कहते हैं कि हिरण पहाड़ी बिल्ली से डरता है , पहाड़ी बिल्ली बाघ से और बाघ भीमकाय भालू से ।
प्राचीन छुन राज्य में एक शिकारी रहता था , जानवरों का शिकार करने में वह कुशल नहीं था , पर कभी कभी वह अपनी होशियारी का प्रदर्शन करना पसंद करता था । उस ने बांस से सीटी बनाया और सीटी बजा बजा कर विभिन्न किस्मों के जानवरों की आवाज की नकल करता था ।
शिकारी अकसर हिरण , बकरी और नीलगाय की आवाज की नकल कर इन जानवरों को धोखा देता था और उन का पास बुला कर शिकार करता था ।
एक दिन , वह फिर तीर बाण और बारूद लिए पहाड़ पर गया । उस ने सीटी पर हिरण की आवाज बजायी , लेकिन क्या जाने उस की नकली आवाज सुन कर हिरण को खाना पसंद करने वाला पहाड़ी बिल्ली धोखे में आ कर बाहर निकला , खुंख्वार पहाड़ी बिल्ली को देख कर शिकारी घबराया और उस ने जल्दबाजी में बाघ की आवाज की नकल की , बाघ का हुंकार सुनने पर पहाड़ी बिल्ली जो भागा तो भाग गया , किन्तु उस की जगह एक भूखा बाघ आ धमका , शिकारी और अधिक डर गया , उस ने तुरंत भीमकाय भाल्लू की आवाज की नकल कर सीटी बजायी ।
बाघ भी घबरा कर भाग गया । शिकारी ने अभी राहत की सांस ली थी कि अचानक आवाज सुन कर एक खूंख्वार भीमकाय भाल्लू निकल आया , अपनी होशियारी पर घमंड शिकारी के पास अब कोई चारा नहीं रहा , क्यों कि भीमकाय भाल्लू को डराने वाले किसी दूसरे जानवर की आवाज की नकल वह नहीं जानता था ।
भीमकाय भाल्लू को देख उस का होश उड़ गया और वही पर ढेर हो गया । तभी भाल्लू उस पर टूट कर उसे फाड़ कर दिया ।
दोस्तो , यह नीति कथा थोड़ी डरावट वाली है , पर उस का हिदायत स्पष्ट और शिक्षाप्रद है । किसी काम करने के लिए असली कार्यक्षमता की आवश्यकता है , छोटी मोटी चाल या होशियारी के सहारे कभी न कभी सफलता पा सकती है , पर स्थाई रूप से कामयाब नहीं हो सकता और एक न एक दिन अपनी चाल में भी फंस सकता है ।
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