
लुंगमन यानी ड्रेगन-गेट के पूर्व व पश्चिम दोनों ओर स्थित एक किलोमीटर लम्बी खड़ी चट्टानों पर दो हजार तीन सौ से अधिक गुफाएं खोदी गयी हैं और इन गुफाओं में एक लाख से अधिक जीती जागती मूर्तियां तराशी गयी हैं । तो इस के पीछे क्या कहानी छिपी हुई है ।
ईस्वी पांचवीं शताब्दी के अंत में चीन के उत्तर वेई राजवंश के राजा बौद्ध धर्म के अनुयायी थे । उस समय चीन में बौद्ध धर्म का बोलबाला था ,स्थानीय लोगों की मान्यता थी कि जितनी ज्यादा मूर्तियां बनायी जाएंगी , बुद्ध भगवान उतना अधिक एहसान करेंगे , इसलिये तत्कालीन पेइवेई राजवंश के राजा ने बड़े पैमाने पर गुफाएं खोदने और मूर्तियों को तराशने का निर्णय किया ।
प्रिय दोस्तो , जैसा कि आप जानते हैं कि क्योंकि जून 2003 वर्ष में भारत के पूर्व प्रधान मंत्री श्री वाजपेई जी चीन यात्रा के दौरान विशेष तौर पर लो यांग शहर की लुंगमन गुफाओं को देखने गये थे । इसलिये यो यांग शहर का नाम चीन में ही नहीं , भारत में भी बहुत चर्चित हो गया है । प्राचीन लो यांग शहर मध्य चीन के हनान प्रांत में स्थित है और वह चीनी राष्ट्र की सभ्यता के उद्गगम स्थलों में से एक भी है । विशेषकर इस शहर की डेढ़ हजार पुरानी लुंगमन गुफाएं और दुर्लभ रंगीन लोयांग पियोनिया इस प्रांचीन ऐतिहासिक शहर की दो धरोहर मानी जाती हैं ।
लुंगमन यानी ड्रेगन-गेट के पूर्व व पश्चिम दोनों ओर स्थित एक किलोमीटर लम्बी खड़ी चट्टानों पर दो हजार तीन सौ से अधिक गुफाएं खोदी गयी हैं और इन गुफाओं में एक लाख से अधिक जीती जागती मूर्तियां तराशी गयी हैं । तो आप को स्वभावतः यही सवाल पूछना होगा कि किस ने और क्यों यहां पर इतनी अधिक सुंदर मूर्तियां बनायी हैं । इस के पीछे क्या कहानी छिपी हुई है ।
ईस्वी पांचवीं शताब्दी के अंत में चीन के उत्तर वेई राजवंश के राजा बौद्ध धर्म के अनुयायी थे । उस समय चीन में बौद्ध धर्म का बोलबाला था ,स्थानीय लोगों की मान्यता थी कि जितनी ज्यादा मूर्तियां बनायी जाएंगी , बुद्ध भगवान उतना अधिक एहसान करेंगे , इसलिये तत्कालीन पेइवेई राजवंश के राजा ने बड़े पैमाने पर गुफाएं खोदने और मूर्तियों को तराशने का निर्णय किया । पर उस समय लुंगमन को ही इस काम के लिए इसलिए चुना गया क्योंकि यहां पर चट्टान का पत्थर गुफा खोदने और मूर्ति बनाने के लिए बहुत बढ़िया है ।
लुंगमन गुफाओं में पिन यांग गुफा समूह का इतिहास सब से पुराना है । उस का निर्माण पेइ वेई राजवंश काल से शुरू हुआ था और उस के निर्माण में कुल 24 साल लगे । इस गुफा समूह की कुल तीन गुफाओं में से एक का निर्माण पेइ वेई शासन काल में पूरा हुआ , जब कि अन्य दो गुफाएं राजविप्लव के कारण थांग राज्यवंश तक ही निर्मित हो पायीं । लुंगमन गुफाओं में पेइ वेई व थांग इन दोनों राज्यवंशों की तत्कालीन भिन्न वास्तु शैलियां देखी जा सकती हैं । लुंगमन गुफा में कार्यरत कर्मचारी सुश्री यांग श्याओ थिंग ने इस का परिचय देते हुए कहा कि पिन यांग गुफा समूह की तीन गुफाओं में दो भिन्न कालों की मूर्ति कलाएं देखने को मिलती हैं । बीच की गुफा तीनों गुफाओं में सब से प्रमुख है और उस का निर्माण पेइवेई शासन काल में हुआ था , उस में जो बुद्ध मूर्ति रखी हुई है , उस का चेहरा दुबला पतला और गर्दन लम्बी दिखाई देती है । इस से जाहिर है कि तत्कालीन पेइ वेई काल में पतलेपन को सौंदर्य की कसौटी माना जाता था । जबकि उक्त गुफा के दोनों तरफ खड़ी हुई गुफाओं में रखी हुई मूर्तियों की आकृतियां मोटी नजर आती हैं , जिस से थांग राजवंश में सौंदर्य की बदली हुई कसौटी का पता चलता है। उक्त दोनों राज्यवंशों की एक दूसरे से विपरित सौंदर्य धारणाएं लुंगमन गुफाओं में पूर्ण रूप से अभिव्यक्त हुईं हैं ।
पिन यांग गुफा के निकट और थांग राज्यवंश में निर्मित और एक वान फ़ो तुंग यानी हजारों मूर्तियों की गुफा खड़ी हुई हैं । क्योंकि इस गुफा की दक्षिण व उत्तरी दीवारों पर कुल 15 हजार छोटी बड़ी मूर्तियां उकेरी गयी हैं , इसलिये उस का नाम वान फो यानी हजारों मूर्तियों की गुफा रखा गया है। गुफा में सब से छोटी मूर्ति केवल चार सैंटीमीटर लम्बी है । पूरी दीवार पर अंकित चमकदार हजारों मूर्तियां पर्यटकों को रहस्यमय वातावरण का आभास देती हैं । ऐतिहासिक सामग्री से पता चला है कि इस विख्यात मूर्तियों की गुफा एक नारी निर्माता की सदारत में बनवायी गयी है ।
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