चीन की अल्पसंख्यक जाति कार्यक्रम सुनने के लिए आप का हार्दिक स्वागत। सिन्चांग विश्वविद्यालय के कम्प्युटर विभाग में ली च्यान नाम का एक विकलांग छात्र पढ़ता है । अपनी आठ साल की आयु में जन्म से लाई रीढ़ की बीमारी का विफल आपरेशन होने की वजह से वह विकलांग बन गया , तभी से उस के दोनों पैर खड़े नहीं हो पाए । ली च्यान की माता जी एक शिक्षक थी , अपने विकलांग बेटे की देखभाल के लिए उन्हों ने अपनी नौकरी छोड़ी और रोज बेटे को स्कूल में पढ़ने के लिए पहुंचा देना शुरू किया । इस तरह पिछले 12 सालों में ली च्यान ने अपनी मां की मदद से प्राइमरी स्कूल से हाई स्कूल तक की सभी शिक्षा पूरा कर ली और उसे विश्वविद्यालय में दाखिला भी मिला ।
ली च्यान का जन्म सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ऊरूमुची में एक साधारण नागरिक परिवार में हुआ , पिता एक गोदाम प्रबंधक है और माता सुन सिन सू एक मिडिल स्कूल की अध्यापिका ।
ली च्यान को जन्म से रीढ़ की बीमारी लगी थी , उस की आठ साल की आयु में बीमारी का आपरेशन किया गया , लेकिन वह विफल हुआ , जिस से वह हमेशा के लिए विकलांग हो गया और दोनों पैर खड़े नहीं हो पाए । इस भारी आघात से ली च्यान की माता जी एकदम असह्य हो गयी और उन का दिल टूटा सा हो गया । उन्हों ने कहाः
घर लौटने के बाद बेटे ने मुझ से पूछा था कि मां जी , मेरा पैर क्या हुआ , मैं क्यों चल नहीं पाता । बेटे ने अपने पैरों पर हाथ मारते हुए रोया कि मां , मैं चलना चाहता हूं । बेटे की हालत देख कर मेरा दिल टूट हो गया । मैं ने कहा कि आज से आप उठ खड़े होने के लिए असमर्थ हो गया है , लेकिन मैं तुम को चेयरकुर्सी पर जीवन बिताने नहीं दूंगी , मैं तुझे बैसाखी से चलने का समर्थ बनाने की कोशिश करूंगी ।
सामान्य बच्चों की तरह अपने बेटे को स्कूल में दाखिला कराने के लिए मां सुन सिन सू ने अनेक स्कूलों से आवेदन किया , लेकिन हर आवेदन को अस्वीकार किया गया , स्कूलों ने उन्हें बेटे को विकलांग स्कूल में दाखिला कराने की सलाह दी । किन्तु सुन सिनसू की बारांबार प्रार्थना से प्रभावित हो कर अंत में एक स्कूल ने उन के बेटे को स्वीकार किया ।
स्कूल में पढ़ने के दौरा और एक आफत भी विकलांग ली च्यान पर आ पड़ी , टटी पेशाब के लिए उसे दूसरों की मदद लेनी पड़ी , दूसरों को कम परेशान करने के लिए ली च्यान ने पेशाब को झेलते हुए पाखाना जाने की संख्या कम कर दिया । पेशाब निकलने में विलंब होने के कारण ली च्यान के दोनों गुर्दों में पानी जमा , आपरेशन के बाद उस की सामान्य रूप से पेशाब निकालने की क्षमता भी खो गयी । इसकी चर्चा करते हुए सुन सिनसू ने कहाः
डाक्टर ने ली च्यान के पेट पर एक छेद कर दिया और पेशाब निकालने वाले पाइप का इंतजाम किया ,जिस से रोज उस के शरीर पर एक थैली लटकी रही । इस बात को छात्रों से छिपाने के लिए उस ने थैली को पैंट के भीतर छुपा रखा , हर तीन दिन में मैं उसे पेशाब छोड़ने की मदद देती हूं , इस बीच शरीर में पीड़ा आने से वह हमेशा पसीने से तरतर हो जाता है ।
इन कठिनाइयों को दूर करने के लिए सुन सिनसू बेटे को बैसाखी से खड़े चलने तथा भरी हुई थैली से पेशाब निकालने की मदद देती रही । सीढियों पर चढने के वक्त उन्हें हमेशा चिंता रही है कि कहीं शरीर पर दबाव पड़ने से बेटे का घाव और थैली खराब न हो जाए ।
बेटे की खड़े चलने की क्षमता बढ़ाने के लिए सुन सिनसू ने यह फैसला किया कि उसे खुद बैसाखी के सहारे घर से स्कूल जाने दिया जाए। घर से स्कूल तक दस किलोमीटर का रास्ता तय करना पड़ता है । एक दिन सकड़ पर बर्फ पड़ी , इस फासले को गुजारने में ली च्यान अनेक बार औंधे मुंह गिर पड़ा और हाथ घुटनी पर चोट लगी । वह बुरी तरह रोया और चिल्लाया कि मैं फिर चलना नहीं चाहता ।
बेटे की हालत देख कर सुन सिनसू का कदम धीमा हो गया , वे चाहती थी कि पीछे मुड़ कर बेटे को सहारा दूं । लेकिन तुरंत इस ख्याल ने उन्हें रोक दिया कि इस वक्त बेटे का हौसला बढाने की कोशिश नहीं छोड़ना चाहिए । तो वे अकेले आगे बढ़ी और घर लौटी । लम्बी देरी के बाद घर के दरवाजे पर खटाखट की ध्वनि गूंजी , दरवाजा खोल कर देखा कि बेटा बड़ी थकान के साथ दरवाजे के पास बैठा है , असल में वह नसिर्फ अकेला घर लौटा , इस के अलावा स्वयं दूसरी मंजिल पर भी चढ़ आया । सुन सिन सू ने तुरंत बेटे को गोद में ले लिया और खूब रोने लगी ।
इसी प्रकार की अथक कोशिशों के परिणामस्वरूप ली च्यान अंत में बैसाखी के सहारे खड़े चलने में समर्थ हो चुका है और खुद घर की दूसरी मंजिल पर चढ़ सकता है । इस सफलता से सुन सिनसू के लिए आशा की किरण दिखी । ली च्यान ने भी मां जी की आशा पर पानी नहीं फिरने दिया , वह हमेशा कड़ी मेहनत से पढ़ता है और पढाई में उस के अंक भी हमेशा श्रेष्ठ रहे हैं और विभिन्न पुरस्कार मिले है ।
प्राइमरी स्कूल की शिक्षा पूरा होने के बाद मिडिल स्कूल में पढ़ने वाले बेटे की और अच्छी तरह देखभाल के लिए सुन सिनसू ने अपनी नौकरी छोड़ी और तनमन से बेटे की देखभाल में लग गयी । इस तरह परिवार के चार सदस्यों का जीविका पति के अकेले वेतन पर आश्रित हो गया और घर का जीवन भी ज्यादा कठिन हो गया । उस समय के कठिन जीवन पर अपना अनुभव बताते हुए बेटा ली च्यान ने कहाः
घर के खर्च की किफायत के लिए मम्मी अकसर सब्जी मंडी में छोड़ी गई सब्जी के पत्ते बीन बीन कर बटोरने जाती थी , जब कभी एक बड़ा प्याज मिला , तो भी उस के तीन टुकड़े करके तीन वक्त खाये जाते थे । इसी किफायत से एक एक कोड़ी बचा कर घर का खर्च उठाती थी और मेरे लिए स्कूली फीस देती थी ।
मां बेटे की स्वालंबन तथा कड़ी मेहनत की इस भावना से बहुत प्रभावित हो कर स्कूल के अध्यापक , छात्र और उन के पड़ोसी ली च्यान परिवार को आर्थिक कठिनाइयों को दूर करने के लिए सहायता देते रहें । स्थानीय मोहल्ला कमेटी ने भी उस के घर की निम्नतम जीवन गारंटी की सहायता राशि को हर महीने के 150 य्वान को बढा कर 250 य्वान कर दिया ।
ली च्यान मां बेटे के पास एक नोट बुक है , जिस में दूसरों द्वारा उन्हें सहायता स्वरूप दिये गए पैसे लिखे गए हैं , वे समझते हैं कि भविष्य में जब घर की आर्थिक हालत ठीक होगी , तो वे अवश्य सहायता देने वाले इन दयालु लोगों को कुछ न कुछ बदला वापस देंगे ।
हाई स्कूल के बाद ली च्यान को अच्छे अंक से सिन्चांह विश्वविद्यालय में दाखिला मिला , विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए हर साल का खर्च दस हजार य्वान होता है , सुन सिनसू के घर में इतना ज्यादा पैसा नहीं है , उन्हें इस कठिनाई से छुटकारा दिलाने के लिए स्थानीय नागरिक मामला विभाग ने सहायता के लिए पांच हजार य्वान प्रदान किया । इस पर श्रीमती सुन सिनसू ने कहाः
अकेली मेरी अपनी शक्ति के बल पर बेटे को विश्वविद्यालय भेजना असंभव है, मैं समाज के इन दयालु लोगों की तहेदिल से आभारी हूं । ली च्यान के पहले साल की पढाई फीस पांच हजार य्वान स्थानीय नागरिक मामला विभाग द्वारा चंदा स्वरूप प्रदान किया गया है , हमारे मोहल्ले की नागरिक कमेटी और सिन्चांग विकलांग संघ ने हमारी कठिनाई जान कर चावल और आटा के साथ दो हजार य्वान प्रदान किए , इस के अलावा अन्य बहुत से लोगों ने भी सहायता के लिए पैसा दिया , मैं इन लोगों का एहसान कभी नहीं भूलूंगी ।
अब ली च्यान सिन्चांग विश्वविद्यालय के कम्प्युटर विभाग का छात्र बन गया , वे कड़ी मेहनत से पढ़ता है , उस की अद्मय भावना से अध्यापक और छात्र बहुत प्रभावित हुए हैं । लेकिन असह्य बोझ से उस की मां को ऊंचे रक्तचाप का रोग पड़ा और अस्पताल में भर्ती हो गयी । इस पर ली च्यान ने कहाः
मां जी का रक्तचाप बहुत ऊंचा है , खड़े होने पर दिमाग में चक्कर आता है । लेकिन अस्पताल में भी वे मेरी पढाई पर चिंतित है , सुबह चुपाचाप से अस्पताल से निकल कर मुझे विश्वविद्यालय को ले जाती है। जब तबीयत थोड़ी ठीक हुई , तो वे विश्वविद्यालय में मुझे मुर्गे का मांस पहुंचाने भी आती है ।
अपने श्रेष्ठ बेटे पर सुन सिन सू को भी बड़ा गर्व महसूस हुआ है ,उन्हों ने कहा कि उन्हों ने लम्बे वर्षों में जो दिक्कतें झेली हैं , वह काबिला है ।
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