उस के चरखे की घर्र-घर्र रात के उस सन्नाटे में ऐसी लग रही थी मानो कोई महिला दुख से ठंडी आहें भर रही हो।
चौथा बहिन ने सिसकियां भरते हुए अपनी पांचवीं, छठी और सब से छोटी यानी सातवीं बहिनों से फुसफुसाकर कहा
"ये भेड़िए हैं, जो नौजवानों का रूप धारण किए हैं। वे हमें खा जाएंगे।"
यह सुनकर तीनों छोटी बहिनें सिसकियां भरने लगीं, क्योंकि भेड़ियों के डर से वे बेचारी फूट फूटकर रो भी नहीं सकती थीं।
सब से छोटी बहिन ने छठी बहिन से कहा
" तुम मुझ से बड़ी हो, इसलिए मुझे बचाना तुम्हारा फर्ज है।"
छठी बहिन ने पांचवीं बहिन से कहा
" तुम मुझ से बड़ी हो, हमें बचाना तुम्हारी जिम्मेदारी है।"
पांचवीं बहिन के सामने कोई उपाय न था, इसलिए वह चौथी बहिन से बोली
"दीदी, तुम मुझ से भी बड़ी हो। इसलिए तुमको कोई ऐसा उपाय करना चाहिए कि हम सब की रक्षा हो सके।"
चौथी बहिन जानती थी कि वे चारों भागकर उन भेड़ियों के चंगुल से छूट नहीं सकेंगी, इसलिए चालाकी से बच निकलने की कोई तरकीब सोचनी चाहिए।
वह अपनी तीनों छोटी बहिनों से बोली
" हमारी तीनों बड़ी बहिनों को केवल अपनी जान बचाने का ख्याल रहा और वे हमें आगाह किए बिना यहां से भाग गई।
इसलिए हमें अपने आप को बचााने का स्वयं ही कोई उपाय करना होगा। हम चारों में से प्रत्येक को कोई न कोई तरकीब सोचनी चाहिए, वरना ये भडिए हमें खा जाएंगे।"
पांचवीं, छठी और सातवीं बहिनों ने अपनी चौथी बहिन की बात मान ली। उन चारों ने सूत कातना जारी रखा और साथ ही अपने बचाव का उपाय भी सोचती रहीं।
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