• हिन्दी सेवा• चाइना रेडियो इंटरनेशनल
China Radio International
चीन की खबरें
विश्व समाचार
  आर्थिक समाचार
  संस्कृति
  विज्ञान व तकनीक
  खेल
  समाज

कारोबार-व्यापार

खेल और खिलाडी

चीन की अल्पसंख्यक जाति

विज्ञान, शिक्षा व स्वास्थ्य

सांस्कृतिक जीवन
(GMT+08:00) 2006-07-03 09:31:41    
चिडिया को स्वतंत्र देने वाला वृद्धा

cri

चिडिया बाजार की सैर औऱ चिडियां पालना हाल के कुछ वर्षों से अनेक चीनी नागरिकों का शौक बना हुआ है। चीन के केंद्र शासित शहर थ्येन चिंग म्युनिसिपल के ह शी क्षेत्र के निवासी वयोवृद्ध 侯得良 चिडिया बाजार की सैर के खास शौकीन हैं।

वसंत व पतझर दोनों मौसमो में वे आप को हर रोज अपने घर के निकट के चिडिया बाजार में घूमते मिल जाएंगे। वहां वे कोई महंगी चिडियां खरीदने नहीं पहुंचते, बल्कि एक य्वान में पांच से छः तक की तादाद में मिलने वाली चिडिया के लिए आते हैं।

 उन का मकसद चिडियों को घर लाकर पिंजरे में बंद करना नहीं है, बल्कि उन्हें फिर से प्रकृति की गोद में छोड़ आता है। यह काम करते उन्हें 30 वर्ष हो चुके हैं। जाहिर है 88 वर्षीय इस वृद्ध द्वारा प्रकृति को वापस सौंपी गयी चिडियों की संख्या अनगिनत है। उन के प्रभाव में आकर इधर उन की 75 वर्षीय पत्नी दादी भी चिडियों को खरीद-खरीद कर आजादी देने के काम में लग गई हैं।

30 वर्षों पहले, जब हो द ल्यांग रिटायर होने के बाद पहली बार चिडिया बाजार गये ।तभी उन के मन में पिंजरों में बंद प्यारी चिडियों को प्रकृति को वापस सौंपने का विचार आ चुका था। इसलिए, उन्होंने चिडियों को खरीदकर आजाद करने का शगल पाया। इन तीन दशकों में वे हर दिन

अपनी जेब से एक य्वान लगाकर चिडियां खरीदते, और उन्हें उन की सही जगह पहुंचाते रहे हैं।

अपने इस शौक की चर्चा करते हुए श्री हो ने खुशी से भर उठते हैं। उस समय मेरी उम्र 60 वर्ष थी, बस रिटायर ही हुआ था। मेरे पास कुछ पैसे भी हो। मुझे शराब

औऱ सिग्रेट पसंद थी, पर तब मैंने सोचा कि यदि मैं हर रोज महज एक य्वान की भी किफायत करूं, तो एक साल में 365 य्वान बचा सकता हूं।

श्री हो को 365 य्वान की यह बचत तो अनेक पक्षियों की खरीद में समर्थ बना सकीं।

वे अक्सर चिडिया बाजार जाकर चिडिया खरीदने और उन्हें एक पार्क जाकर उड़ा देते। उन की इस कार्यवाई का उन के निकट रहने वाली वृद्धा शिंग व्यू लेन को पता चला। तो वे भी उन के इस कार्य में भी शामिल हो गईं।

उन के अनुसार, मैं और हो चिडियों को आजाद करने में जुटे तो आधे महीने में कुल मिलाकर दस हजार चिडियां मुक्त हुईं। हर दिन हम तिपहिया साइकिल पर इन पक्षियों को बाजार से पार्क लाते हैं।

गर्मियों में उन्हें गस्ते में ही पिंजड़े के भीतर दम तोड़ने से बचाने के लिए हमें जल्दी जल्दी साइकिल चलानी पड़ती है। हां, कभी कभी हम एक दिन में दो बार भी चिडिया बाजार से पार्क जाते हैं।

वे पिंजरे में बंद पक्षियों को प्रकृति में पुनः वापस लौटेने की गारंटी देते हैं। और हर एक पक्षी की पुनः नीले आकाश में वापसी देखकर दोनों के दिलों को बहुत शांति मिलती है।

चिडियों की खरीद इन दोनों बुजुर्गों को थकाती जरुर है, पर उन्हें उड़ाने से उन्हें बहुत प्रसन्नता होती है।

हो कहते हैं, कई बार ऐसा भी हुआ कुछ पक्षई तो उड़ गये, पर कुछ वापस लौट आये। इस पर मैंने उन्हें पौधों पर रखा औऱ कहा, उड़िए न। पर वे फिर पिंजड़े में आ गये। पर आखिर दो तीन बार ऐसा करने के बाद सभी आसमान में जा उड़े ।

श्री हो और श्रीमति शिंग ने इधर खुद सरल जीवन बिताया है, औरपक्षियों की खरीद पर बहुत पैसे लगाया हैं।

चिडिया बाजार के कुछ पक्षी बेचने वाले लोगों का भी कहता हैं कि इन दो वृद्धों प्रभावित होकर वे भी पक्षियों को पकड़ कर नहीं बेचना चाहते।