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चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की लिनची काऊंटी और गोंबू क्षेत्र की च्गांगता व मिलिन काऊंटियों में गोंबू नाम का तिब्ब्ती पोशाक बहुत लोकप्रिय है , वहां के तिब्बती चरवाहे , किसान , व्यापारी , छात्र और बच्चे बारहों माह काले या भूरे रंगों का एक विशेष ढंग का ऊनी वस्त्र पहनना पसंद करते हैं । बकरी के ऊन से बुनाया सिलाया इस विशेष किस्म के वस्त्र के बांह और कालर नहीं है , वस्त्र के ऊपरी भाग में एक बड़ा गोलाकार छेद खोला गया है , उसे पहनने के समय सिर गोलाकार छेद से बाहर निकाला जाता है और कमर में कमरबंद बांधा जाता है और दोनों हाथ बिना बांहों के वस्त्र की दोनों तरफ बाहर निकलते हैं ,जो काम करने में बहुत सुविधापूर्ण है । वस्त्र के सभी किनारों और निचले तल्लाओं पर सुनहरे रंग के धागे सीने जाते हैं , जो देखने में बहुत सुन्दर और सुविधाजनक लगता है , यही गोंबू क्षेत्र का विशेष जातीय पोशाक ---गोंबू वस्त्र है ।
हर सुबह लिनची प्रिफेक्चर के सरकारी मुखालय वाले शहर --बायी कस्बे की हांगकांग सड़क पर स्थित खुले बाजार में एक वस्त्र दुकान में से सिलाई मशीन की आवाज सुनाई देती है । 60 वर्षीय तिब्बती दर्जी श्री ओजू सुबह सुबह ही अपनी दुकान को खोल देते है और सिलाई मशीन पर गोंबू बनाने बैठ जाते हैं , इसी तरह उन का दिन का काम आरंभ हुआ ।
श्री ओजू ने हमें बताया कि गोंबू नाम का तिब्बती वस्त्र इस क्षेत्र में सात सौ सालों से प्रचलित होता आया है। इस के इतिहास की चर्चा करते हुए उन्हों ने एक दिलचस्प कहानी सुनायी । गोंबू क्षेत्र तिब्बत का एक कबीला इलाका था , कबीले का राजा जीबू था , जो बहुत बहादुर और बुद्धिमान था , उस के शासन में गोंबू कबीला बहुत विकसित और खुशहाल हो गया । इसलिए तिब्बती किसान और चरवाहे उसे बहुत प्यार करते थे । एक साल , बाहरी क्षेत्र से दुश्मनी सेना ने गोंबू कबीले पर आक्रमण किया , अपनी प्रजा के अमन चैन की रक्षा करने के लिए जीबू ने सेना को लेकर डट कर दुश्मन से लोहा ले लिया , दुखांत बात थी कि राजा जीबू भी युद्ध में शहीद हो गया । उस की मौत से कबीले के लोग बेहद शोक विह्वल हुए । राजा जीबू को दफनाने के लिए कबीले की कुछ वयोवृद्धाओं ने उन के कटे हुए सिर और पैर बांह चार अंगों के अनुरूप ऊनी कपड़े से बड़े लगन से एक विशेष ढंग का कफन बनाया । राजा जीबू की स्मृति में इस क्षेत्र के लोग भी इस प्रकार के वस्त्र पहनने लगे । और उसे गोंबू का नाम दिया गया । कालांतर में गोंबू पोशाक तिब्बत , लोपा और मनपा आदि जातियों में बहुत लोकप्रिय हो गया।
श्री ओजू 13 साल की उम्र में शिकाजे के एक दर्जी से सिलाई बुनाई का शिल्प सीखने लगा और बाद में गोंबू क्षेत्र के देहाती इलाके में किसानों और चरवाहों के लिए गोंबू वस्त्र बनाते रहे । आज से दस बारह साल पहले उन्हों ने गोंबू लोग बहुल क्षेत्र यानी लिनची प्रिफेक्चर में आ कर गोंबू वस्त्र दुकान खोली । अपने मंजे हुए सिलाई हुनर से वे विविध रंगढंग के वस्त्र बनाते है , जो बहुत लोकप्रिय हैं और जिस से उन का व्यवसाय भी लगातार बेहतर होता गया । अपने व्यवसाय का जिक्र करते हुए श्री ओजू ने कहाः
पहले मैं देहाती क्षेत्र में जो गोंबू वस्त्र बनाता था , वह सादा और सरल रंगढंग में थे , इस से भी कम आय मिलती थी । आर्थिक सुधार नीति लागू होने के बाद मैं लिनची प्रिफेक्चर में आया, यहां के लोगों में बढ़िया और सुन्दर गोंबू की तीव्र मांग होती है और बाजार की मांग भी बहुत ज्यादा है । इसलिए मैं ज्यादा मात्रा में ऊंची गुणवता वाले वस्त्र बना सकता हूं और ज्यादा पैसा भी कमा सकता हूं ।
दर्जी के रूप में आधी शताब्दी का काम करने से श्री ओजू को समृद्ध अनुभव संजोए हुए हैं । उन के गोंबू वस्त्र श्रेष्ठ गुणवता तथा सुन्दर रंगढंग के लिए बहुत नामी हुए हैं । दूर दूर से लोग उन से गोंबू बनवाने आते हैं और हर महीने में उन के पास वस्त्र के आर्डर बड़ी मात्रा में आते हैं । इसलिए वे अत्यन्त व्यस्त रहते हैं । उन के द्वारा बने बनाए साधारण गोंबू एक या दो सौ युन्न के हैं और त्यौहार में पहनने वाले बढ़िया गोंबू तीन चार हजार युन्न तक बिकते हैं । इस तरह श्री ओजू को गोंबू से ही सात आठ हजार युन्न की मासिक आय मिलती है ।
जीवन सुधर जाने के बाद श्री ओजू मात्र कमाई के लिए गोंबू बनाने पर संतुष्ट नहीं रहे , वे अपने हुनर को दूसरों को सिखाना चाहते हैं , ताकि तिब्बती जाति की यह विरल परिधान संस्कृति बरकरार रहे । श्री ओजू के अनुसार वर्तमान में बहुत से लोग गोंबू पसंद करते हैं , लेकिन आधुनिक रंगढंग के वस्त्र , सूट पैंट , जीन्स और टी शर्ट तिब्बती लोगों का उपभोक्ता स्तर उन्नत होने के साथ उन के जीवन में प्रवेश कर गए , इसलिए अब गोंबू पहनने वाले लोगों की संख्या घट गई है । लिनची तो गोंबू दर्जियों का आबाद इलाका है , यहां भी गोंबू दर्जियों की संख्या अब लगातार कम होती जा रही है। तिब्बती जाति की इस अनूठी वस्त्र संस्कृति के सामने गंभीर चुनौति पड़ी है ।
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