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(GMT+08:00) 2006-07-04 16:00:22    
तिब्बती भूतासी छिरन लाम की कहानी

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चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के लोका प्रिफेक्चर की नेतुंग काऊंटी में मेरी मुलाकात एक साधारण रिहाइशी मकान की मालिकन 80 वर्षीय छिरनलाम से हुई। वे सुबह-सुबह ही उठ कर घर प्रांगन की सफाई करने में जुटी रही है और फुलों की क्यारी में पानी छिड़का देती हैं । बड़ी वयोवृद्ध होने पर भी वे देखने में चुस्त फुर्स्ट दिखती हैं । उन के कदम तेज और स्थिर हैं और बोलने की आवाज बुलंद और सशक्त है । वे श्रम करने के साथ गीत गाना भी पसंद करती हैं ।

छिरनलाम का जन्म वर्ष 1926 में तिब्बत के लोंची जिले में एक गाय बाड़े में हुआ था , उस के माता पिता भूदास होने के कारण वह भी जन्म से ही भूदासी रही । दिन में उस की माता उसे पीठे पर लादे कड़ी मेहनत में काम करती थी और रात को परिवार के तीनों जन एक मंदिर के बाहर पड़े गाय बाड़े में सोते थे । जागीरदार से मिलने वाला आहार यानी तिब्बती जौ से बना चानबा बहुत कम था , इसलिए छोटी छिरनलाम लम्बे अरसे से कुपोषण से पीड़ित थी और बहुत पतली दुबली नजर आयी थी । अपनी छै साल की उम्र में वह जागीरदार की भूदासी बनी , जिस के साथ बोल सकने वाले पशु का जैसा बर्ताव रहता था । वह रोज जागीरदार के गांव में झाड़ू झाड़न का काम करती थी , पहाड़ पर ईंधन तोड़ कर लाती थी और जागीरदार का मोटा पुत्र अपने पीठे पर लादे उसे टहलाती थी । इन कामों में जरा भी गलती हुई , तो उसे कोड़ा मारा जाता था । 

छिरनलामा की 12 साल की उम्र में जागीरदार मर गया . जागीदार की पत्नी ने छिरनलाम के माता पिता को दूसरे जागीदार के हाथ बेच दिया , जागीरदार की पत्नी छिरनलाम तथा अन्य नौजवान भूदासों को ले कर 200 किलोमीटर दूर एक दूसरे गांव में जा बसी , जिस से छिरनलाम अपनी माता पिता से हमेशा के लिए जुदा हो गयी ।

तिब्बती जाति में एक कहावत प्रचलित है कि बहती हुई नदी का उद्गम पहाड़ों पर है , घास मैदान में मेमना अपनी मां से अलग नहीं हो सकती । छिरनलाम के साथ बातचीत में उन्हों ने अपनी दुखांत आपबित्ता की याद करते हुए कहाः

मैं 12 साल की उम्र में ही जन्म भूमि से जुदा हुई , तभी से मैं फिर कभी भी अपने माता पिता से नहीं मिल पायी । इस की चर्चा में उन की आंखों में आसू भर गयी । जागीरदार के गांव में वह रोज बैल गाय चराती थी , सुबह शाम को गाय से दूध दोहती थी , घी चाय बनाती थी और ऊनी धागा बुनाती थी , वह पशु की भांति आधी रात तक काम करती रहती थी , पर इस कड़ी मेहनत के एवज में उसे मात्र कई कुछ हथली भर का चानबा दिया जाता था और कभी-कभी मारपीट भी सहना पड़ता था । वह रोज बुद्ध भगवान से बड़े लगन से प्रार्थना भी करती थी , पर जरा भी आशा की किरण देखने को नहीं मिली ।

वर्ष 1959 में चीन की केन्द्रीय सरकार ने तिब्बत में जनवादी सुधार शुरू किया , जिस से तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के आठ साल तक अछूता भूदास व्यवस्था खत्म कर दी गई , भू दास मालिकों के जायदादों के बंटवारे में 33 साल की छिरनलाम को पहली बार तीन बकरी , एक गाय तथा 0.4 हैक्टर का खेत हासिल हुए , इस तरह वे भूदासी से छुटकारा पा कर एक स्वतंत्र मानव बन गई ।

अपने तीस साल के भूदास जीवन की याद करते हुए छिरनलाम अपने नए जीवन को अत्यन्त कीमती समझती हैं । वर्ष 1961 में उन्हों ने तिब्बत में भूतपूर्व भूदासों से पहला कृषि सहकारी दल गठित किया ।

श्रीमती छिरनलाम ने इस बात की याद में कहा कि उस समय हमारे गांव में 11 परिवार अतीत में भूदास मालिक के लिए भूदास के काम करते थे , वे खेतीबाड़ी नहीं जानते थे और न ही उत्पादन तकनीक से ज्ञात थे , हमारे पास उत्पादन साधन भी बहुत कम थे , इसलिए किसानों से गठित उत्पादन सहकारी दल हमें शामिल करना पसंद नहीं करते थे । इस तरह मैं ने भूतपूर्व भूदासों को उत्पादन सहकारी दल में संगठित करने का फैसला किया और अपनी शक्ति के भरोसे कृषि उत्पादन को बेहतर बनाने का निश्चय किया ।

उसी साल , छिरनलाम के नेतृत्व में पूर्व भू दासों के सहकारी दल ने विनम्रता के साथ तिब्बती जौ की खेती के अनुभवी उपाय सीखे और बढ़िया किस्म के जौ की खेती करने में पहल किया । उन के नेतृत्व में सरकारी दल के सदस्यों ने नहर खोदने में भी सरगर्मी दिखायी । एक बार सौ साल के दौरान कम देखने को आए भयानक बाढ़ ने छिरनलाम के गांव को अपनी लपेट में ले लिया , खड़ी फसलों की रक्षा के लिए छिरनलाम सर्वप्रथम नहर के गहरे पानी में कूद पड़ी और गांववासियों के साथ मिल कर अपने शरीर से तटबंध पर पड़ी दरारों को बन्द कर दिया , जिस से तटबंध के पुनर्निर्माण में आसानी हो गई है । संकट पड़ने पर भी उस साल छिरनलाम के पूर्व भूदासों के सहकारी दल ने शानदार फसल काटी । अपने अथक प्रयासों के फलस्वरूप छिरनलाम का कृषि सहकारी दल तिब्बत में बहुत मशहूर हो गया और आदर्श कृषि सहकारी दल के नेता के रूप में छिरनलाम से पेइचिंग में तत्कालीन चीनी नेता अध्यक्ष माओ त्से तुंग आदि ने मुलाकात की ।

पिछली शताब्दी के 70 और 80 वाले दशकों में छिरनलाम दोबार चीनी राष्ट्रीय जन प्रतिनिधि सभा की सदस्या चुनी गई । वे तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की जन प्रतिनिधि सभा की स्थाई कमेटी की उपाध्यक्ष का पद भी संभालती रही । यह उप मंत्री के दर्जे का ऊंचा सरकारी औहदा है । लेकिन छिरन लाम कभी भूदासी की अपनी उत्पीड़न व शोषण से पीड़ित आपबीती नहीं भूली है , वे अपने कामकाज के दौरान हमेशा जन साधारण का ख्याल करती है और मिलनसार और ईमानदार रहती है , वे हमेशा अपनी शारीरिक श्रम करने की आदत बनाए रखी हुई है । वर्ष 1983 में तत्कालीन चीनी नेता तङ शाओ फिंग के आह्वान में आ कर 57 वर्षीय छिरनलाम ने अपनी मर्जी से पद से सेवानिवृत्त हो कर रिटायर का जीवन बिताना शुरू किया , ताकि उम्र में कम , पढ़े लिखे और तकनीकी अनुभव प्राप्त लोगों को सरकारी पदों पर नियुक्त किया जा सके ।

वृद्धा छिरनपाईचन छिरनलाम की सखी है , दोनों वर्षों से पड़ोसी भी हैं । उन की नजर में छिरनलाम एक आदर्शनीय बुजुर्ग नेता , स्नेहपूर्ण पड़ोसी और जिगरी सखी हैं, पिछले 22 सालों में सरकारी पद नहीं संभालने पर भी वे जन कल्याण कार्य में जुटी रही है । रिटायर होने के बाद छिरनलाम रिटायर कम्युनिस्टों से गठित एक पार्टी कमेटी के उप सचिव रही , आम दिनों वे पुस्तक और पत्रपत्रिका पढ़ती हैं और अपने पौते के साथ नया-नया ज्ञान सीखती हैं , घर परिवार में वे स्नेह से भरी दयालु दादी हैं और पास पड़ोस के लोग भी उन का अत्यन्त सम्मान और प्यार करते हैं । वृद्धा छिरनपाईचन ने कहाः

रिटायर होने के बाद हम दोनों एक ही पार्टी शाखा में काम करती हैं और पड़ोसी के रूप में जीवन बिताती हैं । वे अस्सी साल के होने वाली हैं , फिर भी वे बहुत तेजस्वी और जोश हरोश बनी रही है । वर्द्धावस्था में आनंदमय शेष जीवन बिताने के साथ-साथ कुछ न कुछ हितकारी काम भी करना चाहिए । इस क्षेत्र में वे हमारे लिए आदर्श मिसाली हैं , वे बड़े उत्साह के साथ पार्टी के काम काज में हिस्सा लेती हैं , मसलन वे अकसर वृद्धों के व्यायाम व कला प्रदर्शनों में भाग लेती है , हमें उन से सीखना चाहिए ।

छिरनलाम कहती है कि वे कभी चीनी कम्युनिस्ट पार्टा का एहसान नहीं भूल सकती है , उसी ने उन्हें संमेत तिब्बती भूदासों को असह्य मुसिबतों और दुखों में से उबार दिया है , इस से वे पिछले 50 सालों से सुखमय जीवन बिताती रही है । उन्हों ने कहा कि उन की जिन्दगी में अब कोई खेद की बात नहीं रही है , उन की केवल यह उम्मीद है कि वे अपने शेष जीवन में समाज के लिए कुछ ज्यादा हितकारी काम करेंगी ।

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