प्रिय दोस्तो , पहले हम आप के साथ तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में के लिन ची क्षेत्र में रहने वाली कुंगपू तिब्बती तिब्बती जाति बहुलक्षेत्र और इस क्षेत्र में आबाद की विशेष संस्कृति , परम्परा , रहन-सहन व पहनावे देखने भी गये हैं ।
लीन ची क्षेत्र में स्थित कुंगपुच्यांगता कांऊटी का पासुंगचो प्रकृति संरक्षण क्षेत्र तिब्बत के छोटे स्वीटजरलैंड के नाम से विख्यात है । इस क्षेत्र की पठारीय झील पासुंगचो तो और भी अधिक चर्चित है । इतना ही नहीं , लीनची प्रिफेक्चर की राजधानी पाई कस्बे के दक्षिण पूर्व में स्थित पाचे गांव का प्राचीन देवदार प्रकृति संरक्षण क्षेत्र भी विख्यात है । इस प्रकृति संरक्षण क्षेत्र में बड़ी तादाद में उम्दा किस्म के देवदार पेड़ उगे हुए हैं । इन पेड़ों में सब से ऊंचे पेड़ की ऊंचाई 50 मीटर है और उस का व्यास 6 मीटर से भी अधिक है । वनस्पति वैज्ञानिकों के अनुसार यह पेड़ कोई दो-अढ़ाई हजार वर्ष पुराना है , और स्थानीय लोग इस पेड़ को देवता के रूप में मानते हैं । इस विशाल जंगल के बारे में बहुत सी रोचक किम्वदंतियां भी हैं । स्थानीय कुमारी पाइमाखांगचो ने कहा कि कहा जाता है कि प्राचीन-काल में पंचतारा नामक राजकुमारी यहां के अद्भुत सौंदर्य पर इतनी मोहित हो गयी थी कि वह कंघी करने भी यहां आती थी । कंघी करते समय उस के जो बाल जमीन पर गिरे , वे एक ही रात में देवदार पेड़ों के जंगल के रुप में बदल गये । कुछ स्थानीय लोगों का मानना है कि इस जंगल में वह भीमकाय पेड़ तिब्बत के आदिम धर्म के संस्थापक शिनरौंगमिपो का प्राण पेड़ है , इसलिये यह जंगल हजारों सालों से हरा-भरा नजर आता है । स्थानीय तिब्बती लोग इस स्थान को पवित्र स्थल मानते हैं और पूजा करने के लिये यहां आते हैं ।
लिनची कांऊटी के पांगना गांव में एक एक हजार छह सौ वर्ष पुराना शहतूत का पेड भी है।इस सात मीटर लम्बे पेड़ का व्यास 3.3 मीटर है । पहले यहां नर व मादा दो शहतूत के पेड़ उगे हुए थे । इन दोनों पेड़ों के बारे में मर्मस्पर्शी कहानियां प्रचलित हैं । कहा जाता है कि पुराने जमाने में पांगना गांव में एक परिवार में एक बहुत होशियार व मेहनती लड़की थी । वह ऊनी धागा बनाने में निपुण थी,इसलिये स्थानीय लोग उसे धागा कुमारी कहकर पुकारते थे । पर दुर्भाग्य की बात यह थी कि उस के मां-बाप जल्दी गुजर गये , अतः वह मजबूर होकर अपने भाई व भाभी के साथ रहती थी । भाई व भाभी उस के साथ बुरा व्यवहार करते थे और उसकी किसी आदमी के साथ शादी कराना चाहते थे । लेकिन यह लड़की अपने मनचाहे लड़के के साथ शादी करना चाहती थी।उक्त शादी से बचने के लिये उसने जल्दबाजी में बाहर भागने की कोशिश की , तो उस के पैरों पर लिपटे धागे बाहर लटक कर घिसटने लगे । फिर उस के भाई भाभी इन धागों को पकड़ कर उसे रोकने ही वाले थे कि यह लड़की एक मंदिर में आसन पर जा कर बैठ गयी । यह देखकर उस के भाई भाभी ने पेड़ों पर से दो मुरझाईं हुईं शाखाएं तोड़ी और उसे मारने की कोशिश करने लगे । अचानक ये दोनों शाखाएं उन के हाथों से छूट कर जमीन पर आ गिरीं और दो हरे-भरे शहतूत के पेड़ों में बदल गयीं ।
इन दोनों शहतूत के पेड़ों के बारे में एक और प्यारी कहानी हैः तिब्बती राजा सुंगचांगकानपू की थांग राजवंश की राजकुमारी वनछंग के साथ शादी हुई।शादी के बाद घर लौटते समय वे इस पांगना गांव में आ पहुंचे । अपने प्रेम की याद में इस गांव में उन्होंने नर व मादा दो शहतूत के पेड़ लगाय़े । पिछले हजारों वर्षों में हवा-पानी की मार से नर पेड़ लुप्त हो गया है , जबकि मादा शहतूत का पेड़ आज तक भी हरा-भरा है । वह इस तरह से खड़ा है मानों लोगों को अतीत काल की अमर प्रेम कहानी सुना रहा हो ।
लिनची क्षेत्र की यात्रा के दौरान लुलांगलिनहाई पर्यटन स्थल जाना भी जरूरी है । तिब्बती भाषा में लुलांग का अर्थ है ड्रेगन राजा की घाटी और घर की याद न करने वाला स्थल भी । यह क्षेत्र समुद्र की सतह से तीन हजार सात सौ मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और वह सछ्वान तिब्बत राजमार्ग के पास है । इसे पठारीय क्षेत्र की संकीर्ण घास पट्टी का नमूना माना जाता है । क्योंकि उस की लम्बाई 15 किलोमीटर है जबकि चौड़ाई सिर्फ एक किलोमीटर है । पतली पट्टी के दोनों किनारों पर घने आदिम जंगल हैं । हरे-भरे जंगलों के उस पार खड़े स्थानीय विशेषता वाले रंगीन तिब्बती मकान देखकर सचमुच ही मन खुश हो जाता है ।
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