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(GMT+08:00) 2006-02-13 15:24:12    
वुथान में थांग्का की संस्कृति

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थांग्का चित्र बौद्ध धर्म के दर्शन-शास्त्र का आँखों देखा अभिव्यक्ति है जिन्हेँ रुई या लिनन चित्रों में चित्रकारी की जाती हैं। इन चित्रों में अक्सर साधुओं और संतों के जीवन दर्शाया जाता हैं। थुंगरंग काउंटी के छिंगहाई हुआंगनान प्रिफेक्चर में स्थित इरकुंग के अधिकतर बौद्ध निवासी पन्द्रहवी शताब्दी से अपने अनोखे चित्रकला के लिए प्रसिद्ध है। थुंगरन काउंटी के वुथुन गाँव को थांग्का का घर माना जाता है। यहाँ के 90 प्रतिशत पुरुष इरकुंग कलाकार हैं। यहाँ की कला इतनी विख्यात है की चोखांग मंदिर और थाअर के भिक्षुक आश्रम वुथान से अपने लिए थांग्का का आर्डर करते हैं। कलाकारिक और आत्मिक संतुष्टि के अलावा यह वुथान के निवासियों के लिए आय का एक बेहतरीन श्रोत भी हैं। अगर हम यह देखते हैं की महज 0.57 एकर जमीन से 1,233 अमरीकी डालर की कमाई होती है

थांग्का के तकनीक 

एक थांग्का को पूरा करने के लिए कई महीने और कभी कभी कई साल लग जाते हैं। उदाहरण के लिए, एक स्क्वेयर मीटर के कैन्वस पर छोटे आकारों में बौद्धिसत्वा का चित्रबनान् के लिए तूलिका से जुड़ा हुआ काम इलावा आइकोनोग्राफी कि विस्त्रित जानकारी होना बहुत जरुरी है। इस कला में महारथ हासिल करने के लिए कम से कम एक दशक लग जाता है। थांग्का चित्रों को चार चरणों में पूरा किया जाता है। कैन्वस को सर्वप्रथम प्लैस्टर आँफ पैरिस से कोचिटिंग किया जाता है। इससे भिविन्न रंगों का उपयोग करने में आसानी होती है और रंगों का उखड़ने की संभावनाएँ भी खत्म हो जाती है। इसके बाद चारकोल के द्वारा कैन्वस पर चित्रों के नक्शे खींचे जाते हैं। तीसरे चरण में भिविन्न रंगों के आधार पर उनका उपकरण

फीरोजा या मुंगी के रंगद्रव्यों से उपसोग किया जाता है। आखिर में थांग्का के खास आकर्षण, यानी बुद्ध और बौद्धिसत्त्व के चित्र, कुछ खास आकारों के निर्धारित उपभाग, बलखाते हुए ज्वाला के अंगारों को सोने के पन्नी से नक्षा खींच कर और सुंदर आकार प्रदान किया जाता है।

लामा कलाकार

वुथान के बालक आम तौर पर सात-आठ वर्ष की उम्र में एक साल के लिए बौद्ध

धर्मशाला जाते हैं और इरकुंग कला में शिक्षा गृहण करने और प्रशिक्षण पाने के लिए बौद्ध धर्मशाला जाते हैं। वहाँ की आबोहवा, जैसे की मंदिर, मंदिर में पूजा और एक शांत सा वाता वरण, यहाँ के स्तूप और भित्ती चित्र ( मुरल पेंटिंग) थांग्का कला की शिक्षा पाने के लिए बिल्कुल अनुकूल है। पद्मा वांगछन, जो तीस वर्ष के हैं, ने थांग्का कला में महारथ अपने दादा जी से हासिल की और बाद में और भी उनकी कला में सुधार लाने के लिए, वे पूरे वुथुन में अपने कला के लिए प्रसिद्ध थांग्का कलाकार शावो थ्सरिंग के पास गए। पद्मा वांगछन ने अपने गुरु से यह बात सीखी कि अलगअलग रंगों को रंगद्रव्यों को से कैसे मिश्रित किया जाये जिससे चित्रो में एक खास सौंदर्य और खूबसुरत आकार नजर आते हैं। कंदुन खदरुप जो अभी 19 वर्ष के है, थांग्का की शिक्षा बचपन से ही प्राप्त करने लगे और वे इस छोटी सी उम्र में ही तिब्बत, छिंगहाई, कांसु, और युन्नान के कुछ विख्यात मंदिरों में थांग्का चित्र बनाने के लिए कमीशन पाने लगे हैं। लेकिन थांग्का कला में महारथ हासिल करने के लिए उन्हें अभी भी काफी लंबा सफर तय करना है।