आज से नौ साल पहले सिन्चांग के काश्गर क्षेत्र में एक 64 वर्षीय वेवूर बुजुर्ग अबुलज .नुरेक ने अपना जीवन स्तर नीचा होने पर भी एक हान जातीय विकलांग बच्ची को गोद लिया और अपना तमाम जायदाद खर्च कर इस जन्म से विकृत बच्ची का इलाज कराया , जिस से वह बच्ची स्वस्थ हो कर सामान्य जीवन बिताने लगी ।
श्री अबुलज.नुरेक दक्षिण सिन्चांग के काश्गर प्रिफेक्चर की पाछु काऊंटी में रहते हैं , वे एक मेहनती , खुशमिजाजी और लोगों को मदद देने के उत्सूक वेवूर जातीय बुजुर्ग हैं , जो स्थानीय जनता में बहुत लोकप्रिय हैं।
श्री अबुलज .नुरेक और उन की पत्नी काऊंटी के शलिबुया कस्बे में रहते हैं , उन के कई पुत्र पोते हैं , फिर भी जीवन में वे बराबर आत्मनिर्भर रहते हैं । लेकिन आज से नौ साल पहले मां बाप द्वारा छोड़ी गई एक हान जातीय बच्ची ने उन के शांत जीवन को भंग कर दिया।
वर्ष 1997 के 23 सितम्बर की सुबह श्री अबुलज नुरेक कपास खेत से घर लौट रहे थे , अचानक घास की झाड़ी में से बच्चे के रोने की आवाज सुनायी दी , जब झांक कर देखा , तो वहां एक बच्ची पड़ी पायी , श्री अबुलज ने बच्ची को उठा कर गोद में थामा और उस के मां बाप आने का इंतजार करते रहे । लेकिन घंटा दो घंटे गुजरे , बच्ची के मां बाप की सूरत नहीं दिखी , बच्ची की बुरी हालत देख कर अबुलज ने सर्वप्रथम उसे घर ले जाने का निश्चय किया ।
यह कुछ ही दिन पहले जन्मी हान जाति की बच्ची थी । उस के मां बाप की तलाश करने में श्री अबुलज नुरेक ने लाख कोशिश की , किन्तु कहीं उन का अता पता नहीं रहा । ऐसी स्थिति में उस साल 64 वर्ष के अबुलज ने मांबाप द्वारा छोड़ी गई इस बच्ची का पालन पोषण करने का काम संभाला । उन्हों ने बच्ची के लिए वेवूर भाषा का सुन्दर नाम रखा , यानी अयीपुराक , जिस का अर्थ है चांद की चश्मा ।
लेकिन कुछ दिनों बाद श्री अबुलज को पता चला कि बच्ची के शरीर में बीमारी है ।
श्री अबुलज ने कहा कि मेरे घर में बकरी के बच्चे हुए , जिस के दुध अच्छे निकले थे , मैं ने बच्ची को दुध खिलाया , क्या पता कि दो दिन बाद बच्ची का पेट काफी फूल कर बड़ा हो गया , तभी हम ने पाया कि बच्ची के शरीर में मल त्यागने वाला द्वार नहीं है ।
श्री अबुलज और पत्नी दोनों बच्ची को गोद में लिए कस्बे के अस्पताल ले गए , डाक्टर ने जांच करने के बाद कहा कि बच्ची का मलद्वार जन्म से ही विकृत है ,इस का आपरेशन करना पड़ेगा , लेकिन कस्बे का अस्पताल इस प्रकार का आपरेशन करने के लिए अक्षम है , तो डाक्टर ने बच्ची को मल त्याग देने में मदद के लिए एक मेडिकल पाइप लगाया ।
इस के बाद हर तीन दिन ही अबुलज गधे की गाड़ी से बच्ची को कस्बा अस्पताल में मल निकालने वाले पाइप को धोने साफ करवाने ले जाते थे । इस के लिए पहले ही साल में श्री अबुलज को तीन हजार य्वान खर्च करना पड़ा , अस्पताल को जब पता चला कि बुजुर्ग अबुलज नुरेक मांबाप द्वारा छोड़ी गई बच्ची का इलाज करवा रहे हैं , तो उन की निस्वार्थ भावना से प्रभावित हो कर अस्पताल ने दूसरे साल से बच्ची का तमाम इलाज खर्च माफ कर दिया ।
एक साल बाद , हान जातीय बच्ची आयीपुराक मां बाप शब्द बोलने की समर्थ हो गयी , वह वेवूर भाषा में दातांग ,आना अर्थात बापा मम्मी पुकारती रही , इस से बुजुर्ग पति पत्नी को बेहद खुशी हो उठी ।
जब बच्ची दिनोंदिन बड़ी बढ़ती गयी , तो मल निकालने वाला पाइप काम का नहीं आया , बच्ची का आपरेशन करना बहुत जरूरी है , वरना , बच्ची की जान का खतरा पैदा होगा । बीमारी से पीड़ित बच्ची की दुखी हालत देख कर अबुलज दंपति को भी बड़ी परेशानी हुई।
किन्तु आपरेशन का खर्च बहुत ज्यादा था । अबुलज की संतान भी इस विकलांग बच्ची को आगे पालने का विरोध करती थी , पर अबुलज इस समय इस बच्ची को अपना सगा बच्चा समझ कर उसे छोड़ देने को कतई तैयार नहीं थे , वे अपने निश्चय पर डटे रहें। दंपति ने खेतों के अनाज और कपास बेच कर 400 किलोमीटर दूर शहर में बच्ची का इलाज करवाने जाने का फैसला किया , उन की प्रेम व दया की भावना से प्रभावित हो कर गांव वासियों ने भी पैसे का चंदा दिया । श्री अबुलज नुरेक ने याद करते हुए कहाः
बड़े शहर में खर्च ज्यादा है , पैसा बचाने के लिए हम दोनों नान का एक बड़ा थैला ले गए , जब भूख लगी , तो सूखा नान खा कर पेट की भूख मिटाते थे । इस तरह 13 दिन तक हम ने ढंग का खाना नहीं खाया । नींद आने पर हम बच्ची के पलंग के पास जमीन पर लेटे सो रहे । हम ने पैसा बचा कर बच्ची के लिए बकरी के गोस्त और गाजर का शोरपा खरीद कर खिलाते थे । अक्सू शहर के अस्पताल में बच्ची की इस बीमारी का मूल इलाज नहीं हो पाया , लेकिन इतना तो सफल हुआ कि फिर मेडिकल पाइप को साफ करने के लिए तीन दिन में एक बार कस्बा अस्पताल जाने की जरूरत नहीं पड़ी ।
आक्सु कस्बा के अस्पताल से घर लौटने के बाद दंपति ने यह संकल्प किया था कि बच्ची को हमेशा के लिए बीमारी की दुख से उबारने के लिए वे हर कीमत पर बच्ची का सफल इलाज कराएंगे । इस के बाद के कुछ सालों में वद्धावृद्ध श्री अबुलज नुरेक ने मेहनत से खेतीबारी कर एक एक पैसा बचा कर धन जुटाने की कोशिश की , ताकि बच्ची के आपरेशन के लिए जरूरी धन राशि एकत्र की जाए ।
वर्ष 2003 में अबुलज दंपति ने बच्ची को घर से पांच किलोमीटर दूर स्थित हान भाषा के स्कूल में दाखिल किया । उसे अपने भावी जीवन पर विश्वास कायम करवाने के लिए श्री अबुलज ने अपना पूरा का पूरा प्यार समर्पित कर दिया , रोज खेती से निजात हो कर वे गद्दर की गाड़ी से दत्तक बच्ची आयीपुराक को स्कूल पहुंचा देते और वापस घर ले आते थे , कितना थकान क्यों न हुई , तो भी वे एक दिन को छूटने नहीं देते ।
गांव वासियों और स्थानीय सरकार की मदद से वर्ष 2006 के 24 फरवरी को सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश के जन अस्पताल ने आयीपुराक का सफल आपरेशन किया और मूलभूल रूप से उस को बीमारी से पिंड छुड़ाया । सफल आपरेशन से नौ साल की विकलांग बच्ची आयीपुराक की बीमारी व दुख हमेशा के लिए खत्म कर दिया गया , साथ ही श्री अबुलज की नौ साल पुरानी उम्मीद भी पूरी हो गई ।
दो महिनों के बारीकी इलाज के फलस्वरूप अब आयीपुराक की सेहद बहुत अच्छी है । जब हमारे संवाददाता उस से मिलने अस्पताल के वार्ड गए , तो देखा कि वह पलंग पर पार्थी मारे मानक हान भाषा में प्राचीन कविता पढ़ रही है , उस की विमाता थोसाखान उस के बालों को संवार कर रही है । पास बैठे बुजुर्ग बाप बड़े स्नेह भरी नजर से उसे निहार रहे हैं । वे इतने खुश थे कि जब बातें कर रहे है , तो आवाज पूर्ण आनंद से कंपित हुई है ।
उन्हों ने कहा कि प्रदेश के अस्पताल के उपचार से मेरी लड़की एकदम बीमारी से निजात हो गयी है । अब वह खुद मल त्यागने पर नियंत्रण कर सकती है । पहले स्थानीय डाक्टर की यह बात सुनी थी , बड़ी होने के बाद इस बच्ची की प्रजन्न की शक्ति नहीं होगी , लेकिन इस बार के आपरेशन से इस समस्या को भी हल किया गया । उस के भावी जीवन पर कोई चिंता नहीं रह गयी ।
आयीपुराक अस्पताल से निकलने वाली है , उस के वार्ड में इस दिन चार वेवूर बच्चे आए , आयीपुराक से मिलने पर सभी बच्चों को खुशी का ठिकाना नहीं रहा , वे हाथ में हाथ थामे कूदने फूटने लगे । छोटी आयीपुराक भी अपने दोस्तों से गले लगाए गाने लगीः
बच्चों की यह खुशगवार हालत देख कर हमें भी बड़ी खुशी हुई । हमारी हार्दिक कामना है कि सभी स्वस्थ बच्चों की भांति आयीपुराक भी सदैव स्वस्थ रहे और खुश रहे ।
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