चमकदार भवन और प्राचीन मठ बड़े सामंजस्य के साथ पार्क में खड़े हुए हैं। पेइहाई पार्क की बड़ी झील के बीचोंबीच एक छुनह्वा टापू नजर आता है। इस टापू पर तिब्बती वास्तु शैली से युक्त सफेद स्तूप तिब्बती बौद्ध धर्म पर विश्वास करने वाले छिंग राजवंश के राजा ने बनवा दिया है। इस से बौद्ध धर्म के प्रति शाही परिवार के आदरभाव की अभिव्यक्ति हुई है, साथ ही इस ने छोटे टापू को और रहस्यमय बना दिया है। सफेद स्तूप पर चढ़ कर दक्षिण की ओर नजर दौड़ाये, तो आप को पता चलेगा कि बड़ी झील में छुनह्वा समेत कुल तीन छोडे बड़े टापू एक ही लाइन में खड़े हुए नजर आते हैं। यदि कोहरे वाले मौसम में आप किसी टापू पर खड़े हों, तो टापू पर निर्मित आलीशान भवन और सुंदर मंडप धुंधलके में खोये हुए दिखाई देते है। ऐसे वक्त पर आप को यह जान पड़ता है कि मानो किसी स्वर्ग में प्रवेष कर गये हों।
प्रिय दोस्तो, आज के इस के चीन का भ्रमण कार्यक्रम में हम आप को पेइचिंग ओलम्पियाड से जुडा एक परिचयात्मक लेख बताने जा रहे हैं। इस लेख में हम आप को पेइचिंग शहर के कई पुराने शाही उद्यानों का दौरा करवाने ले जा रहे हैं। पेइचिंग शहर के पुराने शाही उद्यान इस शहर के नेम कार्ड ही नहीं, चीन की प्राचीन वास्तु शैलियों से युक्त म्युजियम के रुप में जाने जाते हैं।
राजधानी के रूप में पेइचिंग शहर का इतिहास 800 वर्षों से अधिक पुराना है। इस में दसेक छोटे बड़े ध्यानाकर्षक शाही उद्यान हैं, जिन में प्रसिद्ध पेइहाई पार्क सब से चर्चित है। इतिहास व संस्कृति की अनुसंधानकर्ता सुश्री पाई चनचन ने पेइहाई पार्क का परिचय देते हुए कहा कि 13 वीं शताब्दी में य्वान राजवंश के संस्थापक राजा हू पी लेइ को यह रमणीक स्थल पसंद आया, फिर उन के आदेश के अनुसार यहां पर य्वान राज्य की राजधानी स्थापित की गयी। उन्हों ने कहा कि य्वान राजवंश से लेकर मिंग राजवंश और छिंग राजवंश तक के राजा इसी राजधानी से शासन किया करते थे। विभिन्न देशों की राजधानियों के इतिहास में ऐसा कम देखने को मिलता है कि एक ही असाधारण बाग-बगीचे के आधार पर राजधानी स्थापित करने का निर्णय किया गया हो।
वर्तमान पेइहाई पार्क का क्षेत्रफल करीब 70 हैक्टर है और उस का जलीय क्षेत्रफल आधे भाग से अधिक का है। चमकदार भवन और प्राचीन मठ बड़े सामंजस्य के साथ पार्क में खड़े हुए हैं। पेइहाई पार्क की बड़ी झील के बीचोंबीच एक छुनह्वा टापू नजर आता है। इस टापू पर तिब्बती वास्तु शैली से युक्त सफेद स्तूप तिब्बती बौद्ध धर्म पर विश्वास करने वाले छिंग राजवंश के राजा ने बनवा दिया है। इस से बौद्ध धर्म के प्रति शाही परिवार के आदरभाव की अभिव्यक्ति हुई है, साथ ही इस ने छोटे टापू को और रहस्यमय बना दिया है।
सफेद स्तूप पर चढ़ कर दक्षिण की ओर नजर दौड़ाये, तो आप को पता चलेगा कि बड़ी झील में छुनह्वा समेत कुल तीन छोडे बड़े टापू एक ही लाइन में खड़े हुए नजर आते हैं। यदि कोहरे वाले मौसम में आप किसी टापू पर खड़े हों, तो टापू पर निर्मित आलीशान भवन और सुंदर मंडप धुंधलके में खोये हुए दिखाई देते है। ऐसे वक्त पर आप को यह जान पड़ता है कि मानो किसी स्वर्ग में प्रवेष कर गये हों। झील में ये तीनों टापू तत्कालीन निर्माताओं ने चीनी शाही बाग बनाने की वास्तु शैली में विशेष तौर पर बनाये हैं।इसे एक झील में तीन पर्वत की संज्ञा दी गयी है।
तथाकथित एक झील में तीन पर्वत की वास्तु कला का मतलब है कि झील खोदने में जो ढेर सारी मिट्टी इकट्ठी हुई है, उस से जानबूझ कर झील के बीच तीन टापू निर्मित किये गए। चीनी प्राचीन पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र के जिस क्षेत्र में तीन पर्वत खड़े हुए हों, तो वहां देवताओं का निवास स्थल ही है। इतना ही नहीं, वहां चिरंजीवी दवा भी छिपी हुई है। इसलिये चीन के राजाओं ने दीर्घायु होने के लिये शाही बगीचे में विशेष तौर पर एक झील में तीन टापू बनवाना पसंद किया। पेइचिंग के इतिहास के अनुसंधान करने में संलग्न मशहूर विद्वान श्री ली च्येन फिंग ने इस की चर्चा में कहा कि यह वास्तु कला चीन के शाही बगीचे की अलग पहचान ही है। उन का कहना है कि एक झील में तीन पर्वत की वास्तु कला पुराने जमाने में चीनी शाही बगीचे की विशेष वास्तु शैली मानी जाती थी।किसी भी साधारण व्यक्ति को इसी वास्तु शैली के अनुसार एक झील में तीन टापू बनाने की मनाही थी। ऐसा करने वाले का वध कर दिया जायेगा, ऐसा विधान था। एक झील में तीन टापूओं ने भी पेइहाई पार्क की अलग पहचान बनाई है। यदि आप पेइहाई पार्क में एक झील में तीनों टापूओं को गौर से नहीं देखेंगे, तो आप इस प्रसिद्ध शाही बगीचे की आत्मा नहीं देख पायेंगे।
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