यह वर्ष चीन-भारत मैत्री वर्ष है। चीन-भारत मैत्री-वर्ष के अवसर पर चीन व भारत द्वारा निर्धारित सिलसिलेवार गतिविधियों में महाभिक्षु श्वेन चांग स्मृति-भवन का निर्माण बहुत महत्वपूर्ण घटना है। आज के जीवन और समाज कार्यक्रम में हम आप लोगों को भारत के श्वेन चांग स्मृति-भवन के रुपांकर महाभिक्षु जडं छिन का परिचय देंगे। खेद की बात है कि महाभिक्षु जडं छिन से हमारी मुलाकात नहीं हो पायी, फिर भी हम उन के आसपास के लोगों से उन की कहानी सुनेंगे।
महाभिक्षु जडं छिन का जन्म वर्ष 1962 में हुआ। वर्ष 1979 में मिडिल स्कूल से स्नातक होने के बाद, उनकी बौद्ध धर्म में रुचि जागी । वर्ष 1988 में 26 वर्षीय जडं छिन अपनी मां के साथ म शी एन के दा शींग मंदिर में आये। वर्ष 1991 में महाभिक्षु जडं छीन दा जी अन मंदिर आकर महा भिक्षु बने। इस तरह, वे अभी तक चीन के सब से युवा महाभिक्षु माने जाते हैं। वर्ष 1991 में चीनी राष्ट्रीय धार्मिक ब्यूरो और दा जी अन मंदिर के पहले महाभिक्षु ने जडं छीन को दा जी अन मंदिर में स्थानांतरित करने का निर्णय लिया। और उसी वर्ष से महाभिक्षु जडं छिन ने औपचारिक रुप से दा जी अन मंदिर में काम करना शुरु किया और श्वेन चांग सेन चांग व्येन के निर्माण की जिम्मेदारी संभाली। महाभिक्षु जडं छिन के बड़े शिष्य दाओ शी ने परिचय देते समय बताया कि वास्तव में महाभिक्षु जडं छिन सर्वप्रथम ह नान प्रांत के ल्वो यांग शहर के येनशी के एक छोटे मंदिर में भिक्षु थे।
उन के अनुसार,चूंकि वह मंदिर श्वेन चांग के जन्मस्थान येनशी काऊंटी में स्थित है, इसलिए, उसी वक्त से महाभिक्षु जडं छिन श्वेन चांग का बड़ा सम्मान करते हैं। दा जी अन मंदिर आने के बाद उन्हें लगा कि श्वेन चांग की स्मृति के लिए कुछ न कुछ करना चाहिए। श्वेन चांग दा जी अन मंदिर के प्रथम महाभिक्षु थे। उन्होंने 11 वर्षों के लिए अनुयाइयों व भिक्षुओं को एकत्र करके धार्मिक शास्त्रों का अनुवाद किया। श्वेन चांग के नेतृत्व में निर्मित की गयी दा येन मीनार भी 1300 से ज्यादा वर्षों से हवा व वर्षा के थपेड़े सहती अभी भी खड़ी है। श्वेन चांग की भावना का प्रसार करने के लिए, और पुराने शहर शी एन की संस्कृति व पर्यटन को आगे बढ़ाने के लिए महाभिक्षु जडं छिन ने श्वेन चांग सेन चांग व्येन का निर्माण करने का निर्णय लिया।
दा जी अन मंदिर ने अनुयाइयों के चंदे और बैंक के कर्जों से 4 करोड़ 10 लाख से ज्यादा चीनी य्वान की पूंजी डालकर 5 हजार वर्गमीटर बड़े वाले श्वेन चांग सेन चांग व्येन का निर्माण किया। यह थांग राजवंश की शैली वाली इमारत है, धार्मिक संस्कृति व मूल्यवान वास्तु कला का प्रतिबिंब है।
श्वेन चांग सेन चांग व्येन दा प्येन च्वेई थांग, क्वांग मींग थांग और बेन र थांग तीन महलों से गठित है, जिस की अंदरुनी दीवारों के चित्रों के सब रुपांकन महाभिक्षु जडं छिन द्वारा तैयार किए गये हैं। इस महान महल के निर्माण के लिए महाभिक्षु जडं छिन अनेक बार राजधानी पेइचिंग, शांगहाई, हांगच्यो, फूच्येन और शानशी के निरीक्षण दौरे पर गए ।केवल पेइचिंग में चीनी बौद्ध धर्म संघ के भूतपूर्व अध्यक्ष च्याओ फू शू , चीनी बौद्ध धर्म संस्कृति अनुसंधान संस्था के प्रधान वू ली मिन , चीनी श्वेन चांग अनुसंधान केंद्र के प्रधान ह्वांग शिन छ्वेन समेत प्रसिद्ध बौद्ध धर्म के शास्त्रियों व रुपांककों की भागीदारी वाले मंच का सातवीं बार आयोजन किया गया था। वर्ष 2000 में महाभिक्षु श्वेन चांग की जन्म की 1400 वर्षगांठ थी। श्वेन चांग सेन चांग व्येन का औपचारिक रुप से निर्माण किया गया। शी एन की लड़की ल्यू येन ने श्वेन चांग सेन चांग व्येन का परिचय दिया,सेन चांग व्येन तो थांग राजवंश की इमारत जैसा महल है, जिस का क्षेत्रफल 10 हजार वर्गमीटर से अधिक है। महाभिक्षु श्वेन चांग चीन के बौद्ध धर्म के लिए प्रकाश लाए हैं, इसलिए, सेन चांग व्येन का एक महल क्वांग मींग थांग है।श्वेन जांग के देहांत के बाद, थांग जुंग जूंग ने उन्हें दा प्येन च्वेई का नाम दिया , इसलिए, सेन चांग व्येन के और एक महल का नाम दा प्येन च्वेई है, जिस का अर्थ श्वेन चांग सभी जानते हैं।
शिष्य दाओ शी की नजर में महाभिक्षु जडं छिन एक बहुत न्यायपूर्ण व सीधे आदमी हैं। वे मेहनत से धार्मिक ग्रंथों को पढ़ते हैं और दूसरों को मदद देना पसंद करते हैं। दाओ शी ने हमारी संवाददाताओं से कहा,महाभिक्षु खुद अकसर अच्छे काम करते हैं। वे हमें भी ऐसा करने की सलाह देते हैं। उन के नेतृत्व में हम ने पैसे एकत्र कर अनेक सड़कों का निर्माण किया , लगभग 10 आशावान स्कूलों की स्थापना की , अनेक विकलांगों, अनाथों व वृद्धों को मदद दी और गरीब मंदिरों को सहायता भी दी।
महाभिक्षु जडं छिन सुयोग्य लोगों को बड़ा महत्व देते हैं। उन्होंने कहा कि चीनी बौद्ध धर्म की सर्वप्रथम समस्याएं तो सुयोग्य व्यक्तियों की समस्या है। उन्होंने बार-बार हमें बताया कि महाभिक्षु श्वेन चांग ने धार्मिक शास्त्रों का अनुवाद करने और धार्मिक शास्त्र सुना कर अनेक मशहूर भिक्षुओं का प्रशिक्षण किया। उन्होंने एक बार 2 लाख य्वान से एक मिडिल स्कूल के लिए एक पुस्तकालय का निर्माण किया ।उन्होंने दस लाख य्वान से ज्यादा पैसे लाकर शानशी प्रांत के गरीब बच्चों को मदद दी। वर्ष 1999 और वर्ष 2000 में महाभिक्षु जडं छिन क्रमशः शैनशी प्रांत के पर्यटन जगत के दस प्रेस व्यक्तियों में चुने गये। वर्ष 2000 में देश के चार ए स्तरीय पर्यटन स्थलों की नामसूची में दा जी अन मंदिर भी शामिल हुआ। आज हमें भी बौद्ध धर्म के सुयोग्य व्यक्तियों के प्रशिक्षण को महत्व देना चाहिए। शिष्य दाओ शी के अनुसार,महाभिक्षु जडं छिन मंदिर के प्रबंधन व राजनयिक गतिविधियों में साहसी युवा भिक्षुओं का इस्तेमाल करते हैं। वे प्रबंध कार्यों में मुख्यतः हमारे मंदिर के धार्मिक स्थलों को, विदेशों में चीनी संस्कृति का प्रसार और चीन व भारत के सांस्कृतिक आदान-प्रदान का स्थल प्रतिबिंबित करते हैं। महाभिक्षु जडं छिन ने कहा कि सुयोग्य व्यक्ति व ज्ञान आसमान से नीचे नहीं गिरते हैं, बल्कि लोग मेहनत व प्रशिक्षण से ऐसे बन सकते हैं।
महाभिक्षु जडं छिन के नेतृत्व में दा जी अन मंदिर अब देश-विदेश में मशहूर हो गया है। चीनी पर्यटकों के अलावा, विश्व के विभिन्न देशों से आये नेता व पर्यटक शी एन की यात्रा करते समय अवश्य ही दा जी अन मंदिर का दौरा करते हैं। जापानी सम्राट , इटली के भूतपूर्व राष्ट्रपति, कोरिया गणराज्य के भूतपूर्व राष्ट्रपति, थाईलैंड के राजा और भारतीय राष्ट्रपति ने भी दा जी अन मंदिर का दौरा किया है। शिष्य दाओ शी ने कहा,वर्ष 2005 के दिसम्बर माह में महाभिक्षु जडं छिन ने देश के धार्मिक ब्यूरो के नेताओं के साथ भारत की यात्रा की। उन का एक प्रमुख मिशन वर्ष 2006 चीन-भारत मैत्री वर्ष के अवसर पर भारत को श्वेन चांग स्मृति भवन के निर्माण में मदद देना है। श्वेन चां स्मृति भवन की अनेक मूर्तियों व चित्रों का महाभिक्षु जडं छिन द्वारा रुपांकन किया गया है। अनुमान है कि श्वेन चांग स्मृति भवन के निर्माण में कुल 16 लाख 70 हजार चीनी य्वान की ज़रुरत होगी। इस वर्ष के नवम्बर माह में महाभिक्षु जडं छिन भारत में श्वेन चांग स्मृति भवन की स्थापना रस्म में भाग लेंगे।
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