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(GMT+08:00) 2006-04-07 09:24:34    
विकलांग अंग्रेजी शिक्षक श्री ली योशङ का जीवन

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दोस्तो , 42 वर्षीय ली योशङ सिन्चांग की राजधानी उरूमुची में रहने वाले निवासी हैं , दो साल की उम्र में उन्हें पोलिया रोग के कारण घातक लकवा पड़ गया और जीवन भर चेयरकुर्सी का सहारा लेना पड़ा । लेकिन उन्हों ने असाधारण कठिनाइयों को दूर कर अंग्रेजी भाषा पर अधिकार कर लिया और एक ट्युशन शिक्षक के रूप में करीब दो हजार छात्रों को प्रशिक्षित किया ।

श्री ली यो शङ ऊरूमुची की एक बस्ती में रहते हैं , उन का घर आम चीनियों के घरों की भांति सादा और सुथरा है , घर की बैठक में सोफा , टीवी सेट और फर्नीचर सुसज्जित है और हर तरफ साफ सुथरा नजर आता है । उन के साथ बातचीत के समय वे चेयरकुर्सी पर बैठे थे । वे खुली मिजाजी हैं और अपने विकलांग पर दुखी नहीं दिखते है । जीवन की दुर्भरता पर विजय पा कर अनुभवी अंग्रेजी प्राइवेट टीचर बनने की चर्चा में उन्हों ने काफी खुशी दिखायी । उन्हों ने कहाः

दो साल की उम्र में तेज बुखार के कारण मुझे पोलिया का रोग पड़ा , अगर शुरू में ही समयानुकूल इलाज मिलता , तो मेरे चंगा होने से छूट नहीं हो सकता था , कम से कम चेयरकुर्सी की बौसाखी लेने की जरूरत नहीं पड़ती ।

लेकिन उस समय ली का परिवार बहुत गरीब था , मां बाप की पांच संतानें थीं , ली की बीमारी के उपचार में विलंब हुआ । फिर उन की 12 साल की उम्र में उन का पिता भी बीमारी के कारण चल बसे ।

परिवार के बड़े पुत्र के नाते श्री ली योशङ के कंधे पर उचित आयु से पहले ही परिवार का जीविका चलाने का भार पड़ा । विकलांग होने पर भी बाहर नौकरी करने वाली मां की जगह घर का कामकाज करने का बोझ उठाया । वे सुबह रात और सप्ताहांत के अवकाश समय में चेयरकुर्सी पर मोजा जैसी छोटी मोटी रोजमर्रे की चीजें तथा सब्जी व फल बेचते रहे और परिवार के खर्च तथा अपने चार छोटे बहन भाइयों की पढ़ाई फीस चुकाने की कोशिश करते रहे । श्री ली योशङ अपनी पढ़ाई पर भी बड़ा ध्यान देते थे , स्कूल में उन के अंक हमेशा श्रेष्ठ रहे । हाई स्कूल के बाद उन्हों ने श्रेष्ठ अंकों के साथ सिन्चांग विश्वविद्यालय के विदेशी भाषा विभाग में दाखिला पाया ।

विकलांग होने के कारण श्री ली यो शङ का कालेज शिक्षा जीवन भी आसान नहीं था । इस की चर्चा में उन्हों ने कहाः

मेरे लिए सब से कठिन बात जाड़ों की सर्दी होती है , मेरे पैरों में गर्मी नहीं है , इसलिए जाड़े का मौसम आते ही मुझे गर्म ऊनी बूट पहनना पड़ता है । कड़ाके की सर्दी में बूट भी बहुत ठंडा पड़ता है , समय ज्यादा होने पर मेरे पैर और पांव सर्दी से खराब हो जाते हैं , इसी प्रकार के कठिन जीवन में भी मेरा कोई भी क्लास नहीं छूटा ।

श्री ली योशङ अध्ययनशील हैं और तरह तरह की कठिनाइयों को दूर कर अंग्रेजी भाषा का लगन से अध्ययन करते हैं । आर्थिक कठिनाइयों की वजह से वे अध्ययन की सामग्री खरीदने में असमर्थ थे , तो वे दूसरे छात्रों से अंग्रेजी कैसेट व पुस्तकें उधार कर पढ़ते थे । वे हर मौके का लाभ उठा कर अंग्रेजी भाषी लोगों के साथ अंग्रेजी बोलने का अभ्यास करते थे । संयोग से वे चीन में पढ़ाने आए न्यूजलैंड के एक दंपत्ति से मिले । ली के मेहनत व लगन से प्रभावित हो कर उन्हों ने श्री ली को आक्सफोर्ड इंगरिश डिक्शनरी और दर्जनों अंग्रेजी पुस्तकें भेंट कर दीं ।

इन अंग्रेजी पुस्तकों के अध्ययन के परिणामस्वरूप श्री ली यो शङ का भाषा स्तर काफी उन्नत हो गया । उस समय से उन्हों ने अंग्रेजी का ट्युशन अध्यापक बनने की ठान ली । वर्ष 1984 में उन्हों ने अपना प्रथम छात्र ले लिया था ।

इस के बाद श्री ली योशङ ने फिर कई कुछ छात्र स्वीकार कर लिए । उन्हें पढ़ाने के दौरान श्री ली को पता चला कि अंग्रेगी सीखने में छात्र आम तौर पर शब्द व पाठ रटने के आदि हैं , वे आपस में अंग्रेजी में बातचीत करना पसंद नहीं करते हैं । इस पढ़ने के तरीके से अधिकांश छात्र ज्यादा शब्द याद नहीं कर सकते । ऐसे तरीके को बदलने के लिए श्री ली योशङ ने छात्रों को जीवन के दौरान अंग्रेजी का प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया । इस का अच्छा नदीजा निकला कि छात्रों को अंग्रेजी सीखने में काफी बड़ी दिलचस्पी आयी और आम जीवन में अंग्रेजी का प्रयोग करने से छात्रों का अंग्रेजी स्तर भी जल्द ही उन्नत हो गया ।

श्री ली योशङ धारावाहिक अंग्रेजी बोल सकते हैं और अंग्रेजी पढाने का उन का तरीका भी खास विशेष और अच्छा है , इसलिए छात्र और उन के अभिभावक उन की भूरि भूरि प्रशंसा करते हैं और अधिक से अधिक संख्या में छात्र श्री ली के प्राइवेट अंग्रेजी स्कूल में पढ़ने आए हैं । श्री ली का घर छोटा है , उस में ज्यादा छात्र समाए नहीं हो सकते । स्थानीय सरकार और श्री ली के बहन भाइयों की मदद से उन्हों ने घर के पास एक क्लास रूम निर्मित किया , जिस में एक समय अस्सी से ज्यादा छात्र पढ़ सकते हैं ।

श्री ली के छात्र हु वन ख ने संवाददाता से कहा कि वे अध्यापक ली की खुश मिजाज और रोचक अध्यापन तरीके को बहुत पसंद करता है । उस ने कहाः

अध्यापक ली हमारे बड़े भाई जैसे हैं , उन के क्लास में माहौल बड़ा सौहार्दपूर्ण है । अंग्रेजी पढ़ाने के दौरान वे अकसर अंग्रेजी से हमारे साथ मजाक की बातें करतें और रोचक कहानी सुनाते हैं । इस तरीके से हम धीरे धीरे अंग्रेजी सुनने बोलने के आदि हो गए और हमें अंग्रेजी सीखने को भी बड़ा रोचक लगता है । अध्यापक ली का बीता जीवन और शिक्षा पाने की आपबित्ति भी प्रभावकारी है ,अगर हमारे स्वस्थ लोग भी अंग्रेजी अच्छी नहीं सीख सकते ,तो वह एक शर्मिंदा बात है ।

श्री ली यो शङ की मेहनत का फल आया , उन के अनेक छात्र आगे सुयोग्य व्यक्ति बन गए । कुछ लोग देश के वित्त व कानून व्यवसायों में अहम पद संभालते हैं और कुछ विदेशों में वैज्ञानिक अनुसंधान का काम करते हैं । हर त्यौहार के दिन कुछ न कुछ छात्र वापस उन से मिलने आते हैं ।

अंग्रेजी पढ़ाने में सफलता पाने के परिणामस्वरूप श्री ली यो शङ ऊरूमुची में प्रसिद्ध हो गया , उन की अद्मय भावना से प्रभावित हो कर खूबसूरत लड़की उन की पत्नी हो गई ।

अपनी पत्नी की चर्चा छिड़ते ही श्री ली का मुख एकदम खिल उठा । उन्हों ने कहा कि वे इसलिए अपनी पूरी शक्ति को पढ़ाने में लगा सकते हैं , क्योंकि उन की पत्नी उन का भरपूर समर्थन करती हैं । सर्दियों के दिन जब वे घर लौटे , तो पत्नी गर्म गर्म पानी से उन के अपाहिज पांवों को धोती है और मालिश करती है । विकलांग होने के कारण श्री ली के सीढियों पर चढ़ने और उतरने में दिक्कत होती है , तो उन की पत्नी उन्हें अपनी पतली पीठ पर लादे ऊपर नीचे आ जाती है ।

श्री ली यो शङ हमेशा पत्नी के एहसान की याद करते हैं । वे अपनी पत्नी के कंधे पर ज्यादा बोझ नहीं डालने की कोशिश भी करते हैं । वे कम शौचालय जाते हैं और कम पानी पीते हैं , जिस से उसे गुर्दे की पथरी का रोग भी लगा । डाक्टर ने उन्हें ज्यादा पानी पीने तथा ज्यादा व्यायाम करने की सलाह दी , लेकिन वे विकलांग हैं , किस तरह ज्यादा व्यायाम कर सकें । इस समस्या को दूर करने के लिए उन की पत्नी तङ ह्वा इंग को एक तरीका सूझा । उन्हों ने कहाः

जब उन के पेट में दर्द कम हुई , तो मैं उन्हें अपनी पीठ पर लादे हिलाती रही , बहुत थकी हुई , तो उन्हें पलंग पर रख दिया और बांहों से उन के दोनों पैरों को जोर से हिलाती रही और उन के पेट पर मालिश करती , ताकि उन का शरीर ज्यादा हिल डोल जाए और उन्हें ज्यादा पानी पिलाया , इस तरह अंत में गुर्दे की पथरी बाहर निकल गयी और सेहत अच्छा हो गया ।

सुखमय पारिवारिक जीवन से श्री ली यो शङ ने अपनी शक्ति व उत्साह को अंग्रेजी पढ़ाने में ज्यादा लगाया । वे चाहते हैं कि अपने पिछले 20 सालों के अध्यापन अनुभवों के आधार पर एक पुस्तक लिखें , ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इस से लाभ पा सकें ।