चीनी जन प्रतिनिधि सभा यानी नैशनल पीपुल्स कांग्रेस हाल ही में संपन्न हो गई है। इस सम्मेलन में उपस्थित 2900 सदस्यों में से एक ऐसे सदस्य हैं जिस ने सम्मेलन में भाग लेने के समय भी मकई के बीज को अपने साथ लाना नहीं भूले थे। उन्होने मकई के संकरण व रोपण के जरिए मकई के उत्पादन में एक नया विश्व रिकार्ड स्थापित किया है । आज के इस कार्यक्रम में हम आपको इस असाधारण व्यक्ति से भेंट करवाएगें। वह हैं मकई की नयी नस्ल को पैदा करने वाले कृषि विज्ञानी ली तंग हाए।
57 वर्षीय श्री ली तंग हाए एक हट्टे कटटे पुरूष है , उनके सांवला रंग के मुखड़े पर इमानदारी व सीधे साधे चरित्र की झलके देखने को मिलती है। हमारे संवाददाता ने उनके कमरे में प्रवेश करते ही देखा की मेज पर मकई बीज के कुछ पैकेट रखे हुए थे। श्री ली तंग हाए ने कहा कि उन्होने यह बीज पेइचिंग से 2300 किलोमीटर दूर हाएनान प्रांत के शोध परीक्षण खेतों से लाए हैं, वह इन बीजों को सम्मेलन के समाप्त होने के बाद, पूर्वी चीन के सानतुंग प्रांत में रोपण कर नयी पीढ़ी के मकई बीज का उत्पादन करने का कृषि अनुसंधान करेगें।
श्री ली तंग हाए जहां भी जाते हैं अपने साथ मकई का बीज साथ ले जाना नहीं भूलते हैं। किसान परिवार में पले बढ़े श्री ली तंग हाए को पहले केवल मकई उगाने में ही रूचि थी, बाद में उनका मन मकई के उत्पादन में वृद्धि लाने में लग गया और 30 सालों की मकई खेती से मिले अनुभवों से उन्होने मकई के एकल उत्पादन का विश्व रिकार्ड कायम किया । सच कहे तो श्री ली तंग हाए मकई अनुसंधान के एकदम दिवाने हो गए हैं। उन्होने अपना विचार प्रकट करते हुए कहा वर्ष 1972 से चीन में मकई बीज की संकरण तकनीक बहुत लोकप्रिय होने लगी, इस से पहले मकई के प्रति हैक्टर की उत्पादन मात्रा 1500 किलोग्राम थी, संकरण बीज के प्रयोग होने से 3000 किलोग्राम तक जा पहुंची, उत्पादन मात्रा में दो गुने की वृद्धि हुई, इस से हमे संकरण मकई बीज के उत्पादन वृद्धि की निहित शक्ति का गहरा महसूस होने लगा।
मकई की बढ़िया बीज की पैदावर के एक लम्बे दौर में, श्री ली तंग हाए और कृषि तकनीशियनों ने पूरे देश के बढ़िया बीजों को एकत्र कर वैज्ञानिक परीक्षण शुरू किया। उचित मकई पौधों के बीच मकई बीजों का संलग्न से संकरण करने तथा हर मौसम परिवर्तन के दौर में संकरण मकई बीजों के उगने की स्थिति पर कड़ी नजर रखने के लिए , श्री ली तंग हाए व उनके साथियों हर रोज लगातार पांच छै घन्टे मकई के निरीक्षण में लगे रहते थे। श्री ली तंग हाए के गृहस्थान सानतुंग प्रांत में एक साल में दो बार मकई की बुवाई की जा सकती है, जबकि हाएनान प्रांत के उष्णकटिबन्ध मौसम में चार बार मकई की बुवाई करने की संभावना उपस्थित है। वर्ष 1978 से श्री ली तंग हाए और साथियों ने हाएनान प्रांत के विरान क्षेत्र में मकई के एक परीक्षण खेत की स्थापना कर मकई अनुसंधान करना शुरू कर दिया । फिलहाल उनके दवारा खोदे दस हैक्टर परीक्षण खेतों में मकई बीज के संकरण का अनुसंधान जोर शोर से शुरू हो गया है।
मेहनत का फल मीठा होता है। आज श्री ली तंग हाए ने करीब एक सौ से अधिक नए मकई बीजों के अविष्कार करने की सफलता हासिल कर ली है। दिसम्बर 2005 में उनके दवारा सृजन नए मकई बीज ने प्रति हैक्टर में 2.1 टन मकई फसल प्राप्त करने का एक नया विश्व रिकार्ड कायम कर लिया है।
श्री ली तंग हाए के पांव केवल मकई के खेतों में ही नहीं टिके रहे, उन्होने बाजार की ओर भी अपना कदम बढ़ाना शुरू कर दिया। वर्ष 1992 में उन्होने विज्ञान अनुसंधान , तकनीकी सिफारिश व उत्पादन और बिक्री से जुड़ी अपनी एक निजी परामर्श कम्पनी की स्थापना की। वर्ष 2005 में उनकी कम्पनी का शेयर बाजार में प्रवेश हो गया, कम्पनी कदम ब कदम सफलता की ओर बढ़ने लगी, आज इस कम्पनी दवारा उत्पादित मकई के बीजों की बुवाई पूरे चीन के एक तिहाई क्षेत्रों में उगाए जा रहे हैं।
श्री ली तंग हाए की बढ़ती वैज्ञानिक व अनुसंधान शक्ति के आगे वर्तमान एक गंभीर सवाल यह है कि किस तरह अपने बौद्धिक संपदा अधिकार का संरक्षण किया जा सके। इस पर चर्चा करते हुए चीनी कृषि विज्ञान अकादमी के मकई केन्द्र के निदेशक, प्रोफेसर चांग से हवांग ने हमें बताया कृषि उत्पादन एक फैला व बिखरा कार्य है, इस लिए उसकी तकनीक को गुप्त रखना बहुत ही मुश्किल है। इस स्थिति के आगे, यदि बौद्धिक संपदा अधिकार संरक्षण की रक्षा न की जा सके तो निजी पूंजी को शामिल करना एक बड़ी समस्या बन सकती है। अगर ऐसा रहा तो चीन जैसे इतने बड़े देश में कृषि की समुन्नत तकनीक के विकास में बड़ी कठिनाई खड़ी हो सकती हैं।
श्री ली तंग हाए दवारा सृजन सिलसिलेवार संकरण मकई बीज को वर्ष 2004 का राष्ट्रीय विज्ञान तकनीक व सृजन की प्रथम श्रेणी का पुरूस्कार हासिल हुआ था और पेटन्ट भी, उसे बौद्धिक संपदा अधिकार संरक्षण की कानूनी सुरक्षा भी हासिल है। इन सालों में चीन में बीज के संकरण अनुसंधान में कानूनी सुरक्षा पर चर्चा करते हुए श्री ली तंग हाए ने भाव विभोर होकर कहा हमारे देश ने बौद्धिक संपदा अधिकार संरक्षण में भारी प्रगति की है, राज्य परिषद दवारा वर्ष 1997 में निर्धारित वनस्पति की नयी नस्ल सुरक्षा नियमवली तथा वर्ष 1999 में विश्व वनस्पति नयी नस्ल संरक्षण संधि में शामिल होने व वर्ष 2000 में बीज कानून में संशोधन करने के बाद, बौद्धिक संपदा अधिकार संरक्षण की शक्ति कहीं सुदृढ़ होने लगी है, हम अपने अविष्कार को कानूनी तौर से सुरक्षित रख सकते हैं।
अपने कार्य में शानदार सफलता हासिल होने के बावजूद श्री ली तंग हाए जो छुटपन से गांव में पले बढ़े हुए थे, किसानों की आमदनी पर कहीं ज्यादा ध्यान देते हैं। मकई से किसानों को लाभ पहुंचाने पर बोलते हुए श्री ली तंग हाए का मानना है कि मकई उत्पादन चेन का विस्तार करना एक कुंजी सवाल है, धनी होने के विचार को सिर्फ वनस्पति एक कारक पर ही नहीं निर्भर रहना चाहिए। उन्होने अपना विचार प्रकट करते हुए कहा सुअर, मुर्गी व दूध गाय पालना व उनके चारे का बन्दोबस्त करने के दौर में, मकई से गहरा संबंध रहता है। मकई के पूरे शरीर में सोना भरा हुआ है, इस के साथ वह औद्योगिक का कच्चा माल व उर्जा का जरूरी कच्चा माल भी है। बहुत से देश उर्जा के अभाव की स्थिति में, मकई से स्प्रिट तैयार कर पेट्रोल का एक पूरक हिस्से के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
श्री ली तंग हाए एक विज्ञानी होने के साथ एक उद्योगपति भी है, वह गांव से आए राष्ट्रीय जन प्रतिनिधि सभा यानी नैशनल पीपुल्स कांग्रेस के प्रतिनिधि भी है, किसानों के हितों व लाभों की सुरक्षा पर उन्हे अन्य लोगों से अधिक अनुभव है। किसानों के हित व लाभ , कृषि व ग्रामीण विकास से संबंधित विधि व निगरानी कार्यों में वह हमेशा बड़े क्रियाशील रहते हैं। अभी अभी समाप्त नैशनल पीपुल्स कांग्रेस की स्थायी समिति दवारा विवेचन की गई कृषि उत्पादों की गुणवत्ता व सुरक्षा कानून मसौदे की बैठक में श्री ली तंग हाए ने उत्पादन व बिक्री के पहलुओं में कानूनी जिम्मेदारी पूछने की व्यवस्था को अपनाने का सुझाव रखा, ताकि वस्तुगत रूप से व्यापक किसानों के हितों की सुनिश्चता प्रदान की जा सके।
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