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(GMT+08:00) 2006-07-14 09:31:39    
पमीर पठार पर गिरगिज और ताजिक जातियों की रिपोर्टताज

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पश्चिमी चीन में स्थित सिन्चांग वेवूर स्वास्यत्त प्रदेश में अब भी अनेकों अल्पसंख्यक जातियां रहती हैं । प्रदेश में अवस्थित पमीर पठार पर जो गिरगिज और ताजिक जाति रहती है , उन में अब भी सदियों से चली आयी विशेष परम्पराएं बनी रही है । चीन के मशहूर टी वी डाक्युमंटरी फिल्म के निर्देशक श्री ल्यू श्यांग छन ने अनेक बार वहां जा कर उन की विशेष प्रथाओं और रीतिरिवाजों को कैमरे में उतार दिया , जो दर्शकों को इन जातियों का आंखों देखा हाल दिखा सकता है । हम श्री ल्यू के साथ पमीर पठार पर उन की अद्भुत कोशिश जानने जाएं ।

सिन्चांग में समुद्रसतह से सब से ऊंचे स्थल यानी पमीर पठार पर अब भी देश की गिरगिज और ताजिक जातियां रहती हैं । दोनों में घुमंतू जाति की हजारों साल पुरानी परम्परा बनी रही है । आज से दस साल पहले चीन के मशहूर टीवी चलचित्र निर्देशक ल्यू श्यांगछन ने पमीर पठार जा कर सुर्य की संतान नामक एक डाक्युमंटरी धारावाहिक बनाया , जिसे अमरीका के राष्ट्रीय भौगोलिक चैनल पर लगातार तीन सालों तक दिखाया गया , उन की दूसरी डाक्युमंटरी फिल्म कोरम पर्वत पर जेड शिल्पकार भी विश्व के अनेकों स्थानों में लोकप्रिय है ।

पमीर पठार पर डाक्युमंटरी चलचित्र बनाने के दौरान श्री ल्यू श्यांग छन वहां स्थानीय चरवाहों से बेहद घुल मिल गए और डाक्युमंटरी बनाने में काफी कामयाबियां हासिल की । लेकिन आर्थिक दृष्टि से वे विफल सिद्ध हुए । क्योंकि डाक्युमंटरी बनाने के लिए उन्हें दो लाख य्वान का कर्ज उठाना पड़ा । फिर भी सिन्चांग की पुरानी जातीय प्रथाओं को संरक्षित कर रखने के लिए वे अपने सब कुछ समर्पित करने को तैयार हैं । वे कहते हैः

मेरे बहुत से मित्रों को इस पर ताज्जुब है कि चीन में टीवी धारावाहिक निर्देशकों को बड़ी नामी गिरामी मिल सकती है और बड़ी रकम में पैसा भी कमा सकते हैं , क्यों मैं उस क्षेत्र में उतर जाना नहीं चाहता । लेकिन मेरा ख्याल है कि डाक्युमंटरी बनाने में जरूर धारावाहिकों से कम मुनाफा मिलती है , लेकिन मानसिक दृष्टि से वह बहुत लाभदायक काम है । इस काम के दौरान मैं ने तरह तरह के प्राकृतिक दृश्य देखे , विभिन्न किस्मों के जन जीवन से परिचित हुए और जीवन के बारे में असाधारण अनुभव प्राप्त हुए हैं । यह बहुत मूल्यवान सिद्ध होगा ।

श्री ल्यू श्यांग छन वर्ष 1976 में शांगहाई नार्मल विश्वविद्यालय से स्नातक हुए और ऊरूमुची में वापस हो कर क्रमशः मिडिल व उच्च शिक्षालयों में काम कर चुके थे । इस के बाद वे युवा पत्रिका गृह के पत्रकार बन गए । एक बार चीनी जापानी गवेषणा मंडल के साथ रिपोर्टताज के लिए ताकरामाकन रेगिस्तान गए और उन्हों ने इस रेगिस्तान के बारे में एक पुस्तक भी लिखी , जिस की बहुत प्रशंसा की गयी । उस से प्रोत्साहित हो कर उन्हों ने अपनी प्रतिभा का विकास करने के लिए पत्रिका गृह से इस्तीफा की और सिन्चांग टी वी स्टेशन में संपादन व निर्देशन की कैरियर शुरू की । तभी से वे सिन्चांग की विभिन्न जातियों के रीतिरिवाजों के संदर्भ में डाक्युमंटरी फिल्म बनाना आरंभ किया।

वर्ष 1996 में श्री ल्यू ने सिन्चांग के पठार , रेगिस्तान व बेसिन में आबाद अल्पसंख्यक जातियों के जीवन को कैमरे में उतारने की योजना बनायी और इस के लिए पमीर पठार पर रहने वाली गिरगिज व ताजिक जातियों की परम्पराओं पर टीवी फिल्म बनाना शुरू किया ।

इस काम के लिए उन्हें बहुत से अकल्पनीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ा । एक बार उन की क्रासकंट्री जीप खराब हो गयी , पठार पर जाने के लिए उन्हें ऊंट का सहारा लेना पड़ा और कुछ दिन गद्हा भी लेना पड़ा । 5500 मीटर ऊंचे पहाड़ पर जाने के लिए उन्हें खुद भारी भरकम कैमरा साजसामान लाद कर चढ़ना पड़ा और खाद्य पदार्थ के अभाव के कारण रोज उन्हों ने केवल एक वक्त का खाना खाया और रात को एक छोटे तंबू में कई लोगों को एक साथ रहना पड़ा । इस की चर्चा में उन्हों ने कहाः

आम लोगों की नजर में हम ने असाधारण कष्ट झेला है , लेकिन मैं मजाक के साथ कहता हूं कि मैं पठार पर काम करता हूं , जहां आज की जमाने में धनी हुए लोग पर्यटन के लिए जाने के इच्छुक हैं , वे भारी रकम के पैसे खर्च कर वहां की ताजा हवा लेते हैं और स्थानीय लोगों की सादा सीधा प्रथाओं से लुफ्ट उठाते हैं । किन्तु मैं उन के जैसे ज्यादा पैसा खपाने के बिना ही इस सब का आनंद उठा सकता हूं , यह कष्ट नहीं है , यह जीवन का उपभोग है ।

एक बार , श्री ल्यू याक पर सवार हो कर पहाड़ पर चढ़ रहे थे , लेकिन जोर से पांव रखने के कारण याक के जीन की रस्सी टूट गयी , भय खा कर याक ने जोर से धक्का मारा और उन्हें जमीन पर पछाड़ दिया , लेकिन उन का पांव जीन में उलझा था ,याक उन्हें खींच कर उन्माद के साथ भागा , इस नाजुक घड़ी में श्री ल्यू ने हुंकार मार कर अपने पांव को जीन से छु़टकार दिया और अपनी जान बचायी । पर उन के मुख , हाथ और शरीर पर पत्थरों से बहुत सी चोटें लगीं । स्थानीय लोगों ने जड़ी बुटी से उन की घावों को मरहम लगाया और अपने बच्चे की भांति उन की देखभाल की और जब वे पूरी तरह चंगा हुए , तभी उन्हें जाने दिया । श्री ल्यू ने कहाः

मैं पठार पर काम करता हूं , बहुत सी जगहों पर घूम जाता हूं , मैं वहां के ताजिक व गिरगिज निवासियों से बहुत घुल मिल हो गया हूं । हम एक ही परिवार के सदस्य के बराबर हो गए हैं । हम अकसर एक दूसरे के वहां मिलने जाते हैं , जैसे रिश्तेदार मिलते जुलते हों । गिरगिज और ताजिक लोग बहुत सीधे सादे और सद्भावपूर्ण हैं , हम जहां भी गए , वे हमें मदद देने के लिए तैयार हैं । घोड़ा ताजिक लोगों का अमोल साधन है , आम तौर पर वे अपने घोड़े को दूसरों को उधार नहीं देते हैं , लेकिन जब मैं पहाड़ी घाटी में दिनों से चला जाता , तो वे सवारी के लिए घोड़ा देते हैं और मदद के लिए अपना पुत्र भी साथ भेजते हैं । इस से मैं अत्यन्त प्रभावित हुआ हूं ।

पठार में ल्यू श्यांग छन को जब कभी खतरे का सामना करना पड़ा , तो स्थानीय लोग जरूर मदद देने आ पहुंचते हैं । उन का यह प्रेम ल्यू श्यांग छन के लिए पठार पर कायम रहने का मानसिक समर्थन है और उन की रीति रिवाजों को संरक्षित करने के लिए वे अपनी कोशिश को बड़ा गौरव समझते हैं ।

अपनी धारावाहिक टीवी डाक्युमंटरी सुर्य की संतान बनाने के बाद भी श्री ल्यू श्यांग छन अकसर पमीर पठार पर वापस लौटते हैं , वहां की हर चीज उन के लिए अमिट यादगार बन गयी है । पठार उन की दूसरी जन्म भूमि हो गयी है और उन का आत्मा भी वहां के वातावरण में घुल गयी है । वे कहते हैः

सिन्चांग देश की दूसरी जगहों से अलग है , वहां सब से ऊंचा पर्वत है, सब से नीची बेसिन है , सब से ठंडा स्थल है , सब से गर्म जगह भी है , वहां सब से वीरान रेगिस्तान है , वहां सब से हरिभरी नख्लिस्थान भी है । एक ही आसमान के नीचे बहुत से भिन्न भिन्न रंगों के दृश्य मिलते हैं । देश के दूसरी जगहों से जो लोग सिन्चांग में काम करने गए , वे भी कुछ सालों के बाद वहां की परम्पराओं से इस कदर तक प्रभावित हुए हैं कि वे खुद अपने को सिन्चांग वासी समझ गए हैं और सिन्चांग की जीवन शैली अपनाने लगे हैं । इस प्रकार का मनोभाव देश की किसी दूसरी जगह में कम देखने को मिलती है ।