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(GMT+08:00) 2006-02-17 16:32:19    
वेवूर संगीत प्रोफोसर सुलेमान ईमिन

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पिछले साल चीन की वेवूर जाति का परम्परागत संगीत बारह मुखाम युनेस्को द्वारा मानवीय मौखिक व गैर भौतिक सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल कर सम्मानित किया गया । असल में बारह मुखाम नामक संगीत वेवूर जाति के नृत्यगान व संगीत का मिश्रित रूप है , जो सदियों पहले मौलिक रूप में संपन्न हुआ है और आज तक प्रचलित चला आया है , इसलिए वह वेवूर जाति का मातृसंगीत कहलाता है । वेवूर आबादी क्षेत्र यानी सिन्चांग में मुखाम के बारे में अध्ययन करने वाले लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है , प्रोफेसर श्री सुलेमान ईमिन उन में से मशहूर हैं । उन्हों ने मुखाम पर अध्ययन के अवाला बड़ी मात्रा में जातीय संगीत भी लिखे और वायलिन और प्यानो पर ये संगीत बजाने में निपुण भी हैं ।

साठ साल से अधिक आयु वाले प्रोफेसर सुलेमान ईमिन सिन्चांग कला कालेज के संगीत प्रोफेसर हैं । उन्हों ने जो अपनी प्यानो संगीत रचना गुलेरे प्रस्तुत किया है , इस में स्फुर्ति और चंचल शैली में नव युवती गुलेरे के खुश स्वभाव की तारीफ की गई और उस से प्यार व्यक्त किया गया है । यह प्यानो संगीत प्रोफेसर की श्रेष्ठ कृति संग्रह में शामिल किया गया है , जो लोगों में असाधारण लोकप्रिय हो गया है । सुलेमान द्वारा रचित वायलिन धुन स्मृति और प्यानो धुन तुम्हारी याद आदि संगीत चीन के अनेक कला कालेजों के पाठ्यक्रमों में सम्मिलित किये गए हैं । कुछ वायलिन वादकों ने इन संगीतों को ओस्ट्रेलिया व रूस आदि देशों में भी प्रस्तुत किया ।

प्रोफेसर सुलेमान ईमिन एक साधारण वेवूर किसान परिवार में जन्मे थे , उन की संगीत प्रतिभा अपने पिता से नसीब हुई है । उन के पिता गाने नाचने में माहिर है और स्वभाव में विनोदशील है , वे अनेकों किस्मों के जातीय वाद्य यंत्र बजा सकते हैं । पिता की इस विशेषता से प्रभावित हो कर सुलेमान ईमिन बचपन में ही संगीत के शौकीन हो गए ।

वे कह रहे हैं कि मैं बालावस्था में ही पिता से लोक गीत सुनता सीखता था । स्कूल के समय पिता ने मेरे लिए एक रवाप नामक वेवूर वाद्य खरीदा और उसे बजाने के लिए मुझे सिखाना शुरू किया । आगे पिता ने मुझे एक वायलिन खरीद कर लाया । मिडिल स्कूल के समय मैं रवाप और वायलिन वादन और गायन के लिए स्कूल में प्रसिद्ध हो गया था ।

रवाप वेवूर जाति का परम्परागत वाद्य यंत्र है , जबकि वायलिन पश्चिमी वाद्य यंत्र । लेकिन बालावस्था में ही सुलेमान ने इन दोनों अलग किस्मों के वाद्य यंत्रों के वादन पर अधिकार कर लिया । उन के हाई स्कूल से स्नातक होने के समय सिन्चांग कला कालेज के शिक्षक सुलेमान के गृह स्थान यानी दक्षिण सिन्चांग के काश्गर क्षेत्र में छात्रों का दाखिला कराने आए , उन्हों ने सुलेमान का वायलिन वादन सुन कर उन की भूरि भूरि प्रशंसा की और मौके पर उन्हें स्वीकार किया ।

सिन्चांग कला कालेज स्थानीय कला प्रतिभाओं को प्रशिक्षण देने वाला उच्च शिक्षालय है । वर्ष 1961 में 17 वर्ष का सुलेमान ईमिन इस उच्च शिक्षालय के वायलिन विभाग के छात्र बन गए । वहां उन्हों ने लगन से वायलिन वादन की कला सीखी और खुद संगीत रचने की कोशिश भी शुरू की । कालेज से स्नातक के समय उन्हों ने अपनी रचित एक रवाप धुन और तीन गीत पेश किए , जिन का शिक्षकों द्वारा उच्च मूल्यांकन किया गया ।

स्नातक के बाद श्री सुलेमान ईमिन कालेज के अध्यापक नियुक्त हुए , अपनी इस सफलता को वे बेहद मूल्यवान समझते हैं । वे कहते हैः

एक संगीत अध्यापक होने के नाते मुझे अपने कला कौशल में पारंगत होना चाहिए , इसलिए मैं ने बहुत से समय निकाल कर देश की विभिन्न जातियों और विदेशों के लोक गीतों का अध्ययन किया । इस दौरान मुझे पता चला कि हमारी स्वयं वेवूर जाति में बेशुमार लोक गीत संगीतों का खासा बड़ा महत्व होता है , उन के संकलन व अध्ययन की आवश्यकता है । जैसा कि वेवूर जाति का परम्परागत संगीत श्रृलंखा बारह मुखाम स्वयं संगीत खजाना सिद्ध हुआ है ।

बारह मुखाम के अन्तर्गत 340 गीत संगीत सुरक्षित हैं , उन की धुन सुव्यवस्थित और सुरीली है , लेकिन उन पर महारत हासिल करना बहुत मुश्किल है , क्योंकि उन के लय बहुत जटिल हैं और रहस्यमय लगते हैं । मुखाम के लय नियम पर अधिकार करने के लिए प्रोफेसर सुलेमान ने अकसर रात भर बारंबार सुनने और उन की नकल में बजाने की कोशिश कीं । कड़ी मेहनत और लगन के फलस्वरूप उन्हों ने आखिरकार मुखाम पर महारत हासिल की , इस के लिए पांच सालों का लम्बा समय लगा। इसी के बाद वे मुखाम पर वादन के साथ वाचन भी कर सकते हैं । इस सफलता के बाद प्रोफेसर सुलेमान ने पश्चिमी वाद्य से जातीय लोक गीत संगीत बजाने पर अध्ययन आरंभ किया । इस के बारे में उन्हों ने कहाः

मैं पश्चिमी वाद्य यंत्रों पर वेवूर जातीय संगीत बजा कर अभिव्यक्त करना चाहता हूं । इस के माध्यम से पश्चिमी देशों के लोगों को सिन्चांग की जातीय संगीत जानने का मौका मिलेगा । लेकिन पश्चिमी वाद्य से चीन के जातीय संगीतों को अभिव्यक्त करना बहुत मुश्किल है , दोनों को तालमेल स्थापित करना बेहद परिश्रम करना चाहिए ।

इस लक्ष्य के लिए जब प्रोफेसर सुलेमान को किसी प्रकार का अनुभव पैदा हुआ , तो उसे संगीत के रूप में ढालने के लिए वे अकसर खाने व सोने का समय भी भूल जाते हैं । उन के साथी, सिन्चांग कला कालेज के असिस्टेन्ड प्रोफेसर क्वांग वनह्वी ने कहा कि श्री सुलेमान की मेहनत भावना कालेज में सर्वमान्य है । शिक्षक और छात्र अकसर उन्हें राह चलते हुए किसी संगीत पर गाते देख सकते हैं । श्री क्वांग ने कहाः

प्रोफेसर सुलेमान ने बड़ी मात्रा में मूल्यवान निबंध लिखे है , बहुत से निबंध जातीय संगीत के संदर्भ में है , जो अन्तरराष्ट्रीय क्षेत्र में भी पुरस्कार से सम्मानित किए गए हैं । उन्हों ने अपने समृद्ध संगीत सिद्धांतों से अपने सृजन काम का निर्देशन किया और पश्चिमी वाद्य पर अनेक श्रेष्ठ जातीय धुनें रचीं , जिस से अधिक से अधिक विदेशी लोगों को सिन्चांग के जातीय संगीत के बारे में जानकारी प्राप्त हुई है ।

पिछली शताब्दी के 70 वाले दशक में प्रोफेसर सुलेमान ने स्वर्गीय चीनी नेता चाओ एन लाई की याद में जो महिला कोरस बनाया था , वह देश भर में लोकप्रिय रहा था । चीन के केन्द्रीय संगीत कालेज में अध्ययन के समय उन्हों ने प्यानो पर दस से ज्यादा जातीय व लोक संगीत रचे , जिन की चीनी संगीत जगत में खासा सराहना की गई ।

अब तक प्रोफेसर सुलेमान ने कुल 200 से ज्यादा संगीत रचनाएं की हैं , जिन में सिन्फोनी संगीत , प्यानो संगीत और वायलिन समुह वादन आदि शामिल हैं । ये संगीत विदेशी संगीत वादकों को भी पसंद आए , विदेशों में उन की प्रस्तुति के साथ सिन्चांग का जातीय संगीत विदेशों में भी काफी परिचित हो गया ।

संगीत के आध्यापन में प्रोफेसर सुलेमान अपनी जाति के श्रेष्ठ संगीत पर बड़ा महत्व देते हैं और छात्रों को पश्चिमी संगीत व जातीय संगीत के अध्ययन में सही सिद्धांत अपनाने की शिक्षा देते हैं । उन के छात्र रह चुके प्रोफेसर तोखान समगुल ने कहाः

जहां तक मेरी याद है कि प्रोफेसर सुलेमान ने 20 साल पहले ही अल्पसंख्यक जातियों के संगीत पर पाठ्यक्रम लिखना शुरू किया, जिसे हम ने भी सीखा , इन पाठयक्रमों में देश की अल्पसंख्यक जातियों के संगीतों की सुव्यवस्थित रूप से व्याख्या की गई है ।