चीन के सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश में मुसलमान बड़ी संख्या में रहते हैं , हर साल के मुस्लिम त्यौहार कुर्बान पर वे धुमधाम के साथ त्यौहार की खुशी मनाते हैं । वर्ष 2006 की दस जनवरी को सिन्चांग के मुसलमानों का कुर्बान त्यौहार था । जब वहां कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी , लेकिन इस का त्यौहार के उमंग और उत्साह पर जरा भी असर नहीं पड़ा । चीन की अल्पसंख्यक जाति के अन्तर्गत सिन्चांग का दौरा जो प्रस्तुत है , उस में सिन्चांग के कुर्बान उत्सव के बारे में एक रिपोर्ट ।
कुर्बान के त्यौहार की खुशी में सिन्चांग के मुसलमान नए नए पोशाक में मनमुक्त हो कर नाचते गाते हैं और विभिन्न रूपों की गतिविधियों में धुमधाम से खुशियां मनाते हैं । सिन्चांग की राजधानी ऊरूमुची में भी मुसलमान बड़े उल्लास के साथ यह त्यौहार मना रहे हैं ।
सिन्चांग प्राचीन काल से ही चीन का एक ऐसा प्रदेश आ रहा है , जहां अल्पसंख्यक जातियां ज्यादा आबाद हुई हैं । इस समय सिन्चांग में कोई एक करोड़ दस लाख से ज्यादा लोग मुस्लिम धर्म में विश्वास रखते हैं , यह संख्या प्रदेश की कुल जन संख्या के आधा भाग से ज्यादा बन गयी है । हर साल जब कुर्बान का दिवस आया , तो मुस्लिम में आस्था रखने वाली वेवूर , कजाख , ह्वी , किरगिज आदि अल्पसंख्यक जातियों के लोग तीन दिन की नियमित छुट्टी में खूब त्यौहार की खुशियां मनाते हैं । कुर्बान मुसलमानों का एक भव्य त्यौहार है , जो इस्लामी पांचांग के मुताबिक हर साल के 12 वें महीने की दसवीं तारीख को पड़ता है ।
इस साल का कुर्बान संयोग से ईस्वी साल के जनवरी की दस तारीख पर पड़ा । इसे मनाने के लिए ऊरूमुची के मुसलमान त्यौहार से पहले ही खरीद फरोख्त में व्यस्त रहे , गली मोहल्लाओं में रोनक छाया रहा , सभी लोग ईद उल जुहा के लिए मन वांछित बकरी खरीदने की कोशिश करते रहे ।
सिन्चांग के मुसलमान मेवा ,किशमिश और पकवान से मेहमानों को खिलाना पसंद करते हैं , इसलिए त्यौहार से पहले मुसलमान परिवारों की गृहस्वामिनियों का एक मुख्य काम है बाजार से मेवा और पकवान लाना । ऊरूमुची के अन्तरराष्ट्रीय बाजार में रोज बहुत सी मुस्लिम महिलाएं किशमिश और सिन्चांग के विभिन्न विशेष मेवा खरीदते दिखाई देती थी , सिन्चांग के फल मेवा के अलावा वे दक्षिण चीन और पूर्व चीन से आये विभिन्न किस्मों के ताजा फल भी खरीदना पसंद करती थी । बाजारों में वेवूर जाति के लोक संगीत की मधुर धुन के साथ दुकानदारों और फेरीवालों की पुकारें भी सुनाई देती थी , जिस से त्यौहार का माहौल और ज्यादा उल्लाष और खुशी से गर्मागर्म हो गया ।
कुर्बान के दिवस के सुबह सिन्चांग के मुसलमान सबेरे सबेरे उठते हैं , नहा स्नान कर नया पोशाक पहनते हैं और मस्जिद में नमाज अदा करने जाते हैं । नमाज के बाद वे एक दूसरे को त्यौहार की बधाई देते हुए विदा लेते हैं । इस के बाद वे अपने पूरखों की पूजा के लिए मजार जाते हैं , वहां से लौटने के बाद वे अपने अपने मां बाप के घर जा कर मिल कर त्यौहार मनाते हैं , बहुत से मुसलमान दोस्तों व रिश्तेदारों से मिलने भी जाते हैं । इस तरह मेहमानों का स्वागत सत्कार करने का सिलसिला आरंभ होता है ।
बेगम गुली ऊरूमुची शहर में रहने वाली एक वेवूर गृहस्वामिनी है । इस साल के कुर्बान के समय वे पहले की तरह ऊरूमुची से सात सौ किलोमीटर दूर अपने मायके के घर नहीं लौटी , बल्कि ऊरूमुची में ठहरी , कुर्बान से तीन दिन पहले ही उन्हों ने त्यौहार की चीजें तैयार कर ली थीं और वे अपने पति और बच्चे के साथ कुर्बान मनाने तैयार हो गई।
दस तारीख के सुबह वे सबेरे सबेरे ही उठ गई और स्नान नहाने के बाद नए पोशाक पहने । पति नजदीक मस्जिद में नमाज अदा करने चले गए , तो वे अपने पांच साल के बेटे के साथ घर में रह कर पति के लौटने के इंतजार में रही ।
त्यौहार के लिए बेगम गुली ने अपना सब से सुन्दर वस्त्र पहना , त्यौहार से पहले बना बनाया यह वस्त्र वेवूर जाति के विशेष रंगढंग का चमकीला और फैशनबुल है , नए सुन्दर पोशाक में संवर सजी हुई गुली नवविवाहित दुल्हन की भांति खूबसूरत लगती है । कमान धनुष जैसी काली पतली भौंह , कोमल होंठ , गोरा त्वच और चमकदार बाल , मम्मी के श्रृंगार पर नटखट बच्चा भी बहुत प्रसन्न हो गया और नाचते गाते हुए कहता है कि मम्मी किसी भी दिन से ज्यादा सुन्दर दिख रही हैं । उस ने मम्मी के लिए एक नया सिखा बाल गीत भी गाया , जो अभी आप ने सुना था ।
बेगम गुली का घर एक रिहाइशी बस्ती में है , जिस में ज्यादातर निवासी मुसलमान हैं । कुर्बान के दिन सुबह पड़ोसी के लोगों ने अपनी अपनी बकरी बस्ती के भीतर विशेष जगह पर लाए और वहां ईद उल जुहा के लिए बकरी का वध किया जाता है । सुबह दस बजे गुली घर का बकरी वध किया जा चुका था तथा अभी अभी मस्जिद से लौटे पति के साथ मिल कर बेगम जी ताजा बकरी मांस को घर ले गई । उन्हों ने घर में आने वाले मेहमानों के स्वागत सत्कार की तैयारी में खाना बनाना शुरू किया , जिन में बकरी का स्वादिष्ट गोश्त मुख्य तरकारी था ।
कुर्बान के दिन दोपहरबाद गुली के घर में कुछ उन के परिवार के दोस्त आए , वे बड़ी खुश हुई और फटाफट मिठाई , मेवा , पकवान , मक्खन तथा गर्मगर्म जायकेदार बकरी गोश्त परोस कर मेहमानों को खिलाने लगी । उन का कहना है कि अब बाजार में सब कुछ मिल सकता है , इसलिए त्यौहार की तैयारी भी बड़ी आसान हो गयी है ।
उन्हों ने कहा कि अतीत में त्यौहार की तैयारी के लिए दस पन्दर दिन पहले ही शुरू करना पड़ता था , पकवान और मेवा बहुत सी चीजें खुद के द्वारा तैयार की जाती थी , घर की सफाई भी बहुत पहले ही करना पड़ता था , इसलिए बहुत मेहनत करना पड़ा । अब सब कुछ बाजार में मिल सकता है , त्यौहार से केवल दो तीन दिन पहले सुपर बाजार से घर लाने का काम बस होता है । बहुत सुविधाजनक और आरामदेह है ।
गुली के घर में दोस्त और सहकर्मी बैठ कर गपशप्प मारने लगे और बीच बीच में बचपन के समय त्यौहार मनाने की हालत की भी याद आयी । बेगम गुली ने कहा कि बालावस्था में बच्चे रोज त्यौहार के दिन आने के लिए कौतुक रहते थे , क्योंकि त्यौहार के दिन भर पेट बकरी गोश्त खाने को मिलता था और त्यौहार की खुशी में बड़ों से कुछ पैसा भी मिलता था । अब बड़े होने के बाद हम रोज गोश्त खाते हैं और पैसे की कमी भी नहीं है । फिर भी हम त्यौहार के लिए बेताब हैं , क्योंकि हम चाहते हैं कि त्यौहार और अधिक धुमधाम से हो जाएं और आनंद मिल सकें।
कुर्बान के दौरान सिन्चांग के मुसलमान अपने अच्छे दोस्तों के साथ मिल कर समारोह करना पसंद करते हैं , समारोह कुछ लोगों का भी होता है और दसियों सैकड़ों का भी होता है । वे समारोह में गाते हैं , नाचते हैं और वादन करते हैं । गुली भी अपने बच्चे को लिए नाचगान समारोह में चली गई और प्रफुल्लित संगीत की धुन पर वे खुद सिन्चांग का नाच नाचने के लिए थरक रही ।
कुर्बान एक ऐसा मौका होता है , जहां जो लोग एक समय से नहीं मिल पाए थे , अब आपस में मिल सकते हैं । पुराने दोस्तों व परिचितों के मिलने पर अपार आनंद मिल सकता है । वेवूर जाति रीति रिवाज के अध्ययन में लगे विद्वान सलामुजिंग सिलीफु ने कहा कि वर्तमान में कुर्बान मात्र आपस में मिल जाने का मौका नहीं रहा । उन का कहना हैः
अब कुर्बान के दौरान हम गरीबों को दान के रूप में सहायता भी देते हैं , उन्हें समाज का स्नेह और तवज्जह पहुंचा देते हैं । इस के अलावा त्यौहार के मौके से फायदा उठा कर आपस के वैमनश्य और मतभेदों को मिटाने की कोशिश भी कर सकते हैं , ताकि लोगों में प्यार का आदान प्रदान हो । हम समाज के लिए योगदान किए लोगों की याद में गतिविधियां भी करते हैं और कथनी व करनी के जरिए मानव में प्रेम , सदभाव और स्नेह जाहिर करते हैं ।
सिन्चांग में अब कुर्बान मात्र मुसलमानों का त्यौहार भी नहीं रहा , मुसलमानों के बीच रहने वाले हान , मंगोल और अन्य जातियों के लोग भी साथ साथ कुर्बान मनाते हैं , वे मुसलमान पड़ोसियों के घर त्यौहार की बधाई देने जाते हैं , उन के साथ मिल कर नाचते गाते हैं । श्री सिलिफु ने कहाः
त्यौहार के दौरान बहुत से दूसरी जातियों के लोग भी मेरे घर आते हैं , वे सभी मेरे दोस्त हैं ,जिन में हान , मंगोल और कजाख आदि अनेक जातियों के लोग हैं । हम एक ही परिवार के सदस्यों की तरह त्यौहार की खुशी मनाते हैं ।
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