एक दिन के दोपहर को सफेद परों वाला राजहंस गांव से बाहर निकल कर खेलने गया । वह अकेले ही खेलते खेलते जब बोर हो गया , तो किसी से साथ खेलने के लिए साथी को ढूंढने चला गया ।
वह एक विशाल पेड़ के नीचे पहुंचा , आंखों उठा कर ऊपर देखा , तो कोई पेड़ की शाखाओं में दुबका -छिपा नजर आया है ।
क्या वह छोटा बिल्ली तो नहीं . खुशी से राजहंस ने ऊंची आवाज में पुकारा , छोटा बिल्ली , ओ , बिल्ली भाई , तुम यहां पेड़ पर छिपे क्या कर रहे हो . पेड़ पर बैठे उस पशु ने राजहंस की आवाज सुन कर कहा , आप से गलती हुई है , मैं बिल्ली नहीं हूं ।
अरे , मुझे धोखे में डालने की कोशिश कर रहे हो , बिल्ली नहीं , तो तुम कौन हो . देखो , पेड़ पर से नीचे आओ , मेरे साथ मिल कर खेलने आओ ।
इस वक्त मैं खेलना नहीं चाहता , मुझे नींद आई है । कहते ही वह कथित बिल्ली ने अपनी आंखें मूंद कर दी ।
राजहंस ने खीज कर कहाः तुम बड़ा आलसी हो । दिन में भी नींद आती है , तुम मेरा मित्र नहीं बन सकोगे । राजहंस उस बिल्ली को वही छोड़ कर आगे चला गया । वह गैहं के खेत के किनारे किनारे सड़क पर आगे बढ़ रहा था , अनायास उस की नजर एक चूहे पर जा लगी , जो खेत में गैहं की बालियों की चोरी कर रहा है ।
राजहंस को क्रोध हुआ , उस ने ललकार कियाः बदमाश तुम हो , मैं तुझे धर दबोच कर पकड़ूंगा । कहते ही वह बड़ा डग भरते हुए चूहे की ओर झपटा , चूहा भय से ठिठक गया , फिर उल्टे पांव भागने लगा । कुछ कदम दौड़ने के बाद उस ने मुड़ कर देखा , वाह , यह तो राजहंस है , तत्काल उसे राजहंस से छेड़ने का दुष्ट विचार आया, तुम धीमी दौड़ते हो , मैं तो बहुत तेज दौड़ता हूं । तुम मुझे पकड़ नहीं सकोगे ।
देखो , मैं गैहं की बालियों के भोजन से पेट भर कर छोड़ूंगा , मैं अभी खाता हूं , अभी खाता हूं । गुस्से के मारे राजहंस का बुरा हाल हो गया , वह पूरी ताक्त लगा कर चूहे का पीछा करने लगा । लेकिन चूहा कूदता उछलता क्षणों में ही अदृश्य हो गया । अब क्या किया जाए , इस प्रकार का बदमाश चूहा नहीं पकड़ा गया , तो वह रोज गैहं की बालियों की चोरी करने आएगा । राजहंस ने अक्ल पर जोर लगा कर सोचने की कोशिश की , एकाएक उसे पेड़ पर छिपे उस बिल्ली की याद आई ।
वह फटाफट वापस पेड़ के पास लौटा और गला फाड़ फाड़ कर पुकाराः है , बिल्ली भाई , बिल्ली भाई , उधर खेत में एक चूहा है , जो गैहं की चोरी कर रहा है । तुम उसे पकड़ने जल्दी जाओ ।
भगवान जाने , उस बिल्ली ने राजहंस की आवाज सुनने पर आंखें जरा तो खोल दीं , पर बोला यहः दिन में मेरा काम नींद से सोना है , रात में मेरा काम करना का समय है ।
राजहंस को उस की बात से चिंता भी हुई , गुस्सा भी हुआ । उस ने कहाः बड़ा आलसी बिल्ली हो , काही कि दिन में सोता है । ऊंह , तुम एसा ही आलसी हो कि रात में भी ठीक ढ़ंग से काम नहीं कर सकता ।राजहंस का आक्रोश बढ़ता गया । उस का मन खेलने से भी उचट गया । अकेले ही आहिस्ते आहिस्ते घर लौटा ।
रात को भोजन से निपट कर राजहंस फिर गांव से बाहर निकल आया । वह देखना चाहता था कि पेड़ पर छिपे वह बिल्ली रात में अखिर क्या करता है । जब वह उस पेड़ के पास पहुंचा , तो देखा कि वह छोटा बिल्ली अभी पेड़ पर बैठा है । राजहंस ने कहाः छोटा बिल्ली , क्या अभी तुम नींद से नहीं जागे हो , सचमुच बेशर्म हो तुम . दिन रात सोते हो ।
उस बिल्ली ने कहाः तुम बार बार मुझे बिल्ली कहते हो , जरा गौर से देखो , क्या मैं बिल्ली हूं ।
इसी बात के साथ उस का सिर पेड़ के पत्तों से बाहर झांका , चांदनी रोशनी में राजहंस ने उस की ओर ध्यान से निहारा , अरे , इस बिल्ली के मुखड़े पर हुक का एक लम्बा घूमादार मुंह है , दिन में राजहंस का इस पर ध्यान नहीं लगा , इसलिए वह उसे बिल्ली समझता था । इस समय उस ने उस का हुक सा मुंह देखा , तो बड़ा आश्चर्य हुआः तुम तो बिल्ली नहीं हो .
हां , मैं बिल्ली नहीं हूं , तुम जरा ध्यान से देखो कि मैं कौन हूं । कहते हुए वह फड़ फड़ कर पेड़ पर से उड़ निकला । सफेज राजहंस ने चौंक कर पूछा कि आखिर में तुम कौन हो । मेरा नाम ऊल्लू है ।
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