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(GMT+08:00) 2006-01-27 10:59:52    
कनास झील के किनारे सुन्दर संगीत की परम्परा

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सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश के उत्तरी भाग में स्थित कनास झील के किनारे संगीत की जो सुन्दर परम्परा चली आई है , वह स्थानीय मूल निवासी थुवा लोगों द्वारा अपने हाथों में बनाए गए वादन यंत्र से बजायी जाती है । इसे सुनने में लोगों को असीम आनंद मिल सकता है , इसलिए इसे स्वर्ग संगीत की संज्ञा दी गई है । आज के सिन्चांग का दौरा में आप को थुवा लोगों के इस परम्परागत अनोखे वादन यंत्र के बारे में बताया जाएगा ।

कनास झील उत्तरी सिन्चांग में स्थित एक मनोहर सुन्दर दर्शनीय क्षेत्र है , वहां पीढ़ियों से रह रहे थुवा लोग प्रायः लकड़ी के छोटे छोटे मकानों में रहते हैं । दुर्गम स्थान में रहने तथा बाह्य दुनिया से अलग होने के कारण थुवा लोग अखिर किस जाति की संतान है , यह आज तक अज्ञात है ।

थुवा लोग नदी घाटी , घास मैदान में चराते हैं और पहाड़ी जंगलों में शिकार करते हैं , वे आदिम शैली का जीवन बिताते हैं । लेकिन इधर के पर्यटन संसाधन के विकास के साथ साथ थुवा लोगों के जीवन में भी नया रूप रंग आया , वे अपने कमरों व घोड़ों को किराए पर पर्यटकों को देते हैं या स्थानीय विशेषता वाली पर्यटन चीजें बेचते हैं और कुछ लोग पर्यटकों को अपने परम्परागत वादन से धुन बजा कर सुनाते हैं ।

थुवा लोगों के परम्परागत वादन यंत्र का नाम है छुवूर । गांव के बुजुर्ग निवासी येरडेक्सी इस से सब से बढ़िया संगीत बजा सकते हैं , जब हम इस बुजुर्ग लोक कलाकार के घर पहुंचे , उन के आंगन में मधुर धुन सुनाई दे रही है ।

लकड़ी के कमरे में बुजुर्ग येरडेक्सी एक लकड़ी के चार पायों वाले बेंच पर बैठे छुवूर नाम का वादन बजा रहे हैं , देखने में यह वादन बांस की बांसुरी की भांति है । कमरे में कुछ विदेशी पर्यटक पार्थी मारे बैठे किशमिश के साथ छुवूर की मधुर धुन को चाव से सुनते हुए नजर आये । सिर पर ऊनी टोपी पहने बुजुर्ग येरडेक्सी चमकीली जातीय पोशाक में लगन से वादन बजा रहे हैं ।

हमें बताया गया है कि बुजुर्ग येरडेक्सी के हाथ में थुवा लोगों का परम्परागत वादन छुवुर है । यह वादन सरल बनाया गया है , पर इसे बजाने की कला मुश्किल है । येरडेक्सी ऐसे चंद कुछ लोगों में से एक है , जिन्हें छुवुर बजाना आता है ।

68 वर्षीय येरडेक्सी हम से मिलने पर बहुत खुश नजर आए हैं , वे मंगोल , कजाख और थुवा की मिश्रित भाषा में हमें छुवुर के बारे में जानकारी देने लगेः

उन की बातों का अर्थ इस प्रकार हैः छुवुर यहां पहाड़ में उगे एक किस्म के पौधे के डंठल को अन्दर खोखला कर बनाया गया है , जो मीटर का तिहाई जितना लम्बा है और जिस पर तीन छेद खुदे हैं , उसे फूंक मार कर बजाया जाता है । देखने में यह वादन बहुत सरल और सादा है , लेकिन थुवा के मुंह से उस में कई लय तालों का मधुर संगीत बज सकता है ।

येरडेक्सी के कहने के अनुसार छुवुर बजाने में नाभि के नीचे नाड़ी चक्र कुंडली के बल का प्रयोग होता है , हवा मुंह में आने पर दांतों व होंठों के बीच से गुजरने पर लहरेदार धुन निकलती है । देखने में बुजुर्ग येरडेक्सी शरीर में पतले दुबले लगते हैं , किन्तु छुवुर बजाने के समय बड़े तेजस्वी और स्फुर्त व्यक्त हुए । गांववासियों का कहना है कि कनास झील क्षेत्र के शुद्ध ताजा जलवायु में रहने तथा वर्षों से छुवूर का अभ्यास करने से वे इस उत्कृष्ट परिणाम पर पहुंचे हैं ।

हमारे लिए येरडेक्सी ने तीन धुनें बजायीं , पहली धुन में लय लम्बा होने के कारण सुनने में लगता है मानो घनी जंगल में हवा के झोंकों से देवदार पेड़ों की लहरेदार आवाज गूंज उठी , ऊंचे और त्वरित राग ने हमें यह अहसास पहुंचाया है , मानो ताजा सबेरे पक्षियों का कलरव सुनाई देता हो ।

बुजुर्ग लोक कलाकार येरडेक्सी न केवल छुवुर बजाने में कुशल हैं , साथ ही वे छुवूर पर धुन भी बना सकते हैं । उन्हों ने श्याम घोड़ा शीर्षक जो धुन बनायी है , उस में ताकत और ओजस्वी महसूस होता है , धुन के लयों के साथ घोड़े के हीन्हीनाने और तेज पदचाप की आवाज सुनाई देती है ,जिस से हमें एहसास हुआ है कि थुवा लोग विशाल कनास झील मैदान पर बलिष्ठ घोड़े पर सवार दौड़ रहे हों ।

हमारे साथ आए कनास क्षेत्र की प्रबंध कमेटी के एक अधिकारी ने परिचय देते हुए कहा कि थुवा लोगों का छुवुर वादन शुरू शुरू में किसी को सुनने के लिए बजाया नहीं जाता था , असल में वह थुवा लोगों और कुदरत के बीच भावना के आदान प्रदान का एक साधन है । अतीत में थुवा चरवाहे जब जंगल में छुवुर बजाते थे , तो उस का साथ देते हुए पक्षी भी चहचहाती थी और मानव और प्रकृति में खुशहाली का माहौल कायम होता था । इस के बारे में श्री येरडेक्सी ने कहाः

छुवुर का मतलब धरती माता से आई आवाज है , उस की उत्पत्ति कनाल झील क्षेत्र के सुन्दर पहाड़ों और नद नदियों और झीलों से हुई है और सुईदार पत्तों वाले पेड़ों , शाल वृक्षों तथा स्वच्छ शीतल झील जल राशि से जुड़ी हुई है । छुवुर सीधे सादे थुवा लोगों में पहाड़ों , नदियों , झीलों , पेड़ पौधों से प्यार का प्रकट रूप है और इस में कुदरत के साथ थुवा लोगों के स्नेह और समझ की भावना अभिव्यक्त हुई है ।

चीनी संगीत प्रतिष्ठान के एक प्रोफेसर ने विशेष तौर पर कनास झील का दौरा किया । उन्हों ने बुजुर्ग कलाकार येरडेक्सी के छुवुर वादन का अच्छी तरह अध्ययन करने के बाद यह मत बनाया कि छुवुर प्राचीन चीनी राष्ट्र का एक किस्म का वाद्य यंत्र है , जो अब तक चीनी लोगों में धरोहर के रूप में सुरक्षित रहा है , वह चीनी संगीत विधि का एक जीवाश्म माना जा सकता है ।

पिछले साल पेइचिंग की संबंधित संस्था के निमंत्रण पर बुजुर्ग लोक कलाकार येरडेक्सी ने पेइचिंग जाकर छुवुर वादन का विशेष कार्यक्रम पेश किया , जिस से थुवा लोगों की छुवुर वाद्य कला के बारे में उन की समझ का नया विषय जुड़ा । घर लौटने के बाद उन्हों ने गांव में छुवुर वादन सभा शुरू कर इस कला के प्रेमी पर्यटकों की सेवा में प्रोग्राम पेश करना आरंभ किया , इस के साथ साथ पर्यटकों को उन की पत्नी के हाथों बनाया जाने वाली दुधार चाय और दुधार पकवान खिलाए जाने लगे । इस के बाद एक साल गुजरा है , उन के वादन प्रदर्शन ने बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित कर दिया ।

हाल ही में येरडेक्सी ने अपनी एक असाधारण कार्यवाही कर गांव वासियों को बड़ा आश्चर्यचकित कर दिया , यानी उन्हों ने कांऊटी शहर में जा कर थुवा की परम्परागत छुवुर वादन कला के लिए ट्रेड मार्क का पंजीकरण कराया । अपनी इस कार्यवाही को येरडेक्सी ने बड़ी लाचारी से किया है , उन का कहना है कि उन के छुवुर वादन प्रदर्शन की सफलता पर कुछ लोगों को लालची हुई , उन्हों ने भी पर्यटकों को खींचने के लिए अपने अपने घर में वादन प्रदर्शन की सभा आरंभ की , लेकिन वे वास्तव में छुवुर बजाना नहीं जानते हैं और घटिया वादन कोशल से छुवुर कला को क्षति पहुंचायी गई है । श्री येरडेक्सी कहते हैः

मैं नहीं समझता हूं कि मेरी वादन कला सब से उम्दा औपचारिक वाली है । लेकिन दूसरी जाति के कुछ युवा लोगों ने जो वादन सभा आयोजित की है , वह फर्जी जरूर है , क्यों कि वे छुवुर नहीं जानते हैं , वे केवल इस कला को बर्बाद कर सकेंगे ।

थुवा कलाकार श्री येरडेक्सी की यह छुवुर वादन कला एक विशेष कला है , अब उस के लुप्त होने का खतरा भी पड़ा है । उन के दो पुत्रों ने इसे सीखा है , लेकिन ऊंचे स्तर पर नहीं पहुंच सके । येरडेक्सी ने शिष्य बुलाना भी चाहा , पर गांव वासियों के बच्चों में से कोई भी सीखना नहीं चाहता , क्योंकि उन्हें डर है कि इस से कहीं उन की पढाई पर असर तो नहीं पड़ जाए ।

लेकिन अब स्थिति बदली है । स्थानीय सरकार छुवुर वादन कला पर बड़ा महत्व देने लगी , वह स्थानीय कला विशेष है , जो पर्यटन उद्योग बढाने में मदद दे सकती है ।

कनास झील के स्वच्छ पानी पर सुर्य की किरणें प्रतिबिंबित हुई , बुजुर्ग कलाकार के मुंह से छुवुर की सुरीली आवाज झील के ऊंपर दूर दूर घनी जंगल और शांत पहाड़ी घाटी में जा कर लुप्त हो रही है , यह है स्वर्ग की धुन समझी जाती है , जो लोगों को शुकन और शांति का अनुभव मुहैया कर देती है ।