सिन्चांग की पाक कला चीन में बेहद लोकप्रिय और मशहूर है । सिन्चांग के व्यंजन देश के अन्य स्थानों से अलग रंगढंग और स्वाद लिए हुए हैं , सिन्चांग का व्यंजन बनाने में पारंगत श्री चांग युन सुङ वहां बड़ी नामीगिरामी वाले पाक उस्ताद हैं , जिन्हों ने जो पाक कला पुस्तक संपादित की है , उस में उन्हीं के द्वारा बनाए गए नामी तरकारियों के रंगीन चित्र बड़ी संख्या में संलग्न हैं ।
श्री चांग युन सुङ सिन्चांग के पाक कला क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध हैं , खास कर वे विभिन्न स्थानों के विशेष स्वाद व्यंजनों को संकलित करने और उन के आधार पर नए विशेष तरकारी बनाने के शौकिन हैं । उन की इस प्रकार की कोशिश से सिन्चांग के व्यंजन रूपाकार और रंग में और खूबसूरत तथा स्वाद में और अधिक महीन व जायकेदार हो गए , साथ ही पाक कला की पोषकता व सांस्कृतिक महत्ता भी उन्नत हो गयी है ।
श्री चांग युनसुङ के अनुसार सिन्चांग के स्थानीय व्यंजनों में स्पष्ट जातीय विशेषता मिलती है । उदाहरण के लिए सिन्चांग की रोटी और हवा से सूखा गोश्त देश के दूसरे स्थानों में नहीं मिलती है । लेकिन अनेक कारणों से ये व्यंजन केवल गांवों में चलते हैं ,इन का अच्छी तरह विकास नहीं किया गया । वे कहते हैः
चीन के अन्य प्रांतों व प्रदेशों में विभिन्न ऐतिहासिक कालों के व्यंजनों की विशेष पुस्तकें लिखी गई हैं , लेकिन सिन्चांग में ऐसी पुस्तक नहीं है । यहां की लम्बी पुरानी परम्परागत व जातीय विशेष पाक कला का अच्छी तरह संकलन नहीं किया गया , यह एक बड़ी खेद की बात है ।
इस साल साठ वर्षीय चांग युनसुङ बचपन से ही तरकारी बनाने के रूचिकर थे , 17 साल की उम्र में जब वे उत्तरी सिन्चांग के अलताई क्षेत्र में एक चरागाह के रसोईघर में काम करते थे , तब वहां के विशेष जातीय खानपान में उन की बड़ी रूचि हुई । वे अकसर चरवाही घरों में जा कर जातीय खाना बनाने के तरीके सीखते थे ।
इस दौरान श्री चांग को पता चला है कि सिन्चांग के स्थानीय खानपान बहुत स्वादिष्ट और पोष्टिक है , लेकिन दुर्गम यातायात होने तथा सूचनाओं के आदान प्रदान की कमी होने के कारण ये खानपान बाहर अन्य स्थानों में नहीं पहुंच सकते । सिन्चांग के हामी व पालिख्वन क्षेत्रों में प्रचलित बकरी के मांस के साथ भाप से बनायी गई रोटी अल्पसंख्यक जाति व हान जाति के व्यंजनों से मिश्रित विशेष पकवान है , उस में आटा की रोटी कागज जितना पतली है और पानी की जगह बकरी मांस के शोरबे से रोटी का आटा गूंधा जाता है , साथ ही शोरबे में तेल और नमक मिलाया जाता है । इस प्रकार से बनायी गई रोटी खाने में बहुत जायकेदार और चिकनी लगती है । लेकिन अब यह बनाने का तरीका बहुत कम लोगों को मालूम है ।
ऐसे स्थानीय व जातीय विशेष व्यंजन बनाने के तरीकों का संकलन कर श्री चांग एक पुस्तक बनाने जा रहे हैं , ताकि सिन्चांग के इन विशेष व्यंजनों की तकनीक पीढियों से आगे प्रचलित रहेगी ।
आज से दस साल पहले श्री चांग युनसुङ को एक प्राचीन कविता से पता चला कि प्राचीन काल में सरहदी क्षेत्र में जंगली ऊंट का मांस भुन कर स्वादिष्ट व्यंजन बनाया जाता था । अखिरकार यह विशेष तरकारी किस कला से बनायी गई है , यह प्रश्न श्री चांग के दिमाग में लगातार उठता रहा । उन्हों ने सोचा कि सिन्चांग में समूचा बकरी भुन कर पकाने की तकरीक मिलती है , क्या प्राचीन लोग भी समूची ऊंट का मांस भुन कर खाना बनाते थे । इस के लिए भी कोशिश करने का श्री चांग ने निश्चय लिया ।
उन्हों ने बाजार से एक पालतू ऊंट चुन कर लाया और अपने सोचे हुए तरीके से उसे भुनने का प्रयास किया । लेकिन भारी बारिश के कारण उन की पहली कोशिश विफल हुई , तो उन्हों ने फिर नया प्रत्यन किया , रात भर काम करने के बाद दूसरी सुबह उन्हों ने थकान की परवा न कर भट्टी का तापमान हाथ डाल कर मापना नहीं भूला । उन का कहना हैः
इस ऊंट को स्वादिष्ट बनाने के लिए मुझे दोपहर का खाना भी छोड़ना पड़ा और भट्टी के पास लगातार चार घंटों तक इंतजार किया , जब ऊंट का गोश्त पक हो गया , तो भट्टी को खोलने पर उस में से ऊंट का मांस सुनहरे रंग में असाधारण खुशबू फैला रहा था । अपनी इस सफलता पर हमें अपार खुशी हुई ।
समूची ऊंट को भुन कर स्वाटिष्द गोश्त बनाने की सफलता ने चीनी पाक कला की सूची में और एक नाम जोड़ दिया , इस के भोज में चीनी और विदेशी दोस्तों ने इस नई किस्म की तरकारी की भूरि भूरि प्रशंसा की ।
ऊंट के भुने मांस बनाने की सफलता ने श्री चांग युन सुङ के विश्वास को काफी बढ़ा दिया , उन्हों ने फिर बैल , बकरी और ऊंट जैसे पालतू पशुओं के विभिन्न अंगों को विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाने की कोशिश की ।
ऊंट के कोहान को प्राचीन काल से पोष्टिक वस्तु समझा जाता आया है , जब कि बैल के पूंछ तथा ऊंट के खुर में भी पोषक प्रोटीन तत्व निहित है , जो स्वास्थ्य के लिए बेहद हितकारी सिद्ध हुए हैं । लेकिन सिन्चांग के परम्परागत व्यंजन बनाने में इन चीजों को बेकार समझ कर छोड़े जाते है ।
उस्ताद चांग युनसुङ ने अनेक बार अनुसंधान व प्रयोग कर ऊंट के खुर का शोरबा , हिमकमल के साथ कोहान तथा शुद्ध कोहान का तरकारी आदि कई नये स्वाद के तरकारी बनाने में कामयाबी हासिल की , जो सिन्चांग के होटलों और रेस्ट्राओं में उच्च श्रेणी के व्यंजन बन गए हैं । इस आविष्कार के चलते ऊंट का जो खुर पहले मात्र एक दो युन में बिकता था , अब उस की तरकारी 50 युन से अधिक पैसे से भी मुश्किल मिलता है । अपनी कोशिश की चर्चा में श्री चांग ने कहाः
हर व्यवसाय में सृजन होना चाहिए , इसी तरह समाज में प्रगति हो सकती है । मैं ने ऐसी कोशिश की है , जिसे पहले किसी ने नहीं किया था । सिन्चांग में अपनी अपनी विशेष स्थानीय कच्ची सामग्री है , नए सृजन से ऐसी सामग्री से विशेष स्वाद के तरकारी बनाये जा सकते हैं।
वर्ष 2003 में एक देशव्यापी पाक कला प्रतियोगिता में उस्ताद चांग के नेतृत्व वाले दल ने सिन्चांग के एक प्रकार के स्थानीय कुकुमर्ता से जो समुद्री मत्स्य स्वाद समान शाकाहारी तरकारी बनाया कर दिखाया था , उसे तीन बार सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार मिले । विशेषज्ञों के शब्दों में इस कुकुमर्ता में दो पोषक तत्व है , जिस से कैंसर रोधक शक्ति मिलती है , उस्ताद चांग द्वारा इस से बनाये समुद्री मत्स्य स्वाद का तरकारी पोष्टिक होने के साथ जायकेदार भी है । श्री चांग से पहले किसी ने इस प्रकार के कुकुमर्ता पर ध्यान नहीं दिया था , ऐसा कुकुमर्ता सिन्चांग के बहुत से स्थानों में जंगली घास की भांति सदियों से उगता आया , लेकिन किसी को पता नहीं था कि इस में कैंसर का मुकाबला करने की शक्ति होती है । उस्ताद चांग की इस खोज के बाद यह कुकुमर्ता जल्द ही देश भर में नामी हो गया और उस की मांग व्यापक हो गयी । उस्ताद चांग ने इस कुकुमर्ता का डिब्बा बंद भी बनवाया , जो होटलों और रेस्ट्राओं में खूब मांगा जाता है । श्री चांग युनसुङ ने कहाः
लम्बे समय से पाक कला के लिए खोज व सृजन के फलस्वरूप मुझे गहरा अनुभव हुआ है कि सिन्चांग की व्यंजन संस्कृति विविध और परिपूर्ण होती है , उस में नए नए व्यंजन के विकास की बड़ी गुंजाइश है । मैं चाहता हूं कि सिन्चांग के व्यंजन का परिचय ज्यादा से ज्यादा लोगों को कर दूं , ताकि लोगों को सिन्चांग के व्यंजन के साथ खुद सिन्चांग भी पसंद आए ।
वर्षों के व्यवहारिक काम से श्री चांग युनसुङ को यह अनुभव भी हुआ है कि सिन्चांग के पाक कला के आगे विकास के लिए नए नए रसोइयों को प्रशिक्षित किया जाना बहुत जरूरी है । वर्ष 2000 से वे नौजवान रसोइयों को प्रशिक्षित करने लगे , हर साल सिन्चांग में पाक कला प्रशिक्षण सभा आयोजित करते हैं और खुल कर अपने अनुभवों को नौजवान रसोइयों को प्रदान करते हैं ।
उस्ताद चांग से पिछले दस सालों तक पाक कला सीखने वाले श्री यु च्यान अब सिन्चांग के मशहूर प्रधान रसोई बन गए । उन्हों ने कहाः
उस्ताद चांग पाक कला सीखने में हम से कड़ी मांग करते हैं , प्रशिक्षण के दौरान हमें दोपहर व शाम के समय घर लौटने नहीं देते हैं , ताकि हम उन से ज्यादा से ज्यादा तकनीकें सीख सकें । वे अपना सभी ज्ञान हमें बताते हैं । जब हम सीखने में सफल हुए , तो वे बेहद खुश नजर आते हैं ।
हाल में श्री चांग युनसुङ ने अपनी पूंजी पर सिन्चांग पाक कला सृजन कोष कायम किया और नियमित रूप से पाक कला प्रतियोगिता का आयोजन करते हैं । वे चाहते हैं कि प्रतियोगिताओं में जो जो श्रेष्ठ तरकारी चुने गए , उन की एक पुस्तक संकलित की जाए, ताकि सिन्चांग के व्यंजनों के विकास व प्रचार प्रसार से चीनी राष्ट्र की पाक कला और अधिक समृद्ध हो जाए ।
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