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(GMT+08:00) 2006-07-05 14:32:04    
छिंगहाई तिब्बत रेल-मार्ग के निर्माण में आईं तकनीकी समस्याएं

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1 जुलाई को विश्व में सब से ऊंचा रेल-मार्ग छिंगहाई तिब्बत रेल-मार्ग खुल गया और इस पर यातायात भी शुरु हो गया। तिब्बती पठार पर एक रेल-मार्ग का निर्माण दूसरे स्थलों की तुलना में बिल्कुल अलग है । जमी हुई जमीन तथा ऑक्सीजन के अभाव की वजह से वहां रेल-मार्ग का निर्माण विदेशी विशेषज्ञों द्वारा असंभव बताया गया था। लेकिन चीनी रेल-मार्ग निर्माताओं ने सभी तरह की समस्याओं को दूर कर छिंगहाई तिब्बत रेल-मार्ग के निर्माण में सफलता हासिल की,और इस रेल-मार्ग को आकाश-मार्ग का नाम प्राप्त हो गया ।

इस गीत में कहा गया है कि छिंगहाई तिब्बत रेल-मार्ग अजीब सा आकाश मार्ग है । पर इस आकाश मार्ग के निर्माण में कैसी तकनीकी समस्याएं आईं हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इस रेल-मार्ग के निर्माण में दीर्घकाल से जमी हुई बर्फीली जमीन तथा ऑक्सीजन का अभाव रेल-मार्ग के निर्माण के रास्ते में आने वालीं सब से बड़ी कठिनाइयां हैं ।

छिंगहाई तिब्बत रेल-मार्ग का कोल्मू से ल्हासा तक का ग्यारह सौ लम्बे किलोमीटर मार्ग का आधा भाग जमी हुई बर्फीली ज़मीन पर से गुज़रता है । जमी हुई जमीन का अन्दरुनी भाग बर्फ से भरा हुआ है । इसलिए ग्रीष्मकाल में सूर्य की धूप से जमी हुई जमीन पिघलती है । इसी जमीन के ऊपर निर्मित रेल मार्ग की नींव कैसे मजबूत हो सकेगी ? छिंगहाई तिब्बत रेल-मार्ग का निर्माण करने वाले, चीनी रेल-मार्ग निर्माण कंपनी के सीनियर इंजीनियर श्री लीन लैन ने कहा , जमी हुई जमीन के ऊपर निर्मित ढांचे सर्दियों के दिनों में मजबूत नींव पर खड़े रहते हैं । पर ग्रीष्मकाल में बर्फ पिघलना शुरु होने के बाद सभी निर्मित ढांचों की नींव भी पिघलने लगती है । इसलिए ऐसी जमीन पर रेल-मार्ग का निर्माण बहुत कठिन है।

जमी हुई जमीन की कठिनाई दूसरे देशों के रेल-मार्ग में भी बाधा बनी है। जैसे वर्ष 1970 के दशक में निर्मित सोवियत संघ साइबेरियन रेल-मार्ग का 27 प्रतिशत भाग जमी हुई जमीन का शिकार बन गया । आम तौर पर जमी हुई जमीन पर चलने वाली रेल गाड़ियों की गति 50 किलोमीटर प्रति घंटा रहती है। रूस और कैनेडा आदि देशों की जमी हुई जमीन सुस्थिर है । लेकिन तिब्बती पठार पर सूर्य की धूप तेज़ रहती है , ग्रीष्मकाल में यहां की ज़मीन कमज़ोर बनने लगती है । और तिब्बती पठार में भूकंप का खतरा भी बना रहता है , इस तरह तिब्बती पठार पर रेल मार्ग के निर्माण में विशेष कठिनाईयां हैं ।

श्री लीन ने कहा कि जमी हुई जमीन की समस्या का समाधान करने के लिए चीनी निर्माताओं ने ऐसा उपाय सोचा निकाला कि रेल मार्ग की नींव तथा जमी हुई जमीन के बीच में टुकड़े-टुकड़े पत्थरों की एक विशेष सतह बिछायी गयी । इस तरह अब ग्रीष्मकाल में जब सूर्य के ताप से पटरियां गर्म होंगी,तो जमी हुई जमीन इस के प्रभाव से वंचित रहेगी ।

पर केवल ऐसे उपायों से जमी हुई जमीन के सभी सवालों का समाधान नहीं किया जा सकता । इसलिए निर्माताओं ने रेल-मार्ग को एक लम्बे पुल के ऊपर निर्मित किया । यानी लम्बे पुल के माध्यम से जमी हुई जमीन के क्षेत्र को पार करने का उपाय खोजा गया । रेल-मार्ग पर पुल की लम्बाई 150 किलोमीटर तक जा पहुंची है ,जोकि विश्व के रेल-मार्ग के निर्माण के इतिहास में अभूतपूर्व है । उन्हों ने कहा कि छिंगहाई तिब्बत रेल-मार्ग के कुछ पुलों के स्तंभ जमीन की सतह के नीचे बीस तीस मीटर गहरे तक खड़े किए गए हैं । इस से रेल-मार्ग पर जमी हुई जमीन का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा ।

पर जमी हुई जमीन के अलावा ऑक्सीजन का अभाव दूसरी समस्या है । तिब्बती पठार पर हर साल एक सौ साठ दिनों तक तेज़ हवा चलती है । और पांच हजार मीटर की ऊंचाई पर ऑक्सीजन का भंडारण मैदानों की तुलना में सिर्फ 50 प्रतिशत होता है । ऑक्सीजन के अभाव का मनुष्य के स्वास्थ्य पर काफी प्रभाव पड़ता है । इस सवाल की चर्चा करते हुए रेल-मार्ग में सुरंग के निर्माता श्री रें श्याओ छिआन ने कहा , पठार पर ऑक्सीजन का अभाव होने से लोगों के न सिर्फ स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है , बल्कि मजदूरों के मन में आशंका बनी रहती है । इसलिए मजदूरों को ऑक्सीजन का सिलेंडर पीठ पर बांध कर काम करना पड़ा । लेकिन ऐसा करने से काम करने में असुविधा होती है । इस समस्या का समाधान करने के लिए तकनीशियनों ने सुरंग के दोनों सिरों पर ऑक्सीजन बनाने की भारी मशीनें रख दीं , और पंखे से ऑक्सीजन को सुरंग के अन्दर काम करने वालों तक पहुंचाया गया । इस के अतिरिक्त मजदूरों के स्वास्थ्य की गारंटी करने के लिए अनेक उपाय किये गये ।

रेल-मार्ग के निर्माण के दौरान हम हरेक मजदूर को एक ऑक्सीजन सिलेंडर देते थे , और उन्हें रोज़ एक-दो घंटों के लिए सिलेंडर से ऑक्सीजन लेने के लिए कहा जाता था। इस तरह मजदूरों के स्वास्थ्य की गारंटी की गयी और रेल-मार्ग के निर्माण को पूरा किया गया ।

छिंगहाई तिब्बत रेल लाइन के निर्माण में पर्यावरण संरक्षण

छिंगहाई तिब्बत रेल लाइन के निर्माण में पर्यावरण संरक्षण के कार्यों पर विश्व का ध्यान आकर्षित है । क्योंकि तिब्बत पठार की पारिस्थितिकी बहुत कमजोर है , बरबाद होने के बाद इस की बहाली करना बहुत मुश्किल होगा। इसलिए छिंगहाई तिब्बत रेल लाइन के निर्माताओं ने रेल मार्ग के किनारों पर पर्यावरण के संरक्षण पर बहुत महत्व दिया है ।

तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा के उत्तर में चार सौ किलोमीटर की दूरी पर तीन सौ वर्ग किलोमीटर विशाल छ्वना नामक तालाब है , जो जंगली हँस , बत्तख तथा तिब्बती कुरंग का तीर्थस्थल है । इस झील के पानी को संभावित प्रदूषण से बचाने के लिए छिंगहाई तिब्बत रेल लाइन के निर्माताओं ने बीस किलोमीटर लम्बी एक दिवार खड़ी की है । इस परियोजना के जिम्मेदार श्री यैन फेई ज्वन ने कहा , छ्वना तालाब को संभावित प्रदूषण से बचाने के लिए हम ने रेतीली बोरियों से इस झील के बाहर बीस किलोमीटर लम्बी एक दीवार का निर्माण किया है। इस तरह झील का पानी साफ बनाये रखा जा सकेगा ।

प्राकृतिक वातावरण के संरक्षण के अलावा छिंगहाई तिब्बत रेल लाइन के किनारों के आसपास रहने वाले जंगली पशुओं पर अधिक आंखें आकर्षित हैं । इस रेल लाइन के दोनों तटों पर 11 राष्ट्र स्तरीय प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र बिखरे हुए हैं , जिन में तिब्बती कुरंग , तिब्बती गधे और जंगली याक समेत दसेक पशुओं की नस्लें जीवित हैं । इन मूल्यवान पशुओं के संरक्षण के लिए छिंगहाई तिब्बत रेल लाइन के निर्माताओं ने घुमंतू पशुओं के चलने के लिए तीसेक विशेष मार्ग खोले रखे हैं । रेल लाइन के जनरल इंजीनियर श्री छ्वाओ यू सिन ने कहा , वर्ष 2002 में जब छिंगहाई तिब्बत रेल लाइन का निर्माण किया जा रहा था , तब बड़ी संख्या में तिब्बती कुरंग घूमते हुए इस रेल लाइन को पार करते हुए देखे गए । हम ने इन पशुओं की सुविधा के लिए दस दिनों के लिए काम को बन्द किया , और घायल हुए कुरंगों का इलाज भी किया । कड़े संरक्षण कार्य की वजह से छिंगहाई तिब्बत रेल लाइन के दोनों तटों पर रहने वाले जंगली पशुओं का काफी संरक्षण किया जा चुका है ।