू के शासन काल में यह निर्मित हुआ था । पहले थांग-राज्य की राजकुमारी वन-छंग इस राजमहल में रहती थी , बाद में ल्हासा का पोटाला महल बनवाया गया , तब राजकुमारी वन छंग पोटाला महल में स्थानांतरित हो गयीं किंतु युंगपुलाखांग राजमहल उन के ग्रीष्मकालीन भवन के रूप में बना रहा ।"

माना जाता है कि थांग-राजवंश की राजकुमारी वन-छंग की शादी तिब्बत के 33 वें राजा सुंगचानकांगपू के साथ हुई थी। राजकुमारी वन-छंग तिब्बत में प्रवेश करने के बाद पहले गर्मियों में युंगपुलाखांग महल में रहती थी । ईसा की सातवीं शताब्दी में तिब्बती राजा सुंगचांगकानपू ने छिंग हाई तिब्बत पठार को एकीकृत करने के बाद राजधानी ल्हासा में स्थानांतत्रित कर दिया , साथ ही ल्हासा में राजकुमारी वन-छंग के लिये आलीशान पोटाला महल बनवा दिया । युंगपुलाखांग महल राजा सुंगचानकांपू और राजकुमारी वन-छंग का ग्रीष्म महल रह गया ।

भिक्षु लोसांगयुनतान ने तो हमें युंगपुलाखांग महल का दौरा ही करवा दिया । यह राजमहल दो भागों में बटा हुआ है । अगले भाग में एक तीन-मंजिला भवन नजर आता है , दूसरे भाग में एक बहुमंजिला चौकोर गढ़ खड़ा हुआ है । अगले भाग के तीन मंजिले भवन के लोबी हाल में तिब्बत के न्येचिचानपु , चिसूंगचानपू और सुंगचानकानपू समेत अनेक सुप्रसिद्ध राजाओं की मूतियां रखी गयी हैं ।

प्रथम मंजिल पर एक बहुत सुंदर सूत्र-कक्ष में अवलोकितेश्वर और शाक्यमुनि की मूर्तियों की पूजा की जाती है । इस के अतिरिक्त कक्ष की चार दीवारों पर बेहद मूल्यवान भित्ति चित्र चित्रित हैं । इन भित्ति-चित्रों में तिब्बत के प्राचीन इतिहास का वर्णन किया गया है , जिन में तिब्बत के प्रथम राजा न्येचिचानपू से जुड़ी कहानी सब से चर्चित है ।

भिक्षु लोसांगयुंतान का कहना है कि पांचवें दलाई के काल में युंगपुलाखांग महल ह्वांग यानी पीले धर्म के मठ के रूप में बदल गया था, बाद में बौद्ध सूत्रों का और अच्छी तरह अध्ययन करने के लिये गढ़ के ऊपर चार कोनों वालीं नुकीली छतें निर्मित हुईं , अब इन छतों के कुछ कमरे बहुत से उच्च स्तरीय भिक्षुओं द्वारा सूत्रों का अध्ययन करने की विशेष जगहें बन गयी हैं । भिक्षु लोसांगयुंगतान ने आगे कहा कि आजकल यहां 11 प्रसिद्ध उच्च स्तरीय भिक्षु बौद्ध सूत्रों पर शोध करने में संलग्न हैं , इस के अतिरिक्त विशेष तौर पर दलाई लामा के लिये एक शयन कक्ष भी सुरक्षित रखा गया है । प्रतिदिन हजारों स्थानीय अनुयायी और देशी विदेश पर्यटक यहां आते हैं ।