बिलासपुर छत्तीसगढ के चुन्नी लाल मासूम ने हमें लिखे पत्र में कहा कि खेल जगत कार्यक्रम में चीनी फुटबाल संघ की जानकारी बहुत ही रोचक लगी । वास्तव में चीन में फुटबाल की लोकप्रियता को देखते हुए फुटबाल में चीन का भविष्य उज्जवल है । मेरी शुभकामना है कि पेइचिंग ओलंपिक में फुटबाल का कोई पदक जरूर हासिल करेगा।
चीन का भ्रमण कार्यक्रम मेरे पसंदीदा कार्यक्रमों में से एक है । विगत कार्यक्रम में हूनान प्रांत में युनेस्को द्वारा संरक्षित आदिम जंगल का भ्रमण बहुत ही मनोरम , सजीव एवं शिक्षाप्रद लगा । ऊंचे ऊंचे पर्वत , घनी जंगलों के बीच सुन्दर सुन्दर झील एवं झरने बरबस ही पर्यटकों को अपनी ओर खींच लेते होंगे । वही थू जाति की मेहमाननवाजी की जानकारी ने दिल को छू लिया , अच्छी प्रस्तुति के लिए सी .आर .आई को धन्यावाद।
चुन्नीलाल मासूम जी , आप ने अपने पत्र में यह पूछा है कि ल्हासा शहर को वर्जित शहर क्यों कहा जाता है , मैं ने यह बात किसी किताब में पढ़ी थी । भाई जी , आप ने किताब में इस विषय पर जो पढ़ा था , वह गलत है , तिब्बत की राजधानी ल्हासा को कभी भी वर्जित शहर नहीं कहलाता है , चीन में जो वर्जित नगर कहा जाता है , वह वास्तव में पेइचिंग में स्थित पुराना शाही प्रासाद है । पेइचिंग शहर के केन्द्र में स्थित मिंग और छिंग राजवंशों का शाही प्रासाद इसलिए लाल वर्जित नगर के नाम से भी संबोधित किया जाता है , क्यों कि सामंती समाज में उस में सम्राट और उन के परिवार रहते थे , जहां आम जन साधारण के जाने की मनाही थी और इस विशाल शाही प्रासाद की दीवारें लाल रंग की है , इन दोनों कारणों से चीन में उसे लाल वर्जित नगर कहा जाता है । पेइचिंग के पुराने शाही प्रासाद को छोड़ कर किसी भी दूसरे शहर को वर्जित शहर से कहा नहीं जाता है और कहा भी नहीं जा सकता है । हां , चीन में ल्हासा को सुरज शहर के नाम से भी कहा जाता है , क्योंकि ऊंचे पठार पर स्थित होने के लिए वहां सुर्य का धूप ज्यादा पड़ता है ।
आजमगढ़ उत्तर प्रदेश के अहमद फराज ने हमें लिखे पत्र में कहा कि मैं और क्लब के सभी सदस्य सी .आर .आई का हिन्दी कार्यक्रम शौक से सुनते हैं , सभी सदस्यों का कहना है कि हिन्दी कार्यक्रम से बहुत कुछ ज्ञान प्राप्त होता है . श्रोता आप के हिन्दी कार्यक्रम से रोजाना लाभ उठाते हैं , आप के सभी कार्यक्रम रोचक और ज्ञानवर्धक होते हैं । आप का पत्र मिला को श्याओ थांग और वीतुंग जी प्रगति की ओर ले जा रहे हैं । हमारी दुवा आप के साथ हैं । जीवन और समाज बहुत अच्छा कार्यक्रम है , इस में आप लोग खूब मालूमात प्रदान करते हैं ।
आजमगढ़ के फिरोज अख्तर सलीमी ने अपने पत्र में तो कहा है कि वर्ष 2004 में सी .आर .आई ने विभिन्न मैदानों में प्रगति की है , तथा कार्यक्रमों को ऊंचाई के शिखर पर पहुंचाया है , श्रोता संघों की संख्या में वृद्धि दर्ज की गई है ।
आजमगढ़ उत्तर प्रदेश के शैलेन्द्र कुमार ने सी .आर .आई के हिन्दी प्रसारण के नाम लिखे पत्र में कहा कि हमारे क्लब एंबीशन रेडियो लिस्ट क्लब के सभी सदस्य बहुत प्रसन्न है । और हमारे क्लब के दो सदस्य और बढ़ गए हैं । अब हमारे क्लब में कुल मिला कर सात सदस्य हो गए हैं और क्लब के सदस्यों की संख्या और तेजी से बढ़ भी रही है ।
हम सी .आर .आई के हिन्दी विभाग के प्रोग्राम दिलोजान से सुन रहे हैं और सी . आर.आई के प्रसार प्रचार के लिए रोजबरोज चर्चा कराते हैं।
शैलेन्द्र कुमार ने आगे यह भी लिखा है कि हम लोग चीन के अभिनेता जैकी जेन की फिल्में बहुत देखते हैं , उन की फिल्मों में कराटे की बेहतरीन स्टाईल होती है और कराटे की फिल्म हमें बहुत पसंद है ।
जब हम ने श्रोता वाटिका पर छपी तस्वीर को देखते ही तुरंत पहचान गए कि यह जैकी जेन है और जैकी जेन ने अपने बारे में श्रोता वाटिका पर कुछ जानकारी दी ,उसे हम लोग पढ़ने को मिला है ।
मुजफ्फरपुर उत्तर प्रदेश के ब्रिजेश उपाध्याय ने हमें लिखे पत्र में कहा कि मैं ने आप को पत्र भेजा था , शायद वह आप को मिला नहीं , मैं अब फिर आप को पत्र भेज रहा हूं , और आशा करता हूं कि यह अवश्य आप तक पहुंचेगा । मैं आप का समाचार बहुत ही ध्यान से सुनता हूं । और मैं आप के गीत संगीत में बहुत ज्यादा रूचि रखता हूं । चीनी संगीत तो जैसे मुझे मस्ती से भर देता है । आज का तिब्ब्त भी बहुत बहुत अच्छा लगता है । उस में आप ने तिब्ब्ती लामा चुमैकंका से जो हमारी मुलाकात करवाई , वो मुझे बहुत अच्छी लगी । आप सभी हिन्दी भाषा को जिस प्रकार से बोलते हैं , वो मुझे बहुत रोचक लगती है ।
कोआथ बिहार के राकेश रौशन ने सी .आर .आई के हिन्दी सेवा के नाम लिखे पत्र में कहा कि वर्ष 2004 सी .आर .आई के लिए अच्छा रहा है , दो सभा से तीन सभाओं का प्रसारण और तीन से चार सभाओं का प्रसारण एक बड़ी उपलब्धि रही । इस के अलावा कार्यक्रम के गुणवत्ता में सुधार सराहनीय रहा । कुल मिला कर हम देखते तो वर्ष 2004 सी . आर .आई के लिए अच्छा ही रहा ।
अब हम 2005 के द्वार पर कदम रख चुके है , अब हमारा प्रयास होना चाहिए कि बीते घटनाओं से सबक लेते हुए सफलता के साथ कदम आगे बढ़ाएं । संसार के मंच पर वही सफलता पाता है , जिस में कुछ करने की इच्छा होती है और जो उस इच्छा शक्ति को कर्म में ढालने की क्षमता रखता है ।
हमें उम्मीद ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि सी .आर .आई वर्ष 2005 में भी कार्यक्रम की गुणवत्ता को बरकरार रखते हुए सभी श्रोताओं का ज्ञानवर्धन के साथ साथ मनोरंजन करता रहेगा । इस के लिए हमारा समर्थन आप के साथ है ।

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