व्यापारियों पर लगाए गए टैक्सों का बोझ इतना ज्यादा था कि बहुत से व्यापारियों को दिवालिया हो जाने के कारण अपनी दुकानें बन्द कर देनी पड़ीं। जाहिर है, इन परिस्थितियों में पूंजीवाद का विकास नहीं हो सकता था। सारे देश में अब भी आत्मनिर्भर और प्राकृतिक अर्थव्यवस्था की ही प्रधानता थी।
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