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चीन की अल्पसंख्यक जाति

विज्ञान, शिक्षा व स्वास्थ्य

सांस्कृतिक जीवन
(GMT+08:00) 2006-08-11 15:08:28    
परोपकारी सेवा में सक्रिय उज्जबेक जाति के गायक

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चीन की अल्प संख्यक जाति कार्यक्रम सुनने के लिए आप का हार्दिक स्वागत । उत्तर पश्चिम चीन का सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश एक अल्पसंख्यक जाति बहुल इलाका है , जहां बहुत सी अल्पसंख्यक जातियां गाने नाचने में पारंगत हैं और वहां की उज्जबेक जाति के गायक श्री शामिली शकल अत्यन्त मशहूर है । आज की अल्पसंख्यक जाति कार्यक्रम में कला और परोपकारी कार्य में सक्रिय उज्जबेकी गायक शामिली शकल की कहानी पेश है।

वर्ष 1958 में जन्मे उज्जबेक जाति के गायक शामिली शकल चीन देश के प्रथम राष्ट्रीय श्रेणी के गायक हैं । वर्ष 1979 से अब तक उन्हों ने तापांछङ शहर की लड़की , आरा दर्रा और अर्ताओछाओची नामक करीब दो सौ गीत बनाए और अपनी आवाज में गाये । उन के गायन चीन , जापान और सिन्गापुर आदि अनेक देशों और क्षेत्रों में अत्यन्त लोकप्रिय रहे हैं और वहां वे गायन राजकुमार के संबोधन से मशहूर हैं ।

श्री शामिली शकल के कमरे में पलंग के अलावा एक प्यानो और ढेर सारी पुरस्कार कप , प्रशस्ति पत्र , प्रमाण पत्र और गीत संगीत की सामग्री रखे हुए नजर आए हैं। दीवार से लगी बड़ी बड़ी अलमारियों में पुस्तकें और किताबें भरी हुई हैं , जिन में ऐतिहासिक ग्रंथ , प्राचीन कविता तथा देश विदेश के साहित्य हस्तियों की रचनाएं शामिल है , जिस से जाहिर है कि श्री शामिली विविध प्रकार के ज्ञान के शौकिन हैं । उन्हों ने हमें बतायाः

अध्ययन बहुत महत्वपूर्ण होता है , संगीतकार और कलाकार को लगातार सृजन कर युग के कदम से कदम मिलाते हुए आगे बढ़ना चाहिए। मैं जब फुरसत मिली , तो पढ़ने बैठ जाता हूं । फौलाद कैसे बनी नामक रूसी उपन्यास में एक वाक्य मेरे लिए एक प्रेरक शक्ति सिद्ध हुआ है ,जिस में कहा गया है कि मानव का जीवन बहुत मूल्यावन होता है , जो किसी भी के लिए सिर्फ एक बार आया , वह इस प्रकार बिताया जाना चाहिए कि जब बीते समय की याद आयी , तो हमें इस परिणाम से बच जाना चाहिए कि खुद भी अपनी निकम्पेन पर शर्मा आया हो ।

श्री शामिली शकल सिन्चांग की छीथाई काऊंटी के एक स्थानीय कलाकार परिवार के सदस्य हैं , उन के पिता उज्जबेक जाति तथा माता वेवूर जाति के हैं । वे बचपन में ही नाचने और गाने के शौकिन थे । पांच साल की उम्र में पिता के साथ उन्हों ने काऊंटी के रंग मंच पर धुन के साथ नाचे , जिस की तारीफ के लिए दर्शकों ने बारंबार तालियां बजायी ।

वर्ष 1976 में हाई स्कूल में पढ़ रहे शामिली शकल ने जब सुना कि सीमा रक्षा बल काऊंटी में रंगरूट चुनने आया ,तो बड़ी खुशी से उन्हों ने नाम दर्ज कराया ,क्यों कि उन्हें सेना में काम करने की बड़ी इच्छा है । रंगरूट भर्ती परीक्षा में उन्हों ने जातीय नृत्य गान और वादन की जो बेहतर प्रस्तुति की थी , जिस के फलस्वरूप उन्हें छूट दे कर 17 साल की उम्र में ही सेना में भर्ती कर दिया गया ।

सेना में भर्ती होने के बाद वे समुद्र सतह से 4000 मीटर ऊंचे पामीर पठार पर तैनात हुए और कंपनी के अवकाश कालीन सांस्कृतिक कला शिक्षक का काम करते थे। हर त्यौहार व छुट्टी के दिन वे सैनिकों को गाने बजाने के कार्यक्रम पेश करते थे , सैनिक जीवन से प्रभावित हो कर श्री शामिली के दिल में सैनिक गीत संगीत रचने की तीव्र इच्छा उत्पन्न हुई । दिन में वे सैन्य अभ्यास करते थे , रात को एक छोटे कमरे में सैनिक गीत लिखने में जुट जाते थे । उन का प्रथम सैनिक गाना मैं सेना का गायक हूं , जो 15 दिनों में मच्छर की तंगी को झेलते हुए दरवाजे के एक पुराने तख्ते पर लिखा गया था ।

यह श्री शामिली शकल का प्रथम गीत है , वर्ष 1981 के जुलाई में श्री शामिली का यह प्रथम गीत समूची सेना के सांस्कृतिक समारोह में मंचित किया गया ,जिसे रचना तथा गायन के दो प्रथम पुरस्कार मिले । इस के बाद श्री शामिली सेना के सांस्कृतिक समारोहों में लगातार पुरस्कार जीतने लगे , जिन में मेरा गीत और मेरा रेवाप आदि गीत बहुत लोकप्रिय हो गए । वर्ष 1984 में वे औपचारिक रूप से सिन्चांग की सैनिक नुत्य गान मंडली में शामिल किए गए । उन्हों ने कहाः

मैं राष्ट्रीय श्रेणी का ऐसा प्रथम कलाकार हूं , जो अकेले सीमा रक्षा बल में गाना गाने के लिए जाता हूं , हर वसंत त्यौहार के दौरान मैं सीमा पर तैनाक सैन्य कंपनियों में जाता हूं और कार्यक्रम पेश करता हूं । अब लगातार सात साल तक जा चुका हूं , और विभन्न कंपनियों में मैं ने कुल सौ से ज्यादा प्रस्तुतियां की हैं । मैं समुद्र सतह से 4700 मीटर ऊंचे होंचीलाफू दर्रे पर भी गया , वहां मैं पठारीय व्याधि से बहुत प्रभावित हुआ , दिमाग में तेज दर्द हुई । फिर भी मैं ने वहां डटे रहते हुए सैनिकों के लिए दो गीत लिखे और उन्हें सिखाया ।

वर्ष 1999 में वसंत त्यौहार की पूर्व संध्या में श्री शामिल शकल फिर पामीर पठार पर सीमा रक्षा बल के जवानों के लिए प्रोग्राम पेश करने गए , उन की गाड़ी पहाड़ के ढलान पर सड़क में बर्फीली फिसलन के कारण आगे नहीं जा सकी , तो वे गाड़ी से उतर कर पीठे पर एकार्डियन वाद्य लादे अकेले पहाड़ की चोटी पर स्थित चौकी की ओर चढ़े , जब चौकी पहुंचे , तो उस के चमड़े के जूते भी बर्फ के पानी से पूरी तरह भीगे हो गए । वहां बिजली की लाइट नहीं थी , तो उन्हों ने तेज हवा में खड़े हो कर जवानों को गीत गाए । ठंड से उन का शरीर कांप रहा था , तो एक सैनिक ने उन के पांव पर झुक कर जूते उतार दिए और अपने गर्म रूईदार कोट से उन के दोनों पांवों को लपेट कर अपने गोद में गर्म कराने रखा । इस से प्रभावित हो कर शामिली की आंखों में आंसू भर आयी और उन्हों ने इस हालत में सीमा रक्षा जवानों के लिए एक घंटे से ज्यादा समय तक गीत गाए ।

श्री शामिली शकल परोपकारी कार्य में भी सक्रिय रहे हैं । वे समय समय पर गरीब लोगों को चंदा दे कर सहायता देते हैं । वर्ष 2002 में वे सिन्चांग के प्रथम परोपकार दूत के रूप में चुने गए । वर्ष 2003 में उन्हों ने सिन्चांग के काश्गर की एक रक्त कैंसर से पीड़ित वेवूर लड़की नामनगुल को इलाज के लिए कुल 13 हजार य्वान की सहायता दी , जिस से मदद मिल कर उस बीमार लड़की का ठोक उपचार किया गया और अंत में वह सेहतमंद हो गयी ।

वर्ष 2003 में सिन्चांग के काश्गर क्षेत्र के पाछु जिले में भीषण भूकंप आया , श्री शामिली ने तुरंत अपनी किफायत से बचाए गए दस हजार य्वान भूकंप पीड़ित सौ बच्चों को प्रदान किया , ताकि वे पुनः स्कूल जा सके । सिन्चांग के हथेन विश्वविद्यालय के अल्प संख्यक जाति के छात्र रिजब का घर गरीब है , तो स्कूली फीस के लिए श्री शामिली ने उसे 4900 य्वान की सहायता दी । इस पर चर्चा करते हुए उन्हों ने कहाः

मेरी सहायता से छात्र रिजब बहुत प्रभावित हुए , शुक्रिया अदा करने के लिए उस ने खुद मुझे चिठ्टी लिखी और उस के पिता ने आंसू बहाते हुए मुझ से कहा कि मैं उन के बेटे का दूसरा बाप हूं , कालेज से स्नातक होने के बाद उन का बेटा जरूर गांव में लौट कर चिकित्सा का काम करेंगे.

रक्त कैंसर से पीड़ित एक बच्चे ने सिन्चांग परोपकारी संघ के महा सचिव को तेलीफोन कर कहा कि वह परोपकार दूत शामिली से मिलना चाहता है । खबर पाने के बाद शामिली तुरंत महा सचिव के साथ उस बच्चे से मिलने अस्पताल गए । उन्हों ने बीमार बच्चे के लिए कई गीत गाये , जिस से बच्चा खूब रोया और शामिली की आंखें भी डबडबा हो गयीं ।

शामिली के बारे में इस प्रकार की मर्मस्पर्शी कहानी बहुत सी सुनने को मिलती है । सिन्चांग के परोपकारी संघ के महा सचिव सुश्री माली ने कहाः

श्री शामिली परोपकार दूत चुने जाने से पहले ही लगातार जन कल्याण कार्य में जुटे रहे थे , उन्हों ने अतुलनीय सदभाव का परिचय कर अपने उत्तम गायन से सिन्चांग की जनता की सेवा करते आए हैं , उन के रक्त में कला के प्रति असीम प्यार और अद्यमय भावना का संचार हो रहा है और जन कल्याण के लिए निस्वार्थ भाव और समर्पण की आस्था गर्भित होती है । सिन्चांग के परोपकारी कार्य में उन का असाधारण योगदना है ।