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आज के इस कार्यक्रम में मिरजापुर उत्तर-प्रदेश के प्रदीप कुमार प्रेमी और उन के जनहिन्द रेडियो श्रोता-संघ के सदस्यों तथा रोहतास बिहार के हाशिम आजाद के पत्र शामिल हैं।
मिरजापुर उत्तर-प्रदेश के प्रदीप कुमार प्रेमी और उन के जनहिन्द रेडियो श्रोता-संघ के सदस्यों ने अपने पत्र में हम से डॉक्टर द्वारकानाथ.कोटनिस और उन की पत्नी तथा बेटे के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने का अनुरोध किया है। (दूसरा भाग)
डॉक्टर कोटनिस और श्रीमती क्वो छिंग-लान का बेटा ईन-ह्वा प्राइमरी स्कूल से उच्च शिक्षालय तक श्रेष्ठ छात्र रहा।उसे 23 साल की उम्र में चीनी सेना के चाथे मेडिकल विश्वविद्यालय में दाखिला मिला।सुश्री क्वो छिंग-लान ने अपने बेटे के इस चयन का समर्थन किया।दरअसल वह शुरू से ही अपने बेटे से उस के पिता की तरह एक प्रतिभाशाली डॉक्टर बनने की आशा बांधे रही।मेडिकल विश्वविद्यालय में ईन-ह्वा उन छात्रों में से एक था,जो परीक्षाओं में अच्छे अंक प्राप्त करते थे।इसे लेकर सुश्री क्वो छिंग-लान ने अपने बेटे पर काफी गौरव महसूस किया और सोचा कि वह भविष्य में जरूर एक सुयोग्य व्यक्ति के रूप में चीन और भारत के बीच पुल का काम कर सकेगा।लेकिन अप्रत्याशित घटना को ज़िन्दगी में कौन रोक सकता है।जब ईन-ह्वा 25 साल का था,तो एक बार उसे गंभीर जुकाम हुआ।उस समय चीनी समाज राजनीतिक उथल-पुथल के दौर से ग़ुज़र रहा था। इस कारण ईन-ह्वा के इलाज में देरी हुई।हालांकि बाद में काफी कोशिशें की गयी,पर अंत में उसे मौत के मुंह से नहीं बचाया जा सका।
पति और बेटे के न रहने के बाद सुश्री क्वो छिंग-लान की आगे जीवित रहने की आशा की किरण बुझ सी गयी।उन्हों ने खुदकुशी तक की सोची।पर चीन सरकार ने समय रहते उन का बड़ा ख्याल रखा और बहुत से पुराने मित्रों ने उन्हें जीवन में बड़ी मदद की।इस से उन में आगे जीवन बिताने की हिम्मत फिर से उजागर हो गई।
सुश्री क्वो छिंग-लान 87 साल की हो गयी हैं।उन्हें सेवा-निवृत हुए 20 साल से अधिक समय हो चुका है। सेवा-निवृत होने के बाद वे सामाजिक कल्याणकारी कार्य में लिप्त रही हैं।सौभाग्य है कि भारत सरकार ने भी उन्हें नहीं भुलाया है और उन्हें अनेक बार भारत की यात्रा करने का आंमत्रण दिया है।भारत में सुश्री सोनिया गांधी और अन्य भारतीय उच्चाधिकारियों ने उन से भेंट की है।भारत के पूर्व राष्ट्रपति नारायण ने कई साल पहले चीन की यात्रा के दौरान विशेष रूप से उन के घर जाकर उन्हें देखा।जिस तरह भारत और भारतीय जनता अपनी इस चीनी बहू को नहीं भुलाती हैं,उसी तरह चीन और चीनी जनता अपने भारतीय दामाद डॉक्टर कोटनिस को हमेशा याद करती है।
रोहतास बिहार के हाशिम आजाद पूछते हैं कि चीन का नाम चीन क्यों पड़ा ?
चीन देश का उच्चारण चीनी भाषा में न चीन है और न ही चाइना,बल्कि चुंग-क्वो है,जो 19वीं सदी के मध्य में पूरे देश का नाम रखा गया।इस से पहले चीन के किसी राजवंश के नाम से ही इस का नाम जाना जाता रहा था।हो सकता है कि संस्कृत में चीन का नाम चीन के छिन राजवंश से संबद्ध रहा हो।भिन्न-भिन्न भाषाओं में चीन के नाम अलग-अलग हैं।जैसे संस्कृत या हिन्दी में चीन,अंग्रेजी में चाइना और रूसी में किताया।कुछ विद्वानों की मान्यता है कि चाइना शब्द संस्कृत के चीन शब्द का विकृत रूप है।उच्चारण के कारण चीन को चाइना कहा गया।अन्य कुछ विद्वानों का मत है कि चाइना का अंग्रेजी अर्थ चीनी मिट्टी के बर्तन ही है।चूंकि चीन अपने चीनी मिट्टी के बर्तनों के लिए प्रसिद्ध था,इसलिए उस का नाम भी चीन पड़ गया।हमारे पास जो संबंधित सामग्री है,उस के अनुसार यह है चाइना शब्द की उत्पति की कहानी।यो संबंधित विशेषज्ञ अभी भी चीन के नाम पर अध्ययन कर रहे हैं।
हाशिम आजाद का यह भी सवाल है कि वर्ष 2006 में हम श्रोताओं को सीआरआई द्वारा कौन सा नये कार्यक्रम का तोहफ़ा पेश किया जाएगा?
भैय्या,भारत और चीन दोनों देशों की सरकारों ने 2006 को भारत-चीन मैत्री वर्ष घोषित किया है और इसे मनाने के लिए बहुत से द्विपक्षीय कार्यक्रम बनाए गए हैं।इन कार्यक्रमों के तहत दोनों देशों के बीच अनेक क्षेत्रों में लोगों की आवाजाही हो रही है,बेशक उन का उद्देश्य सांस्कृतिक,आर्थिक व विज्ञान-तकनीकी आदान-प्रदान से भारत-चीन मैत्री को बढाना है।
एक मीडिया के रूप में हमारे रेडियो पर इन कार्यक्रमों का प्रचार-प्रसार करने और समय रहते संबंधित गतिविधियों के बारे में रिपोर्टें सुनाने की जिम्मेदारी है।इसलिए हम《भारत-चीन मैत्री वर्ष 》विशेष कार्यक्रम शुरू करने जा रहे हैं।इस कार्यक्रम में जो रिपोर्टें प्रसारित की जांएगी,उन सबकी विषयवस्तु भारत और चीन के बीच संबंधों से जुड़ी हुई होगी।
इस के अलावा चीन-भारत मैत्री-वर्ष सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता का आयोजन भी इस समय हो रहा है।हो सकता है कि आप ने इस के बारे में पांच रिपोर्टें सुनी होंगी।आशा है कि आप भी इस प्रतियोगिता में चढ-बढकर भाग लेंगे।चूकि भारत-चीन मैत्री हमारे दोनों देशों की ही बात है,जिस पर दोनों देशों की जनता को बड़ा ध्यान देना चाहिए।

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