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इस विशाल झील के बीचोंबीच एक चाशी द्वीप खड़ा हुआ है , पर्यटक लकड़ियों से तैयार नाव के सहारे इस द्वीप पर जा सकते हैं । द्वीप पर रंगीन छोटी छोटी झंडियां हवा में लहराते दिखाई देती हैं । कोई डेढ़ हजार वर्ष पुराने चोचुंगकुंगपा मठ में कमल आचार्य की मूति रखी हुई है । प्रशंसनीय बात है कि इस द्वीप पर घूमते हुए तिब्बत के प्रसिद्ध कसाल राजा के घोड़े द्वारा छोड़े गये चिन्ह और लड़ाई लड़ते समय पत्थरों पर छोड़ी गयी तलवार की छाप देखी जा सकती है ।
प्रिय दोस्तो , आप को मालूम है कि कुंपुच्यांगता कांऊटी दक्षिण पूर्व तिब्बत से गुरजने वाली नीयांग नामक नदी के मध्यम ऊपरी भाग में स्थित है । इतिहास में यहां कभी एक रौनकदार बाजार रहा था । और तो और थांग राजवंश से ही वह चीन के भीतर क्षेत्रों से तिब्बत को जोड़ने वाला प्रमुख यातायात मार्ग ही रहा था।
थांगरावंश के बाद तिब्बत और भीतरी इलाकों के बीच सम्पर्क दिन ब दिन घनिष्ट होता गया था और व्यापारिक आवाजाही भी तेज से तेजतर हो गयी । ऐसी स्थिति में भीतरी इलाकों से आये व्यापारियों ने यहां पर सरकारी अधिकारियों व व्यापारियों के लिये सुविधा प्रदान करने और व्यापार बढ़ाने के लिये एक चौकी स्थापित किया । बाद में भीतरी क्षेत्र और तिब्बत के अधिकारियों , सैनिकों और स्थानीय जनता ने इसी चौकी की जगह पर थाईचाओ प्राचीन शहर का निर्माण कर दिया । स्थानीय बुजुर्गों के अनुसार तत्कालीन थाईचाओ प्राचीन शहर बहुत रौनकदार था , प्रसिद्ध छोटी पाकोर सड़क पर चहल पहल नजर आती थी , चार भव्यदार मठ भी निर्मित हुए थे , रोज पूजा करने वाले लोगों की भीड़ इन मठों में जमी हुई थी , बहुत से छोटे बड़े व्यापारी दूसरी जगहों से सौदा करने के लिये विशेष तौर पर यहां उमड़ आते थे , यहां चीन के भीतरी क्षेत्रों और तिब्बत के मालों का आदान प्रदान करने का एक प्रमुख बाजार बन गया था ।
प्राचीन थाई चाओ शहर से निकलकर हम पासुंगचो झील पर्यटन क्षेत्र के लिये रवाना हुए । तिब्बती भाषा में पासुंगचो का अर्थ है तीन चट्टाने और तीन झीले । तिब्बत की अन्य दूसरी पवित्र झीलों की तुलना में पासुंगचो झील अपना विशेष स्थान रखती है । झील की चारों ओर घने आदिम जंगलों से घिरी हुई है और पूरी झील हरी भरी नजर आती है , झील का पानी इतना स्वच्छ है कि दो तीन मीटर गहरे पानी के नीचे झूंट में झूंच मछलियां तैरती हुई दिखाई देती हैं ।
पासुंगचो झील के ईर्द गिर्द बर्फिले पर्वत भी खड़े हुए हैं । सफेद बर्फिले पर्वतों की छायाएं हरे रंग के स्वच्छ पानी में साफ साफ नजर आती हैं और चारों ओर का प्राकृतिक दृश्य एकदम अद्भुत है । यहां का स्वच्छ व तरोताजा वातावरण लोगों को अकल्पनीय शांति का आभास देता है । हम यहां के इतने अनुपम प्राकृतिक दृश्य पर सचमुच भी मंत्रमुग्ध हो गये हैं ।
हमाने गाइड नित्से ने पासुंगचो झील का परिचय इस तहर दिया कि पासुंगचो झील का कुल क्षेत्रफल 37.5 वर्ग किलोमीटर है । समुद्र की सतह से तीन हजार चार सौ बैंसठ मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस झील का आकार प्रकार अर्ध चंद्रमा जान पड़ता है , झील की नम्बाई 15 किलोमीटर है और चौड़ाई तीन किलोमीटर है । जबकि पानी की गहराई 60 मीटर है , पर इस झील के कुछ भाग कोई 167 मीटर गहरे हैं । झील के चारों ओर खड़े पर्वतों की ऊंचाई भी चार हजार मीटर से अधिक है ।
इस विशाल झील के बीचोंबीच एक चाशी द्वीप खड़ा हुआ है , पर्यटक लकड़ियों से तैयार नाव के सहारे इस द्वीप पर जा सकते हैं । द्वीप पर रंगीन छोटी छोटी झंडियां हवा में लहराते दिखाई देती हैं । कोई डेढ़ हजार वर्ष पुराने चोचुंगकुंगपा मठ में कमल आचार्य की मूति रखी हुई है । प्रशंसनीय बात है कि इस द्वीप पर घूमते हुए तिब्बत के प्रसिद्ध कसाल राजा के घोड़े द्वारा छोड़े गये चिन्ह और लड़ाई लड़ते समय पत्थरों पर छोड़ी गयी तलवार की छाप देखी जा सकती है ।
कुंगपुच्यांता कांऊटी के पर्यटन ब्यूरो के प्रधान चाशीफिंगचो ने हमें बताया कि उन्हों ने विशेष तौर पर विदेशी पर्यटकों के लिये कई दिलचस्प पर्यटन लाइने खोल दी हैं ।
विदेशी पर्यटक पासोंचो झील पर्यटन क्षेत्र का दौरा करने के लिये पैदल या तागा का विकल्प ज्यादा पसंद करते हैं । इसे ध्यान में रखकर हम ने पासोंचो झील का परिक्रमा करने , बर्फिले पर्वत पर आरोहण करने और नदी पर क्रीड़ा करने जैसी कई मजेदार पर्यटन गतिविधियां चलायीं । हम 11 वीं पंचवर्षिय पर्यटन योजना के तहत पासोंचो झील के संरक्षण को ज्यादा महत्व देते हैं , ताकि देशी विदेशी पर्यटक और अच्छी तहर खूब सुरत पवित्र पासोंचो झील के अनौखे प्राकृतिक द़ृश्य का लुत्फ ले सके ।
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