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(GMT+08:00) 2006-04-05 09:18:58    
चीन में पक्षी-फ्लू की रोकथाम में मानव उपयोगी टीके का विकास

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पक्षी-फ्लू का फैलाव विश्व भर में होता जा रहा है । इस से पक्षी और मनुष्य दोनों खतरे में पड़ गये हैं। विश्व स्वास्थ्य-संगठन के आंकड़ों के अनुसार आज तक विश्व में कुल 160 से अधिक आदमी पक्षी-फ्लू के विषाणु से ग्रस्त हुए हैं और उन में से आधों की मौत हो गयी है। ऐसी स्थिति में लोगों का ध्यान नये टीके के अनुसंधान पर गया है,ताकि टीके के जरिये पक्षी-फ्लू की रोकथाम की जा सके ।

चीन में पक्षी-फ्लू की रोकथाम में मानव उपयोगी टीके का विकास किया जा रहा है । जब दक्षिण पूर्वी एशिया समेत कुछ क्षेत्रों में पक्षी-फ्लू का फैलाव होने लगा , तब चीन सरकार और चीन की संबंधित संस्थाओं को यह महसूस हुआ कि पक्षी-फ्लू से मानव के लिए भी भारी खतरा है । इसीलिए चीन सरकार ने तुरंत ही मानव उपयोगी टीके का अनुसंधान शुरू कर दिया ।

चीनी क-शींग जीव उत्पादन वस्तु लिमिटिड कंपनी चीन में प्रथम ऐसी कंपनी है जो पक्षी-फ्लू की रोकथाम के लिए मानव उपयोगी टीके का अनुसंधान कर रही है । क-शींग कंपनी चीन की मशहूर उच्च तकनीक कंपनी है , जिसे नयी तकनीकों का अनुसंधान करने की क्षमता हासिल है । टीके का अनुसंधान करने में भी यह कंपनी शक्तिशाली है । उस ने ऐ शैली वाले पीलिया प्रतिरोधी टीके के अनुसंधान में भी सफलता प्राप्त की है।

चीनी क-शींग जीव उत्पादन वस्तु लिमिटिड कंपनी ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की मदद से टीका बनाने के लिए आवश्यक विषाणु प्राप्त किया । फिर कंपनी के तकनीशियनों ने विषाणु का प्रजनन करना शुरू किया । चीनी क-शींग कंपनी के निदेशक श्री ईंन वेई तुंग ने कहा कि विषाणु का प्रजनन करना , टीके का अनुसंधान करने में सब से कठिन काम है । सर्वप्रथम अंडे में विषाणु प्रविष्ट किया जाता है ,फिर प्रयोगशाला में इस अंडे में विषाणु को पनपा कर विकसित किया जाता है,इसतरह पूर्ण विकसित विषाणु प्राप्त किया जाता है । ऐसे विषाणु वाले कई ट्रक अंडों का विकास क-शींग जीव उत्पादन वस्तु लिमिटिड कंपनी के तकनीशियनों ने असाधारण कोशिश करके प्रयोगशाला में ही किया । श्री ईंन ने कहा , हमारे तकनिशियनों ने एक्सेनिक प्रयोगशाला में बहुत मेहनत से काम किया है । उन्होंने भिन्न-भिन्न तरीकों से बहुत से अंडे प्राप्त किये । उन्होंने कुल दस लाख अंडों का इस्तेमाल करने के बाद टीका बनाने का द्रव्य प्राप्त किया । कई महीनों तक तकनिशियनों ने कुल दो हजार चूहों पर टीके के प्रभाव व सुरक्षा की परीक्षा की । इस परीक्षा से यह जाहिर हुआ कि टीके का अनुसंधान सफल रहा है और यह टीका काफी सुरक्षित है । इस के बाद क-शींग कंपनी ने ऐसे टीके के वंशज, स्थायीत्व आदि संदर्भ का आगे अनुसंधान किया । और टीके के उत्पादन का पूर्व काम समाप्त हुआ ।

वर्ष 2005 के अंत में क-शींग कंपनी के तकनीशियनों ने पक्षी-फ्लू की रोकथाम में मानव उपयोगी टीके का सभी नैदानिक अनुसंधान समाप्त कर लिया । उसी साल के नवम्बर के एक दिन चीनी राजकीय खाद्य पदार्थ व दवा निरीक्षण प्रबंध ब्यूरो इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि क-शींग कंपनी द्वारा तैयार पक्षी-फ्लू की रोकथाम में मानव उपयोगी टीके का नैदानिक इस्तेमाल किया जा सकेगा । संयोगवश उसी दिन चीनी स्वास्थ्य मंत्रालय ने चीन में पक्षी-फ्लू से ग्रस्त हुए प्रथम रोगी की खबर जारी की ।

खबर पाने के तुरंत बाद क-शींग कंपनी ने अपनी शक्तियों को केंद्रित कर मानव पर नये टीके की परीक्षा करने की तैयारियां पूरी कीं । फिर क-शींग कंपनी ने पेइचिंग के एक अस्पताल के साथ संयुक्त रूप से ऐसे टीके की परीक्षा के लिए स्वयंसेवक आमंत्रित करने की घोषणा जारी की । परीक्षा के जिम्मेदार , पेइचिंग के इस अस्पताल के श्वास के अंतः दवा-विभाग के प्रधान चिकित्सक लीन च्यांग थाओ ने बताया कि उसी समय चीन में पक्षी-फ्लू से ग्रस्त हुए प्रथम रोगी की खबर आयी है । इसलिए लोगों को आशंका हुई कि स्वयंसेवक आमंत्रित करने का काम सुभीते से नहीं चलेगा । लेकिन स्वयंसेवक आमंत्रित करने की घोषणा जारी की जाने के तुरंत बाद अनेक लोगों के फोन आने लगे ।

श्री लीन ने कहा कि इन स्वयंसेवकों में चिकित्सक , सरकारी अफसर , कंपनियों के कर्मचारी और शहरों में काम ढ़ूंढ़ने वाले किसान सब शामिल थे।यह एक असाधारण बात थी । स्वयंसेवकों की भागीदारी से क-शींग कंपनी द्वारा निर्मित टीके की प्रथम नैदानिक परीक्षा की तैयारी पूरी हो गयी । फिर अस्पताल ने स्वयंसेवकों में से छह को प्रथम परीक्षा में लेने का फैसला कर लिया । वर्ष 2005 के दिसंबर में इन छह स्वयंसेवकों के शरीर में मानव उपयोगी पक्षी-फ्लू टीका लगाया गया । शरीर में ऐसा टीका लगाने के बाद स्वयंसेवकों के शरीर पर इस का क्या प्रभाव पड़ेगा,इसी आशंका की चर्चा करते हुए एक स्वयंसेविका,20 वर्षीय नर्स मिस च्यांग ने कहा , टीका लगवाने के बाद मैं बहुत चिंतित थी, लेकिन बाद में मुझे कोई ज्वर नहीं हुआ,और कोई भी खराब प्रभाव नहीं महसूस हुआ ।

मिस च्यांग की ही तरह दूसरे पांच स्वयंसेवकों की स्थिति भी सही रही । टीका लगवाने के 56 दिन बाद उन के शरीर में पक्षी-फ्लू के रोगप्रतिकारक पैदा होने लगे । इन छह स्वयंसेवकों के बाद दूसरे और तीसरे चरणों के स्वयंसेवकों ने भी परीक्षाओं में भाग लिया । उन सब की स्थिति भी बहुत अच्छी रही , किसी व्यक्ति के शरीर पर कोई भी बुरा प्रभाव नहीं नज़र आया । चीनी विज्ञान व तकनीक मंत्रालय के पक्षी-फ्लू टीका विकास कार्यक्रम के प्रधान श्री च्या चींग त्वन ने कहा कि मानव उपयोगी पक्षी-फ्लू टीका की सभी परीक्षाओं की पूर्णता को और कुछ समय चाहिये । लेकिन यह काम अंततः सफल रहेगा । अब मानव उपयोगी पक्षी-फ्लू टीके का कारगर संरक्षण किया जा सकता है । बेशक, इस टीके को और अधिक नैदानिक परीक्षाओं से गुज़रना होगा। इस संदर्भ में गहन रूप से अनुसंधान किया जाना चाहिये । पर हम इस के भविष्य के प्रति काफी आश्वस्त हैं कि मानव उपयोगी पक्षी-फ्लू टीका संबंधी तकनीक उपलब्ध है ।

श्री च्या ने कहा कि मानव उपयोगी पक्षी-फ्लू टीके को बाजार में दाखिल होने के लिए और कुछ समय चाहिये। चीन इस लक्ष्य को ध्यान में रख कर पूरी तैयारी से काम कर रहा है । अब चीन में मानव उपयोगी पक्षी-फ्लू टीके की उत्पादन लाइन उपलब्ध हो चुकी है , जिस में सभी टीका परीक्षाएं समाप्त होने या फोरी स्थिति सामने आने की स्थिति में काम शुरू हो सकेगा ।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल ही में आश्चर्यजनक खबर प्रकाशित की कि अमेरिका की एक जैव तकनीक कंपनी गत शरद से इस वसंत तक एच 2 एन 2 फ्लू नामक खतरनाक फ्लू के विषाणु को विश्व की कई हजार प्रयोगशालाओं में फैला चुकी है, जिससे विश्व भर में इस फ्लू के विस्तार की भारी आशंका है।

इतिहास में खतरनाक विषाणुओं के प्रसार की अनेक घटनाएं हो चुकी हैं। पूर्व सोवियत संघ की एक चिकित्सा संस्था से एक बार एंथ्रैकनोज नामक रोग के विषाणु के फैलने की घटना हुई। वर्ष 2003 और 2004 में सिंगापुर और चीन की चिकित्सा संस्थाओं से सार्स विषाणु के बाहर आने की घटनाएं सामने आईं। इन सब घटनाओं ने कुछ व्यक्तियों की जान भी ली। रिपोर्टें हैं कि चिकित्सा प्रयोगशालाओं में संयंत्रों के अभाव, प्रबंध की कमजोरी और व्यक्तियों की लापरवाही इन घटनाओं का प्रमुख कारण रही। इसलिए चिकित्सा प्रयोगशालाओं की सुरक्षा एक बहुत महत्वपूर्ण विषय है। अमेरिकी कंपनी द्वारा एच 2 एन 2 फ्लू के विषाणु का प्रसार किये जाने के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पूरी दुनिया के चिकित्सा प्रबंध विभागों से अपनी सुरक्षा व्यवस्था कड़ी करने की अपील की है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस बात पर भी विशेष जोर दिया है कि खतरनाक विषाणुओं को उच्चस्तरीय प्रयोगशालाओं में ही सुरक्षित रखा जाना चाहिये और इन चिकित्सा संस्थाओं में कार्यरत व्यक्तियों की सुरक्षा का भी कड़ा प्रबंध किया जाना चाहिये।