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(GMT+08:00) 2006-04-11 18:30:45    
स्विस मूल की जेसूदेनजडं और उन के चीनी बच्चे

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तिब्बत की राजधानी ल्हासा के दक्षिण-पश्चिम में कोई 10 किलोमीटर दूर बसी द्वेईलुंगदेछींग काउंटी में स्विस मूल की महिला जेसूदेनजडं द्वारा स्थापित एक अनाथाश्रम है। आज के इस कार्यक्रम में हम आप को जेसूदेनजडं और उनके चीनी बच्चों की कहानी सुनायेंगे।

वर्ष 1990 में सुश्री जेसूदेनजडं अपने पति के साथ मातृभूमि से 20 वर्ष दूर रहने के बाद प्रथम बार ल्हासा लौटीं। पर तब उन्होंने नहीं सोचा था कि उन का जीवन चीनी अनाथों से घनिष्ठ रूप से जुड़ जायेगा। उन्होंने कहा,

सर्दियों के एक दिन, ल्हासा की एक सड़क पर, मैंने छोटी उम्र के दो बच्चों को देखा। वे भूखे थे और दया के लिए तरस रहे थे। मैंने उन्हें अपने साथ ला कर एक रेस्तरां में खाना खिलाना चाहा। लेकिन, रेस्तरां के मैनेजर ने उन्हें रेस्तरां में प्रवेश करने से रोक दिया। मैनेजर ने चिंता व्यक्त की कि यदि लोगों ने इन बच्चों को रेस्तरां में खाना खाते देखा, तो वे रेस्तरां में खाना नहीं खायेंगे। इस पर मुझे बहुत क्रोध आया और मैं उस से झगड़ पड़ी। यह मेरे जीवन की प्रथम घटना थी जब मैं ने दूसरों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। 

सुश्री जेसूदेनजडं ने कहा कि बच्चपन में ही अनाथ हो गई थीं। उन्हें अब तक पता नहीं है कि उन का जन्म कब हुआ। जब वे बहुत छोटी थीं, तो जर्मनी के एक अनाथाश्रम में पली-बढ़ीं। इसलिए, अनाथों के प्रति उनके मन में विशेष भावना है। स्विटज़रलैंड लौटने के बाद, उन्होंने अपने परिजनों एवं मित्रों के साथ सलाह-मश्विरा करने के बाद तिब्बत में एक अनाथाश्रम खोलने का निर्णय लिया और माता-पिता खोने वाले या गरीबी के कारण स्कूल छोड़ने वाले बच्चों का पालन-पोषण करने की सोची।

वर्ष 1993 के अक्तूबर माह में सुश्री जेसूदेनजडं ने तिब्बत के संबंधित विभागों की मदद से द्वेई लोंग दे छींग काउंटी में प्रथम अनाथाश्रम की स्थापना की। अब उनके दो अनाथाश्रमों में 105 बच्चे रहते हैं। इन अनाथश्रमों ने उत्तरी तिब्बत के 26 चरवाहों के बच्चों को फिर से स्कूल जाने में मदद दी है।

अनाथाश्रम का सामान्य संचालन सुनिश्चित करने के लिए सुश्री जेसूदेनजडं तथा उन के पति ने स्विटज़रलैंड में एक कोष की स्थापना की। इतना ही नहीं, उन्होंने जर्मनी व आस्ट्रिया में भी इसकी शाखाएं खोलीं। कोष के सभी सदस्य उन को समर्थन देने वाले मित्र हैं। वर्ष का अधिकांश सुश्री जेसूदेनजडं तथा उन के पति चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश व व्यन नान के अनाथाश्रमों में बच्चों की देखभाल में गुजारते हैं। सर्दियों में वे स्विटज़रलैंड वापस लौटते हैं और कोष के सदस्यों को कोष की पूंजी के इस्तेमाल की स्थिति का परिचय देते हैं।

सुश्री जेसूदेनजडं के अनाथाश्रम में हम ने विभिन्न जातियों के 52 बच्चों को एक दो मंजिला इमारत में रहते देखा। अनाथाश्रम में पार्क, बास्केटबॉल मैदान और टेबल टेनिस की जगह है। सभी बच्चे सुश्री जेसूदेनजडं को आंटी कह कर बुलाते हैं। 20 वर्षीय गेसांगचास्वो अनाथाश्रम में पूरे 12 वर्ष रह चुकी है। वह अनाथाश्रम की सब से बड़ी बच्ची है। उस ने कहा,

आंटी जेसूदेनजडं महान हैं। उनके कार्यों से मैं बहुत प्रभावित हूं। मैं उन के लिए कुछ करना चाहती हूं। खेद की बात है कि अभी मैं खुद मिडिल स्कूल में हूं। पर मैं फुरसत के समय अनाथाश्रम के बच्चों को शिक्षा देने की कोशिश करती हूं।

गेसांगचास्वो ने कहा कि आंटी जेसूदेनजडं अब वृद्ध हो गयी हैं। अनाथाश्रम में सब से छोटे बच्चे की उम्र केवल चार वर्ष है, और वे सभी बच्चों के भविष्य की चिंता करती हैं। उस ने कहा कि चाहे जो हो, वह अनाथाश्रम में रहेगी और वहां रहने वाले अपने भाई-बहनों की देखभाल करेगी।

16 वर्षीय च्वोमालामू आठ वर्ष पहले पिता के देहांत और मां के खराब स्वास्थ्य की वजह से सुश्री जेसूदेनजडं के अनाथाश्रम में आयी। अब वह ल्हासा के नंबर छै मिडिल स्कूल से उत्तीर्ण हो चुकी है। इस तिब्बती लड़की ने कहा कि भविष्य में वह डॉक्टर बनना चाहती है क्योंकि डॉक्टर रोगियों का इलाज कर सकते हैं। वह भी आंटी जेसूदेनजडं की ही तरह दूसरों की मदद करना चाहती है। उस के अनुसार,

आंटी जेसूदेनजडं ने हमें बड़ा किया। यहां मुझे बहुत अच्छा लगता है। जब आंटी फुरसत में होतीं, तो हमें लेकर विभिन्न स्थलों का दौरा करती थीं। हम शाननान, लीनजी और रीखाज आदि स्थलों की यात्रा कर चुके हैं। ये सब मैं नहीं भूल सकती हूं। हमें अच्छी तरह पढ़ना चाहिए और आंटी के लिए कुछ करना चाहिए।

सुश्री जेसूदेनजडं ने अनेक लोगों को प्रभावित किया है। 33 वर्षीय छांगच्वेई द्वेईलुंगदेछींग काउंटी के अनाथाश्रम की 12 वर्ष सेवा कर चुकी हैं। बच्चों की देखभाल करने के लिए उन्होंने अब तक विवाह भी नहीं किया। सुश्री छांगच्वेई ने द्वेईलुंगदेछींग काउंटी तथा अपनी चर्चा में कहा,

आंटी जेसूदेनजडं बच्चों को बहुत पसंद करती हैं। वे सभी कर्मचारियों व बच्चों से समान व्यवहार करती हैं। मुझे आंटी जेसूदेनजडं बहुत पसंद हैं। मैं हमेशा के लिए यहां रहना चाहती हूं।

सुश्री जेसूदेनजडं ने कहा कि अनाथाश्रम खोलने के पिछले दस वर्षों से ज्यादा के समय में उन्होंने खुशी व दुख का मिलाजुला वक्त बिताया। जब उन्होंने देखा कि अनाथाश्रम के बच्चे चीन के भीतरी इलाके के तिब्बती मिडिल स्कूलों व अकादमियों से स्नातक होने के बाद उनकी मदद करने के लिए पुनः अनाथाश्रम वापस लौट आये, तो उन्होंने खुद पर बहुत गर्व महसूस किया। सुश्री जेसूदेनजडं ने कहा,

जब मैं अनाथाश्रम में बच्चों को खुश देखती हूं, तो मुझे भी बहुत खुशी होती है। मुझे लगता है कि मैं विश्व की सब से समृद्ध महिला हूं। विभिन्न देशों के अनेक मित्रों ने मुझे मदद दी है। इन में चीन के तिब्बती जाति और हान जाति के लोगों के साथ अमरीकी और यूरोपीय लोग भी शामिल हैं। जब मैं जर्मनी व स्विटजरलैंड में पढ़ती थी, तब मैं ने कभी नहीं सोचा था कि मेरे चीनी मित्र भी होंगे। और आज मेरे बहुत से मित्र चीनी हैं।

हम उम्मीद करते हैं कि सुश्री जेसूदेनजडं तथा उन के चीनी बच्चे स्वस्थ व खुश रहेंगे।