प्रिय मित्रो , चीन का भ्रमण कार्यक्रम पसंद करने वाले सभी श्रोताओं को नमस्कार। आज के चीन का भ्रमण कार्यक्रम में हम आप को तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में स्थित छांग चू मठ के दौरे पर ले चलते हैं।
छांग चू मठ चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की नाइ तुंग काउंटी के दक्षिणी भाग में स्थित है और चेह तांग कस्बे से चार किलोमीटर दूर है। इस का निर्माण सातवीं शताब्दी यानी तिब्बती राजा सुंग चान कान पू के शासनकाल में हुआ और यह चीन के तिब्बत के सब से पुराने मठों में से एक माना जाता है। यहां महाघंट और थांग का नामक विशेष स्थानीय कलात्मक कृतियां धरोहर के रूप में संरक्षित हैं।
हमारे गाइड फूपूत्सेरन ने छांग चू मठ के इतिहास का परिचय इस तरह दिया छांग चू मठ तिब्बत के तत्कालीन राजा सुंगचानकानपू द्वारा बनवाये गये 12 मठों में से एक है। छांग चू मठ और तिब्बत की राजधानी ल्हासा शहर का चुमलाखां मठ इन 12 मठों में सब से बड़े माने जाते हैं। तिब्बती भाषा में छांग चू का अर्थ याओ लूंग है, इसलिए 1300 वर्ष से अधिक पुराने छांग चू मठ का दूसरा नाम याओ लूंग मठ भी है।
कहा जाता है कि छांग चू मठ की स्थापना से पहले यहां एक बहुत बड़ी झील थी। झील में पांच सिरों वाला एक राक्षस रहता था जो अक्सर स्थानीय लोगों को परेशान करता था । राजा सुंगचानकानपू ने उसे खत्म करने के लिए एक बड़े पक्षी का रूप धर कर उस के साथ अनेक बार भीषण लड़ाइयां लड़ीं और अंत में उस के सिरों को एक-एक करके काट दिया। अतः राजा सुंगचानकानपू के इस अमर कारनामे की स्मृति में इस मठ का नाम छांग चू रखा गया।
त्सो छिन महाभवन इस छांग चू मठ का प्रमुख वास्तु है। इस भवन में बुद्ध की एक कांस्य मूर्ति की पूजा की जाती है ।
छांगचू मठ की सबसे बेशकीमती वस्तु उसकी पुराने मोती अवशेषों से तैयार थांग का कलात्मक कृति ही है। बहुत से स्थानीय लोग यहां सुरक्षित थांगका कृति को इस मठ की धरोहर मानते हैं । विश्रांतिक अवलोकितेश्वर नामक मोतियों से तैयार यह कृति य्वान राजवंश के शुरू में तिब्बत के तत्कालीन राजा नाइ तुंग की रानी ने बड़ी मेहनत से बनायी थी। दो मीटर लम्बी व 1.2 मीटर चौड़ी इस थांग का कृति पर करीब तीस हजार मोती जड़े हैं। लम्बे ऐतिहासिक दौर में एक के बाद एक राजवंशों के उभरने या युद्धों से ग्रस्त होने पर भी यह थांग का कृति आज तक हू ब हू सुरक्षित है जो सचमुच देखने लायक है।
हमारे गाइड फू पू त्सेरन ने मोतियों से जड़े थांग का चित्र के बारे में कहा इस थांगका कृति पर कुल 29 हजार 9 सौ 99 मोती जड़े हैं । इस के अतिरिक्त उस पर एमरेल्ड, रूबी, सफायर जैसे मूल्यवान पत्थर भी जड़े हैं । यह कलात्मक कृति 12 वीं शताब्दी की एक रानी ने अपने हाथों बनायी।
छांगचू मठ के दूसरे भवन में एक जीवंत भित्तिचित्र लगा है । इस भित्तिचित्र में शाक्यमुनि के जन्म लेने से बुद्ध बनने की सभी 12 कहानियों का सजीव वर्णन किया गया है। गाइड फूपूत्सेरन ने इस भित्तिचित्र के बारे में बताया
इस भित्तिचित्र में शाक्यमुनि के जन्म से लेकर निर्वाण तक की बारह मर्मस्पर्शी कहानियों का वर्णन किया गया है। शाक्यमुनि 19 साल की उम्र में युवराज बने। फिर वे घूमने निकले। यात्रा के दौरान उन्हें महसूस हुआ कि हर किसी व्यक्ति को जिंदगी में बुढ़ापे, रोग और मृत्यु का सामना करना पड़ता है। इसे देखकर उन्हों ने 29 वर्ष की उम्र में ही मानव जाति को नाना प्रकार की मुसीबतों से छुटकारा दिलाने के लिए संन्यास लेने का फैसला किया। वे 35 वर्ष की उम्र में बुद्ध बन चुके थे। बुद्ध बनने के बाद वे इधर-उधर जाकर बौद्ध सूत्र पढ़ाने में मगन रहे। 80 वर्ष की उम्र में उन्होंने निर्वाण पाया।
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