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(GMT+08:00) 2006-06-02 13:38:36    
चार भेड़िए

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अब तो बाकी चारों भेड़िए चक्कर में पड़ गए। वे समझ गए कि जरूर दाल में काला है और एक एक करके ऊपर जाकर जाना बुद्धिमानी की बात नहीं है।

इस बार चौथा भेड़िया सब से आगे रहा और उस के पीछे क्रम से पांचवें छठे और सातवें भेडिए ने अपने से आगे वाले भेड़िए की पूंछ पकड़कर सीढियों पर चढना शुरू किया।

जब चौथा भेड़िया सब से ऊपर की सीढ़ी पर पहुंचा, तो उस ने देखा कि चारों लड़कियां खून से सने डंडे अपने हाथों में लिए उन का इंतजार कर रही हैं।

इस के पहले कि चौथा भेड़िया कुछ कहने के लिए अपना मुंह खोल पाता, चारों डंडे एक साथ उस के सिर पर पड़े।

उस का सिर फट गया और वह तथा उस के साथ बाकी तीनों भेड़िए सीढियों से लुढ़कते पुढ़कते नीचे जलती हुई आग में आ गिरे और बुरी तरह झुलस गए।

चौथे भेड़िए का काम तो ऊपर ही तमाम हो चुका था, बाकी तीन भेड़िए दर्द से चीखते चिल्लाते बाहर भाग गए।

तभी चारों लड़कियां झट से नीचे उतर आईं और उन्होंने अन्दर से दरवाजा बन्द कर लिया।

तीनों भेड़िए समझ गए कि लड़कियों ने उन को बेवकूफ बना दिया और उनके चार बड़े भाई जान से मार दिए गए।

यह सोचते सोचते उन का गुस्सा बढ़ता गया और वे नौजवानों का नकली रूप छोड़ भेड़ियों के अपने असली रूप में आ गए तथा अपने भाइयों की हत्या का बदला लेने के लिए जबरदस्ती दरवाजा खोलने की कोशिश करने लगे।

वे चीखे गुर्राए, दरवाजे को अपने शरीर से धक्का देते रहे, उस पर अपने पंजे मारते रहे, मगर दरवाजा था की खुलकर ही नहीं दिया।

उन की तमाम कोशिशें नाकाम रहीं और वह ज्यों का त्यों बन्द रहा।