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प्रिय मित्रो , आप जानते ही हैं कि शिनिंग शहर 2008 पेइचिंग ओलम्पियाड के शुभचिन्हों में से एक इंग इंग की जन्मभूमि ही नहीं , नीदरलैंड के राष्ट्रीय फूल टुलिप की जन्मभूमि के नाम से भी जाना जाता है । इस पठारीय शहर का मौसम अत्यंत सुहावना है , इसलिये विभिन्न किस्मों वाले फूलों , खासकर टुलिप के लिये बेहद अनुकूल है और इन फूलों के रंग भी अद्भुत सुंदर हैं ।
साथ ही शहर के उपनगर में स्थित चार सौ वर्ष पुराना ऐतिहासिक बौद्ध धार्मिक ताल्स मठ भी देखने लायक है ।
ताल्स मठ दक्षिण पश्चिम शिनिंग शहर से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है , वह उत्तर पश्चिम चीन का बौद्ध धार्मिक केंद्र माना जाता है । चार लाख वर्गमीटर की जमीन पर स्थित यह ताल्स मठ एक हजार से अधिक आंगनों और चार हजार पांच सौ से अधिक भवनों से गठित संपूर्ण हान व तिब्बती वास्तु कलाओं से युक्त भवनों का समूह चीन में बहुत विख्यात है । और तो और इस मठ में भित्ति चित्र , कसीदा और घी से बनी बनीई कलाकृतियां सब से प्रसिद्ध व मूल्यवान हैं ।
इस पगोडा मठ की स्थापना 1560 में हुई । इस तरह उस का इतिहास कोई चार सौ वर्ष पुराना है , पर अच्छे संरक्षण की वजह से वह बहुत सुंदर दिखाई देता है । मठ के मुख्य द्वार के सामने आठ आलीशान सफेद पगोडे खड़े हैं जो इस मठ का प्रतीक भी हैं और आकर्षण का केंद्र भी । यहां खड़े होकर आप अगर चारों ओर नजर दौड़ायें तो पायेंगे कि पगोडा समूह के सामने स्थित छोटा चौक तिब्बती शैली की दस्तकारी की दुकानों से खचाखच भरा है और दुकानदार आवाज लगाते चीजें बेचने में मग्न हैं । देशी-विदेशी पर्यटकों की भीड़ इन छोटी-बड़ी दुकानों से होकर मठ की ओर उमड़ती दिखती है । इस तरह इस पवित्र मठ के चारों ओर व्यावसायिक वातावरण व्याप्त रहता है । इसे देख कर मुझे चिन्ता हुई कि कहीं यह व्यावसायिक वातावरण और पर्यटकों की भीड़ इसकी धार्मिक पवित्रता को तो भंग नहीं करेगी । पर इस मठ के दौरे से मेरी यह चिन्ता दूर हो गयी ।
मैं पर्यटकों के साथ सबसे पहले इस मठ के पिछले भाग में स्थित एक छोटे आंगन में पहुंची । इस आंगन के मकान हान व तिब्बती जाति की वास्तुशैलियों वाले हैं । मकानों की छत पर लगे हरे पत्थर और गोल छज्जे हान शैली के हैं , जबकि लाल सीढ़ीनुमा खंभे , दीवारें और खिड़कियां तिब्बती शैली की । दिलोजान से दंडवत होने में मग्न अनुयायियों को देखते हुए मुझे उन की बुद्ध के प्रति अपार निष्ठा महसूस हुई । शायद उन्हें विश्वास हुआ होगा कि उन के हृदय में अवश्य ही एक छायादार पीपल है और हर पीपल पत्ती पर एक बुद्ध की मूर्ति अंकित है और ये मूर्तियां अपना मानसिक आस्था और जीवन लक्ष्य ही है , इसी लक्ष्य को पूरा करने के लिये वे कठिनाइयों को दूर कर अकल्पनीय दृढ़ता से स्वयं निर्धारित कार्य पूरा करने के लिये प्रयास करते रहते हैं ।
ताल्स मठ चीन के प्रसिद्ध बौद्ध धर्म का पवित्र स्थल है , हजारों लाखों निष्ठावान अनुयायी दूर फासले की परवाह न कर यहां आते हैं दंडवत प्रार्थना के जरिये अपने और भगवान के बीच का फासला नाप लेते हैं और आशीर्वाद मंगाते हैं । पेइचिंग से आयी पर्यटक सुश्री मा लीन ने कहा कि कोई भी क्यों न हो , यदि ताल्स मठ आता है , तो वह अवश्य ही भगवान से सुख व शकुन की प्रार्थना कर देता है ।
उन्हों ने कहा कि मुझे अगल ढंग की संस्कृति को महसूस करने का शौक है । यहां पर मैं ने सच्चे मायने में बौद्ध धर्म की संस्कृति का तर्क समझ लिया है और दूसरे अलग क्षेत्र के विविधतापूर्ण रीति रिवाज को महसूस किया है । इतने अधिक निष्ठावान अनुयायी और शांत वातावरण किसी दूसरी जगह में कहीं नजर नहीं आते हैं ।
हमारे मठ से बाहर निकलते-निकलते पर्यटकों की भीड़ बढ़ गयी थी , पर मुझे यह भीड़ शोरगुल भरी नहीं लगी । थारस यानी पगोडा मठ के दौरे से मुझे बौद्ध धर्म का यह तर्क समझ में आया कि किसी भी एक क्षण दिल में एक साधारण भाव बनाये रखकर उसमें बसे पीपल की रक्षा की जानी चाहिए ।
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