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(GMT+08:00) 2006-02-17 15:32:41    
सोने की चोरी

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छी राज्य का एक आदमी थी , वह रोज सोना के चक्कर में आ रहा था , दिन में तो दिमाग में सोना पाने का विचार घूम रहा था और रात में सोना का सपना देख रहा था ।

एक दिन वह सुबह ही सुबह उठ गया और कपड़े पहन कर बाजार पहुंचा ।

वह सीधे सोना बेचने वाली दुकान में प्रवेश कर गया और वहां सोने का एक बड़ा टुकड़ा छीन कर बाहर चला आया , ज्यादा दूर नहीं चला पाया था कि उसे लोगों से पकड़ा गया और जिला मुखिया के सामने ले जाया गया . जिला मुखिया ने उस से पूछा कि भरी भीड़ के सामने तुझे दूसरों का सोना छीनने की कैसी हिम्मत आयी . इस का कारण बताओ ।

छी राज्य के इस आदमी ने जवाब में कहा कि उसी वक्त ,जब मैं सोना ले रहा था , मेरी नजर में मात्र सोना था , मुझे पास इतने ज्यादा लोग खड़े नहीं दिखा था ।

तो दोस्तो , इस नीति कथा का पात्र बड़ा लोभी सिद्ध हुआ था , चोरी के समय सोना छोड़ कर उसे दूसरा कुछ भी नजर नहीं आया । दुनिया में इस प्रकार का चोर वास्तव में जरूर नहीम मिलता है , पर स्वार्थ के कारण ऐसा विचार रखने वाला अवश्य मौजूद है ।

अगले साल  बदलूंगा 

    

हा जाता है कि  एक चोर था , वह पास पड़ोस के घरों के मुर्गों की चोरी करना पसंद करता था । एक दिन वह केवल एक मुर्गे की चोरी करता था । यदि किसी दिन चोरी नहीं कर पाता , तो उसे बड़ी परेशानी महसूस होती थी । पड़ोसियों ने उसे सलाह देते  हुए कहा कि चोरी एक अनैतिक बात है , इस तरह रोज रोज चोरी करने का निश्चय ही बुरा परिणाण निकलेगा , तुम अपनी इस गतली को दूर करो ।

 

चोर भी चाहता था कि अगली बार वह चोरी नहीं करेगा । उस ने सलाह देने वालो पड़ोसी से कहा , आप की बातें ठीक है ,  मैं फिर चोरी नहीं करूंगा , लेकिन मुझे गुर्गे की चोरी करने की खासी आदत पड़ गई है , जल्दी में उसे बदल नहीं सकूंगा ,  खैर  , मैं ऐसा करूं , पहले मैं रोज एक मुर्गे की चोरी करता था , अब से मैं हर महीने में एक की चोरी करूंगा , इस हिस्साब से अगले साल जा कर मैं अपनी बुरी आदत को पूरी तरह छोड़ सकता हूं ।

 

दोस्तो , लोगों के लिए यह बुरी आदत है कि अपनी गलती को दुरूस्त करने का पक्का संकल्प नहीं है या अपनी गलती को माफ देता है ।