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(GMT+08:00) 2006-08-23 10:29:22    
आधुनिक तकनीक के जरिये टेरा-कोटा मूर्तियों का संरक्षण

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उत्तर-पश्चिमी चीन के शि-आन शहर में विश्व में जानी-मानी टेरा-कोटा मूर्तियों का अजायबघर स्थित है , जिसमें प्राचीन-काल के छिन राजवंश के दौरान बनी पकी मिट्टी के हजारों घोड़ों और सैनिकों की मूर्तियां प्रदर्शित हैं । छिन राजवंश के प्रथम राजा छिन-शी-ह्वांग का मुकाबला करने के लिए कई हजार पकी मिट्टी की घोड़ों और सैनिकों की मूर्तियां बना कर यहां छिपाई गयीं । वर्ष 1970 के दशक में चीनी पुरातत्व वैज्ञानिकों ने इस महान अवशेष की खुदाई की , तब दो हजार सालों में प्रथम बार ये मूर्तियां लोगों की आंखों के सामने आयीं । लेकिन पुरातत्व वैज्ञानिकों ने टेरा-कोटा मूर्तियों की खुदाई में इस अजीब सी बात का पता लगाया कि मिट्टी की गहराई में छिपायी गयीं टेरा-कोटा की सब मूर्तियां रंग-बिरंगी हैं। लेकिन जब उन्हें हवा में निकाला गया , उन की रंगीन सतह एकदम खोने लगी । टेरा-कोटा मूर्तियों की रंगीन सतह का कैसे संरक्षण किया जाए , यह काम चीनी वैज्ञानिकों के कंधों पर आ पड़ा ।

वर्ष 1974 के वसंत में उत्तर-पश्चिमी चीन के शानशी प्रांत की लिन-थूंग कांऊटी में कुएं के लिए खुदाई करते समय किसानों के हाथ में टेरा-कोटा के कुछ टूटे हुए टुकड़े लगे । उन्होंने तुरंत इस की सूचना चीनी पुरातत्व-विभाग को दी । पुरातत्व वैज्ञानिकों ने वहां 2200 साल का इतिहास खोज कर आश्चर्यजनक टेरा-कोटा की मूर्तियां हासिल कीं । आज जब आप शानशी प्रांत की राजधानी शि-आन में निर्मित टेरा-कोटा अजायबघर का दौरा करने जाएं , तो आप की आंखों के सामने हजारों पकी मिट्टी की घोड़ों और सैनिकों की मूर्तियां कतारों में खड़ी नजर आती हैं । ये मूर्तियां सजीव आदमी और घोड़ों जैसी लगती हैं , पर इन में अधिकांश मूर्तियों का रंग ईंट जैसा है,कुछ का रंगीन है ।

शि-आन शहर के टेरा-कोटा अजायबघर के अनुसंधानकर्ता श्री चाओ थ्ये ने बताया कि जब इन टेरा-कोटा मूर्तियों को जमीन के नीचे से बाहर निकाला गया , तब वे रंगीन ही थीं । उन के बाल काले थे , त्वचा और कवच तांबे के रंग के थे , और उन के कपड़े भी लाल रंग के थे । लेकिन हवा लगने के तुरंत बाद ये रंग कई मिनटों में गायब हो गये । टेरा-कोटा मूर्तियों के रंग खोने के कारण अब हमें महसूस होता है कि, एक तो ये दो हजार साल से जमीन के नीचे छिपी रही हैं , टेरा-कोटा की सतह मिट्टी व पानी की वजह से सड़ी हुई है । दो , रंगीन सतह में पशु या वनस्पति से निर्मित चिपचिपे पानी का हवा में ऑक्सिजन के साथ ऑक्सीकरण हो जाता है । इसलिए ये रंग जल्द ही हवा के सम्पर्क में आते ही उड़ गये ।

टेरा-कोटा के रंगों का संरक्षण करने के लिए शि-आन शहर के टेरा-कोटा अजायबघर ने एक संरक्षण-दल स्थापित किया । इस के तहत अनुसंधानकर्ताओं ने मौजूदा टेरा-कोटा का अथक अनुसंधान और अनगिनत प्रयोग कर टेरा-कोटा की सतह के रंगों का संरक्षण करने वाले उपाय तलाशने में सफलता हासिल की । इस दौरान चीनी अनुसंधानकर्ताओं ने विदेशी संस्थाओं के साथ सहयोग कर विदेशी विशेषज्ञों की मदद भी प्राप्त की । श्री चाओ ने कहा , हम ने अनेक वर्षों तक जर्मनी के साथ सहयोग किया । जर्मनी ने हमें व्यक्ति , खर्च और तकनीक के संदर्भ में बड़ी मदद की । दोनों के अनुसंधानकर्ताओं ने टेरा-कोटा के संरक्षण में दसेक किस्मों की संरक्षण तकनीक के अनुसंधान में विजय प्राप्त की । अंत में विशेषज्ञ टेरा-कोटा के रंग के संरक्षण में सफल रहे हैं।

अथक प्रयासों के जरिये विशेषज्ञों ने टेरा-कोटा के रंग के संरक्षण में दो उपायों का आविष्कार किया । पहला उपाय है ,कि नये टेरा-कोटा की खुदाई करने के चार मिनटों के भीतर इसे तुरंत नियमित तापमान व उमस वाले किसी कृत्रिम वातावरण में रखा जाएगा , और फिर छोटे चाकू से खुरच कर टेरा-कोटा की रंगीन सतह को अलग किया जाएगा । अंत में किसी अन्य तकनीक के माध्यम से इन रंगीन सतहों को मजबूत किया जाएगा । पर इस उपाय से एक टेरा-कोटा की रंगीन सतह को संरक्षित करने में पूरा एक साल लगेगा । अभी तक तकनीशियनों ने कुल दस टेरा-कोटाओं के रंगों का संरक्षण किया है । संरक्षित रंगीन सतह की स्थिति सुस्थिर और ताजा बनी रही है । चीनी राजकीय सांस्कृतिक अवशेष ब्यूरो का कहना है कि यह तकनीक प्रगति विश्व की उन्नतिशील पंक्ति पर जा पहुंची है ।

दूसरा उपाय ऐसा है कि हटाई हुए रंगीन सतह के ऊपर तकनीशियन किसी किस्म का तरल पदार्थ फैलाते हैं। जब यह तरल पदार्थ सूख जाता है , तब यह रंगीन सतह मजबूत बन सकती है । क्योंकि तरल पदार्थ से निर्मित इस सतह को उच्च ऊर्जा की किरण के नीचे किरणित किया जाता है , इस प्रकार टेरा-कोटा की रंगीन सतह शरीर के साथ बहुत घनिष्ठ तौर पर चिपकती है। इस तकनीक के प्रयोग के कई साल बाद टेरा-कोटा की रंगीन सतह अभी भी ताजा बनी हुई है । शि-आन शहर के टेरा-कोटा अजायबघर के उप प्रधान श्री लेइ यू पिंग ने कहा , टेरा कोटा की रंगीन सतह का संरक्षण करना हमारा अंतिम लक्ष्य नहीं है । इससे और अधिक महत्वपूर्ण है कि हम उन्नतिशील तकनीक के जरिये टेरा-कोटा का संरक्षण कर इन्हें विश्व भर के पर्यटकों के सामने प्रदर्शित कर सकें । रंगीन सतह के हटने के सवाल को छोड़कर , टेरा-कोटा की सतह पर फफूंद लगने आदि के सवाल भी मौजूद हैं । शिआन शहर के टेरा-कोटा अजायबघर के तकनीशियनों ने इस संदर्भ में भी अनुसंधान शुरू किया है । अजायबघर के अनुसंधानकर्ता श्री चाओ थ्ये ने कहा , छिन राजवंश के प्रथम राजा छिन-शी-ह्वांग का मुकाबला करने के लिए टेरा कोटा की इन मूर्तियों को ऐसे निर्मित किया गया है,कि इन का ऊपरी भाग लकड़ियों से बना हुआ है । पर दीर्घकाल तक पानी और गुरुत्वाकर्षण के कारण लकड़ी वगैरह सब सड़ गई हैं । लकड़ी के नीचे छिपे हुए टेरा-कोटा की सतह पर भी फफूंद उग आई है। इस सवाल के समाधान में विशेषज्ञों ने इन अवशेषों के संरक्षण के लिए उन्नतिशील तकनीक का अनुसंधान शुरू किया है ।

आंकड़े बताते हैं कि शि-आन शहर के टेरा-कोटा अजायबघर ने अपने उद्धाटन से अभी तक कुल 5 करोड़ 50 लाख चीनी व विदेशी पर्यटकों का सत्कार किया है । कुल 140 विदेशी राजनेताओं ने भी इस का दौरा किया है । उन्हों ने चीन द्वारा प्राचीन काल के सांस्कृतिक अवशेषों के संरक्षण के लिए किये गये प्रयासों का उच्च मूल्यांकन किया । आम लोग भी इन्हें देख कर आश्चर्य में पड़ जाते हैं। फ्रांस से आये पर्यटक श्री अंडराउक्स ने कहा , छिन राजवंश के प्रथम राजा छिन-शी-ह्वांग का मुकाबला विश्व में सब से बड़ा और सब से अच्छा सुरक्षित मुकाबला है । इसे देखने पर मुझे महसूस हुआ है कि चीन ने प्राचीन काल से बचे सांस्कृतिक अवशेषों के संरक्षण में भारी प्रयत्न किया है ।