आज के इस कार्यक्रम में हम दरभंगा, बिहार के प्रहलाद कुमार ठाकुर, राम बाबू महतो मुकेश कुमार, बिलासपुर, छत्तीसगढ के चुन्नीलाल कैवर्त, रायपुर, छत्तीसगढ़ के आनंद मोहन बायन और कोआथ,बिहार के विश्व रेडियो श्रोता संघ के सुनील केशरी, डी डी के पत्र शामिल कर रहे हैं।
सब से पहले लेते हैं दरभंगा, बिहार के प्रहलाद कुमार ठाकुर, राम बाबू महतो मुकेश कुमार का पत्र। उन्होंने पूछा है कि अब तक कितने चीनी व्यक्तियों या चीन से बाहर रहने वाले चीनी मूल के व्यक्तियों को नोबेल पुरस्कार मिला है और किन-किन क्षेत्रों में।
अच्छा, तो अब हम आप लोगों की जिज्ञासा शांत करने की कोशिश कर रहे हैं।
वर्ष 1901 में स्वीडन के प्रसिद्ध रसायनशास्त्री, नाइट्रोग्लिसरीन के आविष्कारक श्री अलफ्रेड बेर्नहार्ड नोबेल की वसीयत के अनुसार एक पुरस्कार कोष की स्थापना की गई। पुरस्कार में स्वर्ण पदक, परिणामपत्र और धनराशि शामिल है।
यह पुरस्कार भौतिकी, रसायनशास्त्र, चिकित्सा, शरीरक्रिया विज्ञान, साहित्य व शांति इन पांच विषयों में विभाजित है।
वर्ष 1901 से 6 चीनी नोबेल विज्ञान पुरस्कार विजेता बने हैं।
वर्ष 1957 में चीनी मूल के वैज्ञानिक, अमेरिका की प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर श्री यांग चंग-निंग और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ली चंग-ताओ को भौतिकी के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
वर्ष 1976 में चीनी मूल के वैज्ञानिक, अमेरिका के मासाचुसेट्स तकनालाजी इंस्टिट्यूट के प्रोफेसर तिंगचाओ-चुंग को भौतिकी के लिए इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
वर्ष 1986 में चीनी वैज्ञानिक, अमेरिका की केलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ली य्वान-चे को रसायनशास्त्र के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
वर्ष 1997 में, चीनी मूल के वैज्ञानिक, अमेरिका की स्टेंफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर स्टिवन चू ती-वन को भौतिकी के लिए इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
वर्ष 1998 में चीनी मूल के वैज्ञानिक, अमेरिका की प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डेन्निल छ्वेई छी को भौतिकी के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
यही नहीं, वर्ष 2000 में फ्रांस में रह रहे चीनी लेखक श्री काओ शिंग-च्येन को नोबेल साहित्य पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
सर्वविदित है तीन भारतीयों ने भी नोबेल पुरस्कार पाया।
सब से पहले, वर्ष 1913 में भारत के महान कवि व लेखक रबींद्रनाथ टैगोर को नोबेल साहित्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
वर्ष 1979 में भारत की मदर तेरेसा को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
वर्ष 1998 में भारतीय अर्थशास्त्री, यू के के कैम्ब्रिज ट्रिनीटी कॉलेज के प्रोफेसर अमर्त्य सेन को नोबेल अर्थशास्त्र पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
अब बिलासपुर, छत्तीसगढ के चुन्नीलाल कैवर्त का पत्र देखें। उन्होंने अपने पत्र में चीन के प्राचीन नगर फिंगयाओ और लिजिएंग के बारे में विस्तार से जानकारी मांगी है।
फिंगयाओ जिला उत्तरी चीन के शानशी प्रांत के मध्य में स्थित है। यह चीन की सभ्यता से जुड़ा प्रसिद्ध सांस्कृतिक नगर है और विश्व की सांस्कृतिक विरासत भी। फिंगयाओ इस प्रांत की राजधानी थाईय्वान से 90 किलोमीटर दूर है। नगर के दक्षिण में फ़नहो नदी बहती है। यहां रेल मार्ग व राजमार्ग की सुविधा भी है। प्राचीन काल से ही यह व्यापारी नगर रहा।
सब से पहले प्राचीन काल के महाराजा याओ को यह जागीर के रूप में मिला। इस नगर का इतिहास 2700 साल पुराना है।
फिंगयाओ नगर में 300 से भी अधिक सांस्कृतिक अवशेष हैं।
मिंग और छिंग राजवंश काल में शानशी प्रांत का व्यापार बेहद समृद्ध था। वर्ष 1824 में फिंगयाओ नगर में चीन का पहला बैंक स्थापित हुआ। इसके बाद कोई सौ सालों में यहां इतने बैंक स्थापित हुए कि सारा नगर एक बड़ा बैंक सा बन गया। बैंकिंग की समृद्धि से फिंगयाओ की अर्थव्यवस्था, समाज व संस्कृति का बड़ा इजाफा हुआ। इस बीच सारे नगर में अनगिनत बाजार, दुकानें व आलीशान रिहायशी मकान भी स्थापित हुए।
इस समय फिंगयाओ नगर में संरक्षित परम्परागत रिहायशी मकानों की संख्या 3797 है। इन में से 400 अब भी पूर्ण सुरक्षित हैं। ये सब समकोणाकार आंगन में स्थित हैं। ये रिहायशी मकान पर्यटकों के लिए देखने लायक हैं, साथ ही नगर की दीवार भी दर्शनीय है।
लीचिएंग नगर दक्षिण-पश्चिमी चीन के युन्नान प्रांत के य्वीलूंग हिमपर्वत की तलहटी में स्थित है। नगर की जनसंख्या 25 हजार से अधिक है। इन में से ज्यादातर नाशी जाति के लोग हैं।
लीचिएंग नगर की स्थापना सुंग राजवंश काल में हुई। युन्नान से तिब्बत जाने के व्यापार मार्ग में यह एक अहम गढ़ था।
नगर में नाशी जाति की श्रेष्ठ संस्कृति सुरक्षित है साथ ही सुंग व य्वान राजवंशों की ऐतिहासिक रूपरेखा भी। 3 दिसंबर, 1997 को यूनेस्को ने लीजिएंग को विश्वि की विरासतों में शामिल किया।

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