बौद्ध धर्म भारत से चीन आया था, और अब वह चीन के सब से प्रमुख धर्मों में से एक बन गया है। आज के कार्यक्रम में हम आप लोगों को चीन के प्रथम बौद्ध धर्म के मंदिर पेई मा मंदिर का परिचय देंगे।
चीन के पुराने शहर ल्वो यांग के पूर्व में लगभग 10 किलोमीटर दूर एक पेई मा मंदिर खड़ा है। वह चीन का प्रथम बौद्ध धर्म का मंदिर भी माना जाता है। चीनी भाषा में पेई मा का अर्थ है सफेद घोड़ा। पेई मा मंदिर के नाम के बारे में एक सुन्दर कहानी भी प्रचलित है। पेई मा मंदिर के वर्तमान महाभिक्षु इन ल ने कहा, कहा जाता है कि प्राचीन चीन के पूर्वी हान राजवंश में हान मींग सम्राट के सपने में एक स्वर्ण-मूर्ति दिखाई दी, सम्राट ने राजपुरोहित से इस सपने का अर्थ पूछा। उस ने कहा कि यह बुद्ध की मूर्ति हो सकती है अतः राजा ने दूतों को पश्चिम की ओर भेजकर बौद्ध धर्म को ढूंढ़ने की कोशिश की। ईसवी 67 में सम्राट के दूतों को रास्ते में भारत के दो भिक्षु शमोथंग और जू फा लेन मिले और उन्हें ले कर वे वापस आ गये। यह दो भारतीय भिक्षु सफेद घोड़ों पर बौद्ध धर्म के ग्रंथों को लेकर तत्कालीन हान राजवंश की राजधानी ल्वो यांग पहुंचे। इन दो भारतीय भिक्षुओं का सम्मान करने के लिए हान मींग सम्राट ने ल्वो यांग के उपनगर में एक मंदिर की स्थापना करने का आदेश दिया। सफेद घोड़े पर धार्मिक ग्रंथ लाने की याद बनाए रखने के लिए सम्राट ने इस मंदिर का नाम पेई मा मंदिर रखा।
पेई मा मंदिर में दो भारतीय भिक्षुओं शमोथंग और जू फा लेन ने उन धार्मिक ग्रंथों का संस्कृत भाषा से चीनी भाषा में अनुवाद किया। इस तरह, पेई मा मंदिर में चीन का प्रथम हान भिक्षु उत्पन्न हुआ और वह चीन का सब से पुराना धार्मिक ग्रंथों का अनुवाद स्थल भी बन गया।और पेई मा मंदिर चीन का प्रथम बौद्ध धर्म मंदिर बन गया। अभी तक, हर वर्ष के नये साल के दिन, पेई मा मंदिर में 108 घंटियां बजाई जाती हैं। देश-विदेश के मित्र दिल की उदासी को मिटाने के लिए पे ई मा मंदिर आकर पेई मा मंदिर में घंटियों की आवाज़ सुनते हैं।
पेई मा मंदिर ने बौद्ध धर्म का चीन में प्रसार व विकास करने में, अन्य देशों के साथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान को आगे बढ़ाने में और विभिन्न देशों की जनता के साथ मित्रता का विकास करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।वर्ष 1961 में चीनी राज्य परिषद ने पेई मा मंदिर को चीन के महत्वपूर्ण सांस्कृतिक अवशेषों की संरक्षण इकाई घोषित किया। वर्ष 2001 में पेई मा मंदिर चीनी पर्यटन ब्यूरो द्वारा देश के चार सितारे वाला पर्यटन स्थल घोषित किया गया।
पेई मा मंदिर के वर्तमान महाभिक्षु इन ल ने कहा, बौद्ध धर्म चीन व भारत मैत्री की एक मिसाल है। चीन का सारा बौद्ध धर्म जगत भारत के प्रति आभार प्रकट करना चाहता है। भारत के युवराज चौटामो सिटाटो द्वारा बौद्ध धर्म की स्थापना से हम बौद्ध धर्म की पूजा कर सकते हैं। प्राचीन चीन के श्वेई, थांग व उत्तरी वेई काल में भारतीय भिक्षुओं ने निरंतर चीन आकर बौद्ध धर्म का प्रसार किया और बौद्ध धर्मग्रंथों का अनुवाद किया।चीनी भिक्षु श्वेन चांग 17 वर्षों तक भारत में रहे और लगभग सारे भारत का दौरा किया। वे बौद्ध धर्मग्रंथों को चीन लाए और अनेक ग्रंथों का चीनी में अनुवाद भी किया।
बौद्ध धर्म चीन व भारत मैत्री का एक माध्यम है। आज हम यह कह सकते हैं कि बौद्ध धर्म भारत से चीन आया था, फिर भी बौद्ध धर्म का विकास तो चीन में हुआ।भारत के नेता पेई मा मंदिर को बड़ा महत्व देते हैं। भारत के दो प्रधान मंत्रियों ने चीन की राजकीय यात्रा के दौरान पेई मा मंदिर का दौरा किया। उन्होंने पेई मा मंदिर में बुद्ध की कांस्य मूर्तियां भी भेंट कीं। वर्ष 2003 में जब भारतीय प्रधान मंत्री वाजपेयी ने पेई मा मंदिर का दौरा किया, तो दो भारतीय भिक्षुओं के मकबरे देख कर अचानक उन्हें एक ऐसा विचार आया कि भारत पेई मा मंदिर के पास एक भारतीय शैली वाले मंदिर का निर्माण करेगा। इस के बाद ल्वो यांग धार्मिक ब्यूरो, ल्वो यांग विदेशी मामले के दफ्तर आदि ने चीन स्थित भारतीय दूतावास से अनेक बार संपर्क किया और प्रारंभिक रुपरेखा तैयार की गयी। ल्वो यांग धार्मिक ब्यूरो के उप प्रधान श्री छ्यू फींग छीन ने कहा, दोनों देशों के विदेश विभागों ने इस बात पर बड़ा ध्यान दिया। वर्ष 2005 के अप्रैल माह में चीनी प्रधान मंत्री वन चा पाओ ने भारत की औपचारिक यात्रा की। यात्रा के दौरान, चीनी प्रधान मंत्री वन चा पाओ ने भारतीय प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के साथ दोनों देशों के संयुक्त वक्तव्य पर हस्ताक्षर किया। दोनों देशों की सरकारों ने चीन के ल्वो यांग के पेई मा मंदिर में पश्चिमी ओर भारतीय शैली वाले बौद्ध धर्म के मंदिर का निर्माण करने के एक मेमोरेंडम पर हस्ताक्षर किया। मेमोरेंडम के अनुसा र, पेई मा मंदिर जमीन देगा और मंदिर के निर्माण की जिम्मेदारी उठाएगा, जबकि भारत वास्तु का निर्माण प्रस्ताव पेश करेगा, पांच करोड़ रुपये की पूंजी लगाएगा और बौद्ध धर्म की मूर्तियां जैसी चीज़ें भी प्रदान करेगा। इस मंदिर का निर्माण पूरा होने के बाद पेई मा मंदिर इस का इंतज़ाम देखेगा और यह मंदिर देश-विदेश के बौद्ध धर्म अनुयाइयों तथा पर्यटकों के लिए खोलेगा।
चीनी रीति रिवाज के अनुसार, इमारतें उत्तर की ओर खड़ी होती हैं और द्वार दक्षिण की ओर खुलता है। जबकि भारतीय बौद्ध धर्म के रीति-रिवाज के अनुसार, मंदिरों का द्वार आम तौर पर पूर्व की ओर खुलता है। इसलिए, भारतीय शैली वाले बौद्ध धर्म मंदिर का द्वार भारतीय रीति के अनुसार पूर्व व पश्चिम की ओर रहेगा। वास्तव में यह मंदिर एक बड़े आंगन में बनेगा। आंगन के चारों ओर लम्बी दीवार होगी, जिस पर चित्र होंगे। आंगन के केंद्र में एक बड़ी तांबे की मूर्ति होगी। मंदिर की छत शीशे से बनायी जाएगी । सूर्य की रोशनी शीशे से अंदर आकर मूर्ति के आसपास फैलेगी। मूर्ति के नीचे पानी होगा, चारों ओर कमल होंगे।उप प्रधान श्री छ्यू फींग छीन के परिचय के अनुसार, भारतीय शैली वाले बौद्ध धर्म के मंदिर का कुल क्षेत्रफल 4.33 हेक्टर है। मंदिर की ऊंचाई 21 मीटर है और व्यास 24 मीटर है। मंदिर में बौद्ध धर्म की मूर्तियां भारत द्वारा बनायी जाएंगी । आंगन में भारतीय बुद्ध पेड़ भी लगाया जाएगा।
श्री छ्यू ने कहा कि वर्ष 1900 से पहले बोद्ध धर्म के चीन में प्रवेश करने के बाद यह प्रथम बार है कि चीन व भारत की सरकारों ने भारतीय शैली वाले बौद्ध धर्म के मंदिर का निर्माण करने का निर्णय लिया है। इस वर्ष 16 मई को मंदिर का निर्माण औपचारिक रुप से शुरु हुआ। मंदिर की प्रमुख परियोजना इस वर्ष के 31 अक्तूबर से पहले पूरी हो जाएगी, जबकि सजावट वर्ष 2007 के अप्रैल से पहले पूरा किया जाएगा।
श्रोताओ, पेई मा मंदिर चीन का प्रथम बौद्ध धर्म मंदिर है। चीन की विभिन्न प्रांतीय सरकारें भी पेई मा मंदिर के विकास को बड़ा महत्व देती हैं। भारतीय शैली वाले बौद्ध धर्म के मंदिर के निर्माण के अलावा, पेई मा मंदिर भी अपने मंदिर के आसपास विश्व बौद्ध मंदिरों के एक बड़े उद्यान का निर्माण करना चाहता है। मंदिर के महाभिक्षु इन ल ने कहा , बाद में हम पेई मा बौद्ध धर्म की अकादमी खोलेंगे, पेई मा मंदिर के पैमाने को बड़ा करेंगे। अब हम जापान के साथ संपर्क कर रहे हैं और बाद में हम एक जापानी शैली वाले बौद्ध धर्म के मंदिर का निर्माण करना चाहते हैं। इस के साथ-साथ, हम श्रीलंका के साथ भी संपर्क कर रहे हैं। बाद में हमारे मंदिर का क्षेत्रफल दोगुना होगा और 22.6 हेक्टर तक पहुंचेगा। मंदिर के दोनों ओर हम कुछ आरामगाह की इमारतों का निर्माण भी करेंगे और एक बौद्ध धर्म की मीनार भी बनाऐंगे। योजनानुसार, मीनार के चारों ओर शीशे होंगे, जहां से लोग पूरे ल्वो यांग शहर को देख सकेंगे।इस में दफ्तरों के अलावा, संग्रहालय भी होगा। मौके पर पेइचिंग के समर पैलेस से आये 2700 मूल्यवान सांस्कृतिक अवशेष संग्रहालय में प्रदर्शित किये जाऐंगे।
हम आशा करते हैं कि चीन व भारत की मैत्री के एक माध्यम की हैसियत से पेई मा मंदिर और बौद्ध धर्म का चीन में और विकास होगा।आज चीन व भारत की जनता भी हजारों वर्षों से पहले चीन व भारत के भिक्षुओं की ही तरह दोनों देशों की मैत्री व आवाजाही के लिए योगदान करेंगी और दोनों की मित्रता को आगे बढ़ाऐंगी।
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