• हिन्दी सेवा• चाइना रेडियो इंटरनेशनल
China Radio International
चीन की खबरें
विश्व समाचार
  आर्थिक समाचार
  संस्कृति
  विज्ञान व तकनीक
  खेल
  समाज

कारोबार-व्यापार

खेल और खिलाडी

चीन की अल्पसंख्यक जाति

विज्ञान, शिक्षा व स्वास्थ्य

सांस्कृतिक जीवन
(GMT+08:00) 2006-07-17 15:15:20    
भारतीय फिल्मकारों से हमें क्या सीखना चाहिए

cri

चीनी बुजुर्ग और प्रौढ़ लोगों को भारत की फिल्में और टी.वी धारावाहिकें बेशक भाती हैं, लेकिन नौजवानों का रवैया कैसा है इन के प्रति ? एक चीनी नौजवान ने ऐसा कहा :

"मैं एक कालेज छात्र हूं।हमारे कालेज के कैंपस में बहुत से लोग भारतीय फिल्में देखना पसन्द करते हैं।भारतीय फिल्मों के दृश्य बहुत सुन्दर व सूक्ष्म हैं।अभिनेता और अभिनेत्रियां बहुत खूबसूरत हैं।फिल्मों में प्रस्तुत नाचगान भी अद्भुत हैं।वैसे ही हमारे जैसे नौजवान लोग भारतीय संगीतों के दीवाने हैं।इधर के कुछ वर्षों में भारतीय फिल्में विश्व के अनेक क्षेत्रों में लोकप्रिय हो गए हैं।मैं और मेरे सहपाठियों ने मल्टी मीडिया के जरिए भारतीय फिल्में देखी हैं।हम इन फिल्मों में अभिव्यक्त भारतीय संस्कृति के नए रूझान को अच्छा महसूस करते है।"

भारतीय फिल्मों ने चीनी दर्शकों की तालियां जरूर जीत ली हैं।ऐसा क्यों ? इस का जवाब चीनी जन राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन के सदस्य सुश्री फ़ान चिन-षी ने दिया.सुश्री फ़ान चिन-षी चीन के तुंगह्वांग अनुसंधान प्रतिष्ठान की प्रभारी हैं,जिन्हों ने अनेक बार भारत की सांस्कृतिक यात्राएं कीं।उन का मानना है :

"भारत अपनी संस्कृति और परंपरा की रक्षा को अत्यंत महत्व देता है।लम्बे अरसे तक ब्रिटेन के उपनिवेश क्षेत्र होने के बावजूद भारतीयों के पहनावे,रहन-सहन,खान-पान की आदत,विवाह की परंपरा और भाषाएं अपना अपना मूल रूप नहीं खो गए हैं।भारतीय लोगों को अपनी स्थानीय संस्कृति से बहुत प्यार है।राष्ट्रीय विशेषता भारतीय फ़िल्मों और भारतीय गीतनृत्यों का आकर्षण है,जो दर्शकों की आंखों में ताजगी लाती है।विदेशी दर्शकों को जो पसंद आता है वह भारत की विशेष संस्कृति और पारंपरागत कला ही है।"

 उधर भारतीय फिल्मकार किस तरह से अपनी रचनाओं से भारतीय दर्शकों को लगाव बरकरार रखते हैं? इस पर सुश्री ह्वांग शु-छिन ने कहा :

"भारतीय फिल्मकार आम जनता की रूचि को अत्यंत महत्वपूर्ण मानते हैं।फिल्म बनाने का उन का उद्देश्य अपनी जनता की मांग को पूरा करना ही है।जहां तक किसी फिल्म को अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिल सकता है कि नहीं,यह सवाल उन के लिए नगण्य है।कहा जा सकता है कि अपनी जनता की मांगापूर्ति में वे बहुत सफल रहे हैं।मैं जानती हूं कि भारत के सिनेमाघरों में भी हाँलीवुड की फिल्में दिखाई जाती हैं।लेकिन भारत में उन की स्पर्द्धा-शक्ति भारतीय फिल्मों से कम साबित हुई है।यह बोक्स आफिस की स्थिति से जाहिर हो सकता है। भारतीय लोग नाचगान में निपुण हैं।इसलिए अधिकत्तर भारतीय फिल्मों में नाचगान के लिए बड़ी गुंजाइश सुरक्षित ऱखी जाती है।यही भारतीय विशेषता है।मेरे विचार में चीनी फिल्मी जगत को भारतीय फिल्मकारों की तरह जनता की रूचि पर अधिक जोर लगाना चाहिए और अपनी राष्ट्रीय विशेषता को अत्यंत अहमियत के स्थान पर रखना चाहिए,ताकि सच्चे मायने में लोकप्रिय फिल्म बनायी जा सके।"