हम जानते हैं कि गूंगे-बहरे आपस में आम तौर पर संकेत-भाषा के जरिये विचारों और अपनी भावनाओं का आदान-प्रदान करते हैं। लेकिन सामान्य लोग उन के साथ कैसे संपर्क करते हैं ? सभी लोगों को संकेत-भाषा आना या सीखना अस्वाभाविक है । हाल ही में चीनी विज्ञान अकादमी के गणित प्रतिष्ठान के तकनीशियनों ने संकेत-भाषा का अनुवाद करने वाली मशीन का आविष्कार करने में सफलता पायी है । इस मशीन के जरिये सामान्य लोग भी गूंगे-बहरों के साथ बिना बाधा बातचीत कर सकते हैं ।
अभी जो आप सुन रहे हैं वह संवाददाता और अनुवाद मशीन के बीच बातचीत है । मायैन नामक एक गूंगी-बहरी लड़की ने इस मशीन के जरिये संवाददाता के साथ बिना किसी बाधा के बातचीत की । पर अजीब सी बात है कि लड़की ने मुंह से नहीं, अपने हाथों की संकेत-भाषा से अपने दिल की बात कही । फिर अनुवाद मशीन ने लड़की की संकेत-भाषा को आम लोगों के लिए अर्थपूर्ण ध्वनियों में बदल दिया । यही संयंत्र चीनी विज्ञान अकादमी के गणित प्रतिष्ठान के तकनीशियनों द्वारा आविष्कृत अनुवाद मशीन है । इस अनुवाद मशीन का प्रयोग करने वालों को एक विशेष दस्ताना पहनना पड़ता है , जो तारों के ज़रिए एक कंप्यूटर के साथ जुड़ता है । दस्ताना गूंगे-बहरों की संकेत-भाषा को इलेक्ट्रोनिक सिगनल में बदलता है,फिर कंप्यूटर में रखी हुई व्यवस्था के जरिये गूंगे-बहरों की संकेत-भाषा अर्थपूर्ण आम ध्वनि भाषा में बदल जाती है ।यह पूरी प्रक्रिया केवल कुछ ही पलों में पूरी हो जाती है । इस अनुसंधान में भाग लेने वाले डॉक्टर चेंन ने बताया कि दस्ताना इस पूरी व्यवस्था में कुंजीभूत पुर्जा है । कोई भी गूंगा-बहरा इसे पहनकर संकेत-भाषा से दूसरे आम लोगों के साथ बातचीत कर सकता है।
हमारी व्यवस्था की ऐसी विशेषता है कि वह बिलकुल ठीक-ठीक गूंगे-बहरों की उंगलियों की हरकतों को याद कर सकती है । फिर यही व्यवस्था इन्हीं हरकतों के इशारों को कंप्यूटर के अन्दर हिसाब लगा करके अर्थपूर्ण आम ध्वनि भाषा में बदल देती है । इस व्यवस्था में हर एक दस्ताना 18 सेंसर तथा एक लोकेलाइज़र से लैस है , जो हाथ के इशारों को विशेष इलेक्ट्रोनिक सिगनल में बदल सकते हैं और फिर कंप्यूटर इन सिगनलों के साथ निपटता है । अभी तक इस व्यवस्था के जरिये कुल पांच हजार इशारों की पहचान की जा सकती है । इस व्यवस्था के जरिये गूंगी-बहरी लड़की मायैन बिना बाधा के संवाददाता के साथ बातचीत कर सकती है । पर मायैन ने संवाददाता की बात कैसे सुनी ? डॉक्टर चेन ने कहा कि उन की अनुवाद व्यवस्था दोहरा काम करती है,यह आम लोगों की अर्थपूर्ण आम ध्वनि भाषा की आवाज़ों को गूंगे-बहरों की संकेत-भाषा में भी बदल सकती है।इसी से गूंगे-बहरे आम लोगों की बातचीत सुन (वास्तव में देख) सकते हैं ।
हमारी व्यवस्था के जरिये आम लोगों की अर्थपूर्ण आम ध्वनि भाषा को डिजिटल सिगनल में बदला जा सकता है । फिर कंप्यूटर की स्क्रीन पर मौजूद एक त्रि-आयामी कार्टून आदमी संकेत-भाषा से गूंगे-बहरों को अनुवादित बात बता सकता है । इसी तरह आम लोगों और गूंगे-बहरों के बीच बातचीत सामान्य तौर पर चल सकती है । जांच निरीक्षण के बाद यह पता चला है कि गूंगा-बहरे स्क्रीन पर नजर आने वाली संकेत भाषा का 95 प्रतिशत भाग समझ सकते हैं । इससे गूंगे-बहरे, आम लोगों के साथ अधिकांश जीवनोपयोगी बातें कर सकते हैं । बैंक , अस्पताल आदि सार्वजनिक स्थलों में ऐसी व्यवस्था का महत्वपूर्ण उपयोग हो सकेगा ।
पेइचिंग नम्बर तीन गूंगे-बहरे स्कूल की अध्यापिका मिस ली ने इस अनुवाद मशीन की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि वे क्लासरूम में आम तौर पर संकेत भाषा के जरिये छात्रों के साथ बातचीत करती हैं । संकेत-भाषा सीखने में उन्हें भी बड़ी दिक्कत
आई थी। पर अनुवाद मशीन की मदद से आम लोगों को संकेत-भाषा सीखने में उतनी कठिनाइयां नहीं रहेंगी । उन्हों ने यह भी कहा कि इस अनुवाद मशीन के दस्ताने पर लगे बहुत से यंत्रों के कारण इस में गड़बड़ हो सकती है, और इस जटिल मशीन को प्रयोग करने और दूसरे स्थान पर ले जाने की भी काफी सुविधा नहीं है ।
सुश्री तुंगवेई ने भी गूंगे-बहरों की अनुवाद मशीन के अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित कर रखा है । उन की एक गूंगी-बहरी बेटी है जिसे ऐसी मशीन से सीखने में बड़ी मदद मिल सकती है । पर उन्हें इस नयी मशीन के उच्च दामों के कारण झिझक भी है।
गूंगे-बहरों की अनुवाद व्यवस्था में दर्जनों हजार य्वान खर्च होते हैं , इस कारण हम इस का लाभ उठाने में असमर्थ रहते हैं ।
पर चीनी विज्ञान अकादमी के गणित प्रतिष्ठान के तकनीशियन इस सवाल के समाधान के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं । प्रतिष्ठान में कार्यरत एक तकनीशियन ने बताया कि दाम उच्च होने के अलावा डिजिटल दस्ताना मजबूत भी नहीं है । इसलिये अब वे एक विशेष ऐसे लैंस का अनुसंधान कर रहे हैं , जो दस्ताने का स्थान ले लेगा । लेकिन मौजूदा तकनीक के स्तर के आधार पर लैंस की क्षमता उस दस्ताने की तुलना में अभी कमजोर है । इसलिए वे लैंस की क्षमता को उन्नत करने का प्रयास कर रहे हैं ।
संक्षेप में कहें कि गूंगे-बहरों की अनुवाद व्यवस्था का आविष्कार करने से गूंगे-बहरों को आम सामाजिक-जीवन में प्रवेश की सुविधा दी जा सकेगी । 16 वर्षीया लड़की मिस थिएन को भी सुनने-बोलने में बाधा है । अनुवाद व्यवस्था पाने के बाद उसे बहुत खुशी हुई है । उस ने कहा , मेरा नाम है थिएन मंग । मैं इस बात से आज बहुत उत्साहित हूं कि आज की तकनीकी प्रगति से आप मेरी संकेत-भाषा भी समझ सकते हैं और आम लोग संकेत-भाषा सीखे बिना भी हमारे साथ बातचीत कर सकते हैं ।
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